आईएएस अधिकारियों का निलंबन पीछे छोड़ गया कई सवाल ?

- क्या एसआईटी जांच के साथ चलेगी विभागीय जांच ?
- या विभागीय जांच के साथ चलेगी एसआईटी जांच ?
- या दोनों जांचों का एक साथ करना होगा आरोपियों को सामना ?
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : प्रदेश सरकार द्वारा बीते दिन दो आईएएस अधिकारियों को एनएच -74 मुआवजा घोटाले में लिप्त पाए जाने के चलते निलंबित तो कर दिया गया लेकिन इनका निलंबन अपने पीछे कई सवाल भी छोड़ गया है। कानूनी जानकारों के अनुसार राज्य सरकार ने जहाँ इन दोनों अधिकारियों के निलंबन आदेश में विभागीय जांच की बात कही है वहीँ कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि सरकार के ही आदेश पर की जा रही एसआईटी जांच का प्रभाव क्या इन अधिकारियों पर होगा या नहीं या इन अधिकारियों के मामले में एसआईटी जांच प्रभावी होगी भी या नहीं या एसआईटी जांच के आधार पर ही विभागीय जांच होगी। अब इसके बाद यह भी सवाल उठता है कि एसआईटी जांच के घेरे में आने के बाद जेल में बंद उन पीसीएस अधिकारियों के खिलाफ भी क्या विभागीय जांच होगी या वे एसआईटी जांच के आधार पर ही जेल में निरुद्ध रहेंगे। लेकिन एक बात तो साफ़ है एक ही घोटाले अथवा अपराध के मामले में दो-दो जांच कैसे हो सकती है यह निर्णय सरकार की मंशा पर सवालिया निशान खड़ा करता है कि आईएएस के लिए तो विभागीय जांच और पीसीएस के लिए एसआईटी जांच ?
- डीओपीटी से होगा अभी निलंबन की पुष्टि का इंतज़ार
वहीं सर्विस मैटर के जानने वालों का कहना है कि मामले में दोनों जांचें एक साथ चल सकती हैं क्योंकि एसआईटी जांच के परिणाम तक पहुँचने के बाद और एसआईटी द्वारा दोनों अधिकारियों को चार्जशीट देने के बाद ही शासन ने इन अधिकारियों द्वारा दिए गए जवाब से संतुष्ट न होने के बाद ही इन दोनों अधिकारियों को सस्पैंड किया है। लिहाज़ा अब इन दोनों अधिकारियों को अब जहाँविभागिया जांच का सामना करना पड़ सकता है वहीं एसआईटी जांच का सामना भी ये दोनों करेंगे। वहीं इनका कहना है कि बीते दिन शासन द्वारा निलंबित किये जाने के बाद अब इन अधिकारियों के निलंबन के पत्र को डीओपीटी को भेजा जायगा जहाँ से इनके निलंबन की पुष्टि की जाएगी जो इनकी सेवा पंजिका में भी निर्दिष्ट किया जाएगा, इसके बाद ये अधिकारी अब अभी प्रदेश के मुख्य सचिव तक की कुर्सी तक नहीं पहुँच पाएंगे।
- आरोप पत्र के अभाव में 90 दिन से अधिक नहीं रखा जा सकता निलंबित
दूसरी तरफ बीती फ़रवरी को देश के उच्चतम न्यायालय ने एक मामले में व्यवस्था दी थी कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को उसके खिलाफ आरोप पत्र के अभाव में 90 दिन से अधिक निलंबित नहीं रखा जा सकता क्योंकि ऐसे व्यक्ति को समाज के आक्षेपों और विभाग के उपहास का सामना करना पडता है। न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन और न्यायमूर्ति सी नागप्पन की खंडपीठ ने लंबे समय तक सरकारी कर्मचारी को निलंबित रखने की प्रवृत्ति की आलोचना की और कहा कि निलंबन, विशेष रूप से आरोपों के निर्धारण की अवधि में, अस्थाई होता है और इसकी अवधि भी कम होनी चाहिए। न्यायाधीशों ने कहा कि यदि यह अनिश्चितकाल के लिये हो या फिर इसका नवीनीकरण ठोस वजह पर आधारित नहीं हो तो यह दंडात्मक स्वरूप ले लेता है। न्यायालय ने कहा कि ऐसी स्थिति में हम निर्देश देते हैं कि निलंबन आदेश तीन महीने से अधिक नहीं होना चाहिए यदि इस दौरान आरोपी अधिकारी या कर्मचारी को आरोप पत्र नहीं दिया जाता है और यदि आरोप पत्र दिया जाता है तो निलंबन की अवधि बढाने के लिये विस्तृत आदेश दिया जाना चाहिए।
- आरोपियों के निलंबन में आखिर क्यों लगे 64 दिन ?
- कहीं जानबूझकर तो नहीं दिया गया बचाव के रास्ते तलाशने का समय ?
वहीं कुछ जानकारों का कहना है कि प्रदेश सरकार ने इन दोनों अधिकारियों पर किये गए निलंबन को लेकर केवल प्रक्रिया का पालन किया है जबकि आईएएस अधिकारियों के दबाव में इनके बच निकलने का रास्ता भी साफ किया गया है। इनका कहना है कि इन आईएएस अधिकारियों के निलंबन आदेश को पारित करने में आखिर 64 दिन क्यों लगे जबकि एसआईटी जांच में दोषी पाए जाने के तत्काल बाद ही 10 जुलाई को शासन को रिपोर्ट सौंप दी थी जबकि इसी दौरान इन दोनों अधिकारियों को निलंबित कर दिया जाना चाहिए था। लेकिन सरकार ने जानबूझकर ऐसा नहीं किया और इनको बचाव के रास्ते तलाशने के लिए पूरा समय दिया। बहरहाल राज्य सरकार के इस आदेश का प्रदेश की जनता से स्वागत किया है और मुख्यमंत्री ने जीरो टॉलरेंस का प्रदेश की जनता से जो वादा किया है उसके रास्ते में एक बड़ा कदम बताया है।
- एसआईटी के मुखिया डॉ. सदानंद दाते और उनके साथियों को सैल्यूट
मामले में वरिष्ठ पत्रकार दिनेश मानसेरा का कहना है कि उत्तराखंड में एनएच 74 भूमि मुआवजे घोटाले जांच में कुछ कमी तो नही रह गयी? थोड़ी चर्चा इस बात की भी हो रही है,घोटाले में अब दो आईएएस सस्पेंड हो गए है कई पीसीएस,तहसीलदार पहले से जेल में है। अब आगे नंबर एनएच अभियंताओं का है,जोकि इस घोटाले में आंखे मूंदे बैठे रहे,सीबीआई जांच नकारने वाली केंद सरकार पर उत्तराखण्ड स्टेट की एसआईटी जांच भारी पड़ गयी। लेकिन इस सबके बावजूद कुछ ऐसा होगया है जिसको लेकर एसआईटी टीम को थोड़ी निराशा सी है।
सूत्र बताते है कि एसआईटी टीम के हवाले जब केस हुआ तो उससे पहले इस मामले की सामूहिक एफआईआर, दर्ज की जा चुकी थी। कुमायूं आयुक्त ने जब इस घोटाले को उजागर किया था तब उन्होंने इसपर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने को उधम सिंह नगर के जिलाधिकारी को दिए थे,जिसके बाद एडीएम स्तर से इस मुआवजे घोटाले की जांच पर एक ही सामूहिक रिपोर्ट बना कर मामला दर्ज कर लिया गया। एसआईटी टीम के अधिकारियों का मानना था कि इस घोटाले की अलग अलग प्रथम सूचना रिपोर्ट यदि केस बाई केस दर्ज होती तो तीन सौ से ज्यादा मामले दर्ज होते और आरोपियो के किसी भी दशा में बच निकलने की संभावना हमेशा के लिए खत्म हो जाती लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सम्भवतः किसी को ये उम्मीद भी नही रही होगी कि ये मामला इतने आगे तक पहुंच कर आईएएस अधिकारियों को भी लपेटे में ले लेगा,चर्चा राजनेताओ की भी इसमे शामिल होने की होती रही है। लेकिन वो इसलिए बच निकलेंगे क्योंकि उनके किसी दस्तावेज़ में हस्ताक्षर नहीं है।
हालांकि उस वक्त की कांग्रेस सरकार में खेल तो नेताओ ने भी खेला ऐसी चर्चा आम रही है, बरहाल त्रिवेन्द्र सिंह रावत की बीजेपी सरकार के सख्त रवैय्ये ने इस घोटाले की परतें खोल दी है अब सारा मामला अदालत में पहुंच चुका है जहाँ फैसला सुनाया जाएगा।इस मामले को यहां तक पहुंचाने के लिए एसआईटी के मुखिया डॉ सदानंद दाते और उनके साथियों को भी सैल्यूट किया जाना चाहिए। …