बड़ा सवाल : ऐसे में कैसे होगी राष्ट्रीय पार्क की देखभाल और वन्य जीवों की सुरक्षा
पार्क का रखरखाव और सुरक्षा की जिम्मेदार अधिकारी न तो खुद पैदल चलने में सक्षम हैं और न रात्रि को गश्त लगाने को ही फिजिकली फिट
राजेंद्र जोशी
देहरादून : उत्तराखंड का सौभाग्य ही कहा जाएगा इस राज्य को राज्य गठन के दौरान परिसम्पत्तियों के बंटवारे में वन्य जीवों से भरपूर, प्राकृतिक सम्पदाओं और संसाधनों से परिपूर्ण और नैसर्गिक दृश्यों से लबालब कॉर्बेट पार्क और राजाजी पार्क जैसे अभयारण्य मिले, लेकिन दुर्भाग्य की बात तो यह रही इन पार्क का रखरखाव और सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन कन्धों पर रही वे अधिकारी न तो पैदल चलने में सक्षम रहे और न ही उनकी भावनाएं यहाँ के वन्य जीवों के प्रति प्रेम और प्यार वाली रही और न वे यहाँ की सुरक्षा ही ठीक से कर सके यही कारण है की गाहे-बगाहे ऐसे अधिकारियों पर वन्य जीव तस्करों से सांठ-गाँठ के आरोप तक लग चुके हैं। नतीजा आपके सामने है बीते वर्षों में अब तक आधा दर्जन से ज्यादा हाथी दुर्घटनाओं के शिकार हो चुके हैं तो लगभग इतने ही बाघ या तो मारे जा चुके हैं और इतने ही गायब हो चुके हैं बाकी के वन्य जीवों के मामले तो सामने अभी तक आये ही नहीं।
वन्य जीव विभाग के अधिकारियों और वन्य जीव तस्करों का गठजोड़ भी खुद वन्यजीव विभाग की तमाम जान रिपोर्ट्स में सामने आ चुका है, कई बार ऐसे वन्य तस्कर पकडे भी जा चुके हैं लेकिन ऊपर से नीचे तक विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और मिली भगत के सब मामले दबाये जाते रहे हैं। केंद्र सरकार से प्रतिवर्ष वन्य जीवों को बचाने के लिए मिलने वाली धनराशि की बंदरबांट नीचे से ऊपर तक होती रही है, परिणाम स्वरूप अब के कई घोटाले अभी भी कागजों में तस्करी कर मार डाले गए वन्य जीवों की तरह दफन हैं।
प्रदेश के पार्क चाहे कॉर्बेट नेशनल पार्क हो या राजाजी राष्ट्रीय पाक या प्रदेश के ऊंचाइयों पर स्थित अन्य पार्क सभी की हालत अक्षम और अकर्मण्य अधिकारियों की तैनाती के कारण दिन-ब -दिन बद से बदतर होती जा रही है। एक अधिकारी के पास चार-चार पदों का दायित्व है लेकिन वह एक भी पद का ईमानदारी से निर्वहन नहीं कर पा रहा है। कहीं वह बर्फ पड़ने के कारण न जाने का बहाना बनाता है तो कहीं उसके चहेते अधिकारी केंद्र से मिले रुपयों की बंदरबांट में उसका हिस्सा कोई और न डकार जाए को लेकर उसे तराई में पदों की कुर्सी पर ही चिपके रहने देना चाहता है। चर्चा तो यह भी है प्रदेश के पार्क की जिम्मेदारी ऐसे अधिकारियों के हाथों में हैं जो सेवनिवृति के करीब पहुँच चुके हैं ऐसे में ये अधिकारी जाते-जाते माल बटोरने पर विश्वास रखते यहीं न कि मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस पर।
चर्चा है पार्कों की जिम्मेदारी ऐसे अधिकारियों को दे दी गई है जो ठीक से खुद चल भी नहीं सकते, ऐसे अधिकारी क्या ख़ाक पार्क में गश्त लगाएंगे। ऐसे अधिकारी मुख्यालय में मिली अपनी कुर्सी पर सिगरेट सुलगाते हुए आपको मिल जायेंगे, चर्चा तो यहाँ तक है ऐसे अधिकारी अपने कार्यालय में शराब तक का सेवन करने से भी परहेज़ नहीं करते। कार्यालय में आगंतुकों का सम्मान करना इन्होने सीखा ही नहीं। चर्चा है ऐसे धूर्त अधिकारियों के कारण वन महकमें की छवि धूमिल ही नहीं हो रही बल्कि दिन ब दिन गर्त में जाती नज़र आ रही है।