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सिस्टम की सजा भुगतते मासूम

- क्या कहने आपके सूचना तंत्र का
- रहम कीजिये डीएम साहब
सतीश लखेड़ा
DEHRADUN : राजधानी देहरादून के डीएम कार्यालय की सजा मासूमों और अभिभावकों पर भारी पड़ रही है। एक नहीं अनेक बार हो चुका है कि सामान्य मौसम में विद्यालय बन्द करने के आदेश हो जाते हैं और भारी बारिश में छुट्टी की सूचना नहीं मिलती।
छुट्टी घोषित करने का अधिकार जिलाधिकारियों को है, उनका विवेक तय करता है कि कब छुट्टी घोषित की जाय। डिजिटल युग मे भारी बारिश में स्कूलों और अभिभावकों को तब सूचना मिलती है जब वे बारिश में भीगते स्कूल पँहुचते हैं।
डीएम साहब कैसे तय करते हैं कि छुट्टी देनी चाहिये। वे मौसम विभाग की चेतावनी के आधार पर तय करते हैं या अपनी खिड़की से बारिश देखकर। डीएम अपने बंगले पर नाईट ड्यूटी में तैनात कर्मचारियों को जिम्मेदारी देकर सो जाते हैं या खुद रातभर जागकर आंकलन करते हैं कि मौसम बच्चों को स्कूल भेजने लायक है या नहीं।
कितना हास्यास्पद तन्त्र है कि मौसम से जुड़े निर्णय की जिम्मेदारी “बड़े बाबू” को दी गयी है, जबकि सरकार के पास मौसम विभाग है, जिसे यह जिम्मेदारी दी जानी चाहिये, भले ही छुट्टी का उद्घोषक डीएम को ही बनायें।
अभिभावकों की दुविधा तब बढ़ जाती है जब परीक्षा तिथि के दिन भारी बारिश के बावजूद सूचना नही मिल पाती, स्कूल जाने पर पता चलता है कि डीएम साहब ने छुट्टी घोषित की है। कम से कम प्रशाशन को समय पर सभी विद्यालयों, विद्यालयों को सभी कक्षाध्यापकों और उन्हैं अभिभावकों तक सूचित करने का तन्त्र विकसित करना चाहिये।
देर रात्रि या प्रातः 5 बजे तक अभिभावक के पास छुट्टी की सूचना का औचित्य है। इस व्यवहारिकता को न समझकर अभी भी मासूमों के मामले को सरकारी लचर सिस्टम से हाँका जा रहा है। इसे गंभीरता और संवेदनशीलता से लेने की आवश्यकता है। और हाँ ! कभी छुट्टी के बारे में सूचना लेनी हो तो डीएम के बंगले यानी उनके कैम्प ऑफिस फोन करके देखें। तबियत हरी हो जायेगी।