राज्य में अफसरशाही व जनप्रतिनिधियों के रिश्ते बेहद असहज

- विधानसभा अध्यक्ष को विधायकों ने लिखा पत्र
- अफसरशाही की कार्यशैली पर हमेशा से ही उठे सवाल
देहरादून : प्रदेश में अफसरशाही अक्सर सवालों के घेरे में रहती रही है। यही कारण है कि सूबे में अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों यानि विधायकों के रिश्ते भी सुर्ख़ियों में रहे हैं। इस बार कुछ विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल को पत्र लिखकर शासन व प्रशासन के अधिकारियों पर सहयोग न करने का आरोप लगाते हुए पत्र में कहा है कि विकास कार्य तो दूर, अधिकारी अब उनके फोन तक नहीं उठा रहे हैं। जनप्रतिनिधियों की इस शिकायत के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर सभी अधिकारियों को विधायकों के फोन उठाने और उनकी समस्याओं को सुनना सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।
गौरतलब हो कि राज्य के वजूद में आने के बाद से ही प्रदेश में अफसरशाही व जनप्रतिनिधियों के रिश्ते बेहद सहज नहीं रहे हैं। जनप्रतिनिधि अक्सर अफसरशाही की कार्यशैली पर हमेशा से ही सवाल उठते रहे हैं। सबसे ज्यादा शिकायत इस बात की रहती है कि अधिकारी फोन नहीं उठाते। अब मौजूदा सरकार में भी अधिकारियों की कार्यशैली सवालों के घेरे में है। भाजपा केंद्रीय नेतृत्व व मुख्यमंत्री दरबार के बाद अब विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के सामने गुहार लगाई है, इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर अधिकारियों से विधायकों के फोन उठाना सुनिश्चित करने को कहा है। इससे पहले वन पर्यावरण एवं कौशल विकास मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत, शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय और महिला सशक्तिकरण राज्यमंत्री रेखा आर्य भी अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठा चुकी हैं।
अभी हाल ही में कौशल विकास मंत्री हरक सिंह रावत ने अफसरशाही को कड़ी फटकार लगाई थी। उनकी नाराजगी तब सामने आई, जब नई दिल्ली में केंद्र सरकार द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में विभाग द्वारा जिला स्तर के एक अधिकारी को भेज दिया गया। वापस लौटकर आए हरक सिंह ने इस पर अधिकारियों को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि जिस जिला स्तर के अधिकारी को कार्यक्रम में भेजा गया उसे योजनाओं के संबंध में जानकारी नहीं थी। ऐसे में उन्हें खुद सारी बात संभालनी पड़ी। वहीं, अन्य प्रदेशों से प्रमुख सचिव व सचिव स्तर के अधिकारी उपस्थित थे। उन्होंने कौशल विकास के कार्यों में फर्जीवाड़े का अंदेशा भी जताया।
इससे कुछ समय पहले पंचायती राज मंत्री अरविंद पांडेय द्वारा की गई विभागीय समीक्षा बैठक में यह बात सामने आई कि विभाग में लंबे समय से विभागीय कार्यों की समीक्षा हुई ही नहीं है। इस दौरान आपदा राहत के लिए हुई खरीद में भारी अनियमितता की बातें भी सामने आईं। उन्होंने इस बात पर अचरज जताया कि वर्षों से प्रमुख सचिव का दायित्व देख रहे अधिकारी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। न ही उन्हें कोई जानकारी देने की जरूरत समझी गई। उन्होंने इस पर वर्ष 2016 से अब तक हुई खरीद के लिए एसआइटी जांच के निर्देश दिए। मंत्री की नाराजगी के चलते ही कुछ समय पूर्व संबंधित प्रमुख सचिव से विभाग हटाया गया।
वहीँ कुछ समय पूर्व राज्यमंत्री रेखा आर्य के साथ विभागीय प्रमुख सचिव के विवाद की बात सामने आई थी। आरोप ये थे कि विभागीय प्रमुख सचिव ने बिना मंत्री को विश्वास में लिए तबादले कर दिए थे। इस सूची को बाद में मंत्री ने रुकवा दिया। यह तनातनी इतनी बढ़ी कि प्रमुख सचिव ने बैठकों में आना तक छोड़ दिया। यह मामला मुख्यमंत्री दरबार से लेकर मीडिया तक में सुर्खियां बना रहा।
इतना ही नहीं विधायकों को मुख्यमंत्री के सचिव से शिकायत तो भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के सामने भी उठाया जा चुका है। कई विधायक मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश से खासे नाराज नजर आए हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री दरबार में तक अपर मुख्य सचिव द्वारा फोन न उठाने की शिकायत की है।
राज्य गठन के बाद से ही हर सरकार में अफसरशाही को लेकर सवाल उठते रहे हैं। तिवारी सरकार की बात हो चाहे भुवन चंद्र खंडूडी सरकार की, दोनों ही सरकारों में मंत्रियों ने अफसरशाही के रवैये पर अपनी नाराजगी जताई थी। डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने तो पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद अफसरशाही की कार्यशैली बदलने की बात कही थी। बहुगुणा सरकार में भी मंत्री अधिकारियों से नाराज रहे। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अधिकारियों पर फाइलों को जलेबी की तरह घुमाने तक का आरोप लगाया था।
जगदीश चंद्र (सचिव विधानसभा) का कहना है कि विधायकों से मुलाकात न करना अथवा फोन न उठाना, विशेषाधिकार हनन का विषय है। सदन में यह मामला उठने पर विधानसभा अध्यक्ष, अफसरों को तलब करने के साथ ही सजा भी दे सकते हैं।