सिर्फ कसमों में हो रही हिमालय बचाने की बात धरातल पर कोई कार्य नहीं: सुरेश भाई

- हिमालय बचाने की बात केवल कसमें खाने तक ही सीमित रह गयीः सुरेश भाई
- हिमालय के विषय पर एक सार्थक बहस की आवश्यकता
- हिमालय को बचाने के लिए राष्ट्रीय हिमालय नीति हो तैयार
- हिमालय में बदलती जलवायु पर भी चिंतन मनन करने की आवश्यकता
देहरादून । राष्ट्रीय हिमालयी नीति अभियान के संयोजक सुरेश भाई ने कहा कि आज हिमालय को बचाये जाने के लिए कसमें खाई जा रही हैं और धरातल पर किसी भी प्रकार का कोई कार्य नहीं हो पा रहा है। उन्होंने कहा कि हिमालय बचाने की बात केवल कसमें खाने तक ही सीमित रह गयी हैं। इस संबंध में सांसदों के नाम एक खुला पत्र जारी किया गया है।
पत्रकारों से बातचीत करते हुए सुरेश भाई ने कहा है कि भारत के 11 हिमालयी राज्यों की भौगोलिक, सामाजिक, पर्यावरणीय स्थिति को ध्यान में रखकर संसद में विवेकपूर्ण और न्यायपूर्ण विचार के साथ हिमालय के विषय पर एक सार्थक बहस की आवश्यकता है जिससे हिमालय के लिए एक ऐसी नीति बने जिसके अनुसार हिमालय विकास का मॉडल पृथक रूप से निर्धारित किया जा सके।
उनका कहना है कि इसके लिए देश भर के सांसदों के नाम एक खुला पत्र जा किया गया है। उनका कहना है कि पहले चरण में ई -मेल के माध्यम से इस पत्र को भारतवर्ष के सांसदों तक पहुंचाया जायेगा और उसके बाद देश भर के सांसदों के डोर टू डोर इस पत्र को पहुंचाया जायेगा। उनका कहना है कि इस पत्र के माध्यम से हिमालय को बचाने के लिए राष्ट्रीय हिमालय नीति तैयार की जानी चाहिए और उनके द्वारा इसका मसौदा भी तैयार किया गया है।
उनका कहना है कि वर्ष 2014-15 में गंगोत्री से गंगा सागर तक चले राष्ट्रीय हिमालय नीति अभियान के दौरान हिमालय लोक नीति विभिन्न माध्यमों से पचास हजार से अधिक हस्ताक्षरों के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा जा चुका है लेकिन आज हिमालय से निकलने वाली गंगा की स्वच्छता पर जितनी बातें हो रही है उससे कहीं अधिक हिमालय में बदलती जलवायु पर भी चिंतन मनन करने की आवश्यकता है और इसके लिए केन्द्र सरकार कोई स्पष्ट नीति तैयार नहीं कर पा रही है और हिमालयी राज्यों में वनों का अंधाधुंध विनाश, नदियों की अविरलता में छेडछाड़, विस्थापन, ग्लेशियरों का पिघलना हिमालयी समा को प्राकृतिक संसाधनों के अधिकारों से अलग रखना और हिमालय का पानी हिमालय वासियों के काम न आना, महिलाओं का बढता बोझ, छोटे व सीमांत किसानों का बेजमीन होना चिंता का विषय है।
उनका कहना है कि सांसदों के नाम लिखे गये पत्र में एक समय हिमालय नीति बनाने के लिए दवाब बनाया जा रहा है और हिमालय लोक नीति का दस्तावेज भी सांसदों को सौंपा जायेगा और इसके लए अगले एक वर्ष तक लगातार सांसदों से संपर्क किया जायेगा और इस दौरान हिमालय के बारे में कई शोधपूर्ण जानकारी भी सांसदों को उपलब्ध करवाई जायेगी। इस अवसर पर वार्ता में प्रोफेसर वीरेन्द्र पैन्यूली, जगत सिंह जंगली, डा. अरविन्द दरमोडा, प्रवीन कुमार भटट, डा. बी पी मैठाणी, प्रेम पंचोली आदि मौजूद रहे।