कमल किशोर डुकलान
देवभूमि मीडिया ब्यूरो। अखण्ड भारत के निर्माण में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले न्याय,धर्म,सुशासन,राष्ट्रीयता के प्रतीक छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी बहादुरी,साहस एवं चतुरता से अधर्मी क्रूर मुगल शासक औरंगजेब को पराजित कर 6 जून सन् 1674 में आज ही के दिन हिन्दवीं शिवस्वराज्य की स्थापना की।
भारतभूमि हमेशा से ही वीरों की थाती रही है। इस भूमि पर समय-समय पर ऐसे वीर हुए जिनकी वीर गाथा सुनकर हर भारतवासी का सीना गर्व से तन जाता है।भारतभूमि के महान वीरों की श्रृंखला में एक नाम छत्रपति शिवाजी का प्रमुख रुप से आता है जिन्होंने अपने शौर्य,पराक्रम से औरंगजेब जैसे महान मुगल शासक की सेना को भी परास्त किया था।इस महान,साहसी और चतुर हिंदू शासक के रूप में छत्रपति शिवाजी को इस भारतभूमि पर हमेशा याद किया जाएगा।
छत्रपति शिवाजी ने कम साधन होने के बाद भी अपनी सेना को एक संयोजित ढंग से रण में माहिर बनाया। न्याय,धर्म,सुशासन, राष्ट्रीयता के प्रतीक छत्रपति शिवाजी ने अपनी बहादुरी,साहस एवं चतुरता से औरंगजेब जैसे शक्तिशाली मुगल सम्राट की विशाल सेना से कई बार जोरदार टक्कर देकर अपनी शक्ति को बढ़ाया। वे एक कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अनेक लोगों का धर्म परिवर्तन कराकर उन्हें वापस हिन्दू धर्म में लाया।छत्रपति शिवाजी बहुत ही चरित्रवान व्यक्ति थे।वे मातृशक्ति का आदर, सम्मान करते थे। वे मातृशक्ति पर दुर्व्यवहार करने वालों और निर्दोष व्यक्तियों की हत्या करने वालों को कड़ा दंड देते थे। युग प्रवर्तक छत्रपति शिवाजी महाराज की अभूतपूर्व सफलता का रहस्य मात्र उनकी वीरता एवं शौर्य के साथ-साथ उनकी आध्यात्मिकता की उपलब्धियों में बहुत बडा योगदान उल्लेखनीय है। उनके मराठा सरदार से छत्रपति बनने के मार्ग में बहुत सारी बाधाएं आईं किंतु उन्होंने ने अपने अतुल्य पराक्रम से सबका उन्मूलन करते हुए वे अपने लक्ष्य पर पहुंच कर ही रुके।
मुगल बादशाह औरंगजेब की विराट शाही सेना छत्रपति शिवाजी का बाल बांका भी नहीं कर सकी। शिवाजी अपनी बुद्धिमता और अपनी इष्ट देवी तुलजा भवानी की कृपा के बल पर औरंगजेब से बंधन मुक्त होने में सफल हुए।असहाय जनता के लिए शिवाजी पहले-पहल एक समर्थ रक्षक बनकर उभरे।छत्रपति शिवाजी महाराज निस्संदेह भारत-माता के एक ऐसे सुपुत्र सिद्ध हुए, जिन्होंने देशवासियों के अंदर नवीन उत्साह का संचार किया। शिवाजी यथार्थ में एक आदर्शवादी थे। जिन्होंने मुगलों,बीजापुर के सुल्तान,गोवा के पुर्तग़ालियों और जंजीरा स्थित अबीसीनिया के समुद्री डाकुओं के प्रबल प्रतिरोध के बावजूद दक्षिण में अधर्मी क्रूर मुगल शासकों को पराजित कर 6 जून सन् 1674 में आज ही के दिन एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य की स्थापना की।उन्हीं के प्रयासों से भविष्य में विशाल मराठा साम्राज्य की स्थापना हुई।उनके गुरू दक्षिण भारत में एक महान संत समर्थ गुरु रामदास थे।
शिवाजी की 1680 में कुछ समय बीमार रहने के बाद अपनी राजधानी पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में 3 अप्रैल को मृत्यु हो गई।आज भी देश में छत्रपति शिवाजी का नाम एक महान सेनानी और लड़ाके के रूप में लिया जाता है जिनकी रणनीति का अध्ययन आज भी लोग करते हैं।अखण्ड भारत के निर्माण में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले न्याय,धर्म,सुशासन, राष्ट्रीयता के प्रतीक छत्रपति शिवाजी जैसे पराक्रमी योद्धा की अमर गाथाएं अनन्त काल तक भारतवासियों को गौरवान्वित करती रहेगी।