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ठेका वाहनों को बनायें सवारी वाहन : मोटर कानून में करे सरकार संशोधन

आपदा अथवा संकट के समय भी ये समाज और सरकार के लिए वरदान सिद्ध होते ऐसे वाहनों से काम चलाए सरकार 

रमेश गैरोला ”पहाड़ी”
रुद्रप्रयाग : वाहनों में किराए को नियंत्रित करने की मेरी माँग पर परिवहन विभाग की तरफ से बताया गया है कि सवारी वाहनों का किराया तो परिवहन प्राधिकरण अथवा सरकार निर्धारित कर सकती है लेकिन कॉन्ट्रेक्ट कैरिज अर्थात ठेका गाड़ी, जिनमें मोटर कैब और मैक्सी कैब भी शामिल हैं, का किराया वाहन स्वामी और सवारी आपसी सहमति से तय करते हैं और मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत उसमें सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती। इस कानून में वाहनों की परिभाषा के अंतर्गत कॉन्ट्रेक्ट कैरिज (ठेका गाड़ी) में छोटे सवारी वाहन शामिल किए गए हैं। इनमें 2 प्रमुख वाहनों का वर्गीकरण निम्नवत है :
1. मोटर कैब- वह छोटा सवारी वाहन, जिसमें चालक के अलावा 6 सवारियां बैठ कर यात्रा कर सकतीं हैं।
2. मैक्सी कैब- वह छोटा सवारी वाहन, जिसमें 7 से 12 सवारियां बैठ कर यात्रा कर सकतीं हैं।
इन दोनों श्रेणियों में पंजीकृत वाहन किसी एक विंदु से चलकर दूसरे विंदु तक सवारी छोड़ने के लिए सवारियों और चालक/मालिक की आपसी सहमति से बुकिंग के आधार पर चलती हैं। इनका किराया किलो मीटर के हिसाब से तय होता है और उसका उल्लंघन होने पर ही परिवहन विभाग उसमें हस्तक्षेप कर सकता है। ये वाहन नियमतः रास्ते की सवारियां नहीं उठा सकते या कानूनी रूप से सवारी गाड़ियों की तरह स्थान-स्थान पर सवारियां लादने या उतारने के लिए अधिकृत नहीं हैं। इसीलिए इन्हें ठेका वाहन नाम दिया गया है। ये किसी एक सवारी अथवा सवारियों के समूह को अधिकतम अनुमन्य संख्या तक, एक स्थान से किसी दूसरे स्थान तक ढोने के लिए ही अधिकृत हैं।
पहाड़ी, पठारी, मरुस्थली, जंगली, कस्बाई जैसे विरल आबादी वाले क्षेत्रों में, जहाँ सवारियां कम संख्या में होतीं हैं, में बस सेवायें बहुत कम हैं। क्योंकि सवारियां कम होने के कारण उन्हें अपेक्षित लाभ नहीं मिलता और ये सेवाएं नियमित रूप से नहीं चल पातीं या कई बार महीनों तक भी नहीं चलतीं हैं। इसलिये कम सवारियों वाले क्षेत्रों में लोगों को इन मोटर कैब अथवा मैक्सी कैब की सेवाएं ही सुलभ हो पातीं हैं। ग्रामीण अंतरालों में मोटर सड़कों का जाल बिछ जाने से इन छोटे वाहनों की उपलब्धता के कारण लोगों को यातायात की सुविधा आसानी से और समय के कम अंतराल में सुलभ हो जाती हैं, जो कि अत्यंत महत्वपूर्ण है। यही नहीं, इससे हजारों की संख्या में लोगों को रोजगार भी प्राप्त हुआ है। इस प्रकार इन छोटे वाहनों से जहाँ एक ओर लोगों को आवागमन की सुविधा प्राप्त हुई है और आपदा अथवा संकट के समय भी ये समाज और सरकार के लिए वरदान सिद्ध होते हैं, वहीं दूसरी ओर आजीविका तथा बैंकिंग के क्षेत्र में ये अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
इसलिए सरकार को कम आबादी वाले क्षेत्रों, विशेषकर उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में इन वाहनों को नियमित सवारी गाड़ियों के रूप में संचालित करना चाहिए। इसके लिए मोटर वाहन अधिनियम में बदलाव करने के अलावा इसे एक उद्यम के रूप में संचालित करने वाले प्रशिक्षित लोगों को आसानी से कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराने, पूँजी उपादान देने, असामान्य स्थितियों में किश्त जमा न करने पर बैंकों का उत्पीड़न रोकने, बीमा की उदार व्यवस्था करने, संचालन के लोकोन्मुखी नियम बनाने और चालकों को सम्मानजनक दृष्टि से देखने जैसे उपाय किये जाने चाहिए।
उत्तराखण्ड में तो इसकी तुरन्त ही आवश्यकता है। इसलिए राज्य सरकार और उत्तराखण्ड के आठों सांसदों को इसके लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहिए।
(कानूनी सलाह एडवोकेट. प्यार सिंह नेगी जी से साभार)

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