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”रे मालू ” गीत पर बवाल तो संगीता ढौंडियाल ने यू ट्यूब से हटाया गाना

”रे मालू” लेकर आई संगीता ढौंडियाल, हजारों ने एक ही दिन में किया था पसंद 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

संगीता ढौंडियाल ने ”रे मालू ” पर विरोध को देखते हुए अपना यह गीत यू -ट्यूब से हटा दिया है और उन्होंने कहा। …मैं राठ क्षेत्र के अपने सभी भाई बंधुओं को यह बताना चाहती हूं कि 31 जुलाई को U TUBE पर निकले मेरे गीत “रे मालू” में “राठ मुल्क” शब्द के प्रयोग के कारण मेरे राठ क्षेत्र के भाई बहनों को ठेस लगी थी। इसलिए आपकी बात को मानते हुए मैंने वर्तमान गीत को तत्काल प्रभाव से वीडियो delete ( हटा) कर दिया है, और अब आपकी भावनाओं के अनुसार ही मैं इसे सुधार कर गीत से “राठ मुल्क” शब्द ही हटा रही हूँ,और नए गीत में इसका कोई जिक्र नही होगा, क्योंकि राठ मुल्क तो मेरा अपना भी है और राठ के सभी भाई- बहनों की भावनाओं का सम्मान करते हुए मैं इस गीत को सुधार कर, और दोबारा रिकॉर्ड कर आपके बीच लाऊंगी और मुझे पूरा विश्वास है कि इस बार आप सभी मुझे अपना पूर्ण सहयोग और आशीर्वाद देंगे ।।

देहरादून : उत्तराखंड के लोककलाकारों में संगीता ढौंडियाल किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है।  तमाम लोकगायकों में संगीता ने नए -नए प्रयोग कर जहाँ अपने उत्तराखंड की संस्कृति को संजय रखने का प्रयास किया है वहीँ उन्होंने उत्तराखंड के खासकर गढ़वाल के पुराने लोक गीतों को नया रूप देकर उन्हें नयी पीढ़ी के सामने कुछ इस तरह प्रस्तुत किया है कि वे भी अपने लोकगीत के संगीत में डूबते चले गए। 

बीते दिन ही संगीता ढौंडियाल ने ”रे मालू ” के गीत को पहाड़ी दगड़्या प्रोडक्शन की टीम के साथ खुद ही कम्पोज किया और गीत के संगीतकार रंजीत सिंह हैं। सोहन चौहान और सैंडी गुसाई ने कोरियोग्राफी की है। गोविंद नेगी इसके डायरेक्टर और कैमरामैन हैं। गीत को तैयार करने में नंदकिशोर हटवाल, अश्वजीत सिंह, अरुण ढौंडियाल, अजय जोशी का भी सहयोग रहा है। इस गीत में जहाँ पहाड़ के गांव की छटा को मनमोहक तरीके से प्रस्तुत किया गया है वहीँ गीत की शूटिंग बेहतरीन तरीके से की गयी है जिससे दर्शक बरबस ही इस विडियो की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।गौरतलब हो कि संगीता के इससे पहले 27 जुलाई को यूट्यूब पर जारी किए गए गीत ढोल दमऊ बची गेन.. को एक करोड़ से अधिक लोग अब तक देख चुके हैं। 

यह गीत पुराने समय में गढ़वाल का राठ क्षेत्र (राठ मुलुक) बहुत दुर्गम इलाका हुआ करता था। रास्ते न होने से वहां जाना बहुत दूभर होता था। पहाड़ों पर चलते हुए कोसों दूर चढ़ाई और उतराई का रास्ता तय कर वहां पहुंचना संभव होता था। उस समय गढ़वाल के अन्य इलाकों की लड़कियां अपने घर वालों से कहती थीं कि उनकी शादी राठ इलाके में नहीं करना।

इसी विषय पर आधारित लोक गीत वहां तब गाए जाते थे। उसी विषय को रीक्रिएट (Re Create) की कोशिश की गयी है उम्मीद है आपको भी पसदं आयेगए यह गीत। 

संगीता ढौंडियाल का कहना है कि नयी धुन, नए कलेवर के साथ. आशा करती हूँ कि आप सबको हमारी ये कोशिश पसंद आएगी। इस गीत में लड़की अपने पिताजी से कह रही है कि – बाबाजी मैं उस राठ मुलुक नहीं जाउंगी।

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