गज़ब : जनाब M.Sc. तो Physics से PhD हैं फॉरेस्ट्री से और अस्सिटेंट प्रोफ़ेसर है कंप्यूटर Science के और बन बैठे हैं कुमाऊँ विश्वविद्यालय के VC
कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल के कुलपति की नियुक्ति पर उठे सवाल और उसे रद्द करने सहित नियुक्तिकी जांच के संबंध में राज्यपाल को पत्र
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : उत्तराखंड अपने अस्तित्व में आने के दिन से लेकर आज तक तमाम नयाब कारनामों को लेकर चर्चाओं में रहता रहा है। राजनीतिक उठापटक के बाद यहां की शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों तक में ऐसे -ऐसे कारनामें सामने आये हैं और आते जा रहे हैं संभवतः देश के किसी भी राज्य में यह देखने को मिले। छात्रवृति घोटाले का मामला सबके सामने है , तमाम ऐसे शैक्षणिक संस्थान और विद्यालयों के प्रबंधन ने समाज कल्याण विभाग से मिलकर सैकड़ों करोड़ रूपये गरीब छात्रों के छात्रवृति के नाम पर ऐसे डकारा कि पानी भी नहीं पिया, अब पकड़े जाने के डर से करोड़ों रुपया सरकार के ख़ज़ाने में जमा करवा रहे यहीं और अपने आप को पाक साफ़ बतानी की कोशिश में हैं। लेकिन इन्हे नहीं पता चोर पकड़े जाने और लूट की रकम बरामद हो जाने की बाद भी चोर ही कहलाता है वह कभी सफेदपोश नहीं हो सकता।
ठीक इसी तरह के तमाम “खेल” उत्तराखंड के तमाम विश्वविद्यालयों में भी हो रहे हैं। दून विश्वविद्यालय का ताज़ा मामला भी आपके सामने हैं जहाँ नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेश के बाद कुलपति को कुर्सी से हटना पड़ा था। ठीक ऐसा ही ठीक ऐसा ही एक और मामला कुमाऊं विश्व विद्यालय का सामने आया है जहां वर्तमान में तैनात कुलपति की तैनाती में तो गज़ब ही हो रखा है। जनाब M.Sc. तो Physics से हैं और उन्होंने PhD हैं फॉरेस्ट्री से की है जबकि Associate Professor हैं कंप्यूटर Science के और अब कुमाऊँ विश्वविद्यालय के वीसी की कुर्सी पर विराजमान हैं , इतना नहीं वीसी के लिए जो पहली अहर्ता होतो है वह होती है उनके किसी पब्लिकेशन की जनाब का आज तक न तो कोई शोध पत्र का ही कहीं पब्लिकेशन हुआ है और न इन्होने लिखा है । तो भला ये जनाब कैसे कुमाऊं विशे विद्यालय के कुलपति बन गए हैं यह जांच का विषय तो बनता ही है। इसके लिए राज्य के तमाम सुधीजनों ने कुलपति के कारनामों को लेकर राज्यपाल उत्तराखंड जो कि विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति भी हैं को पत्र लिखकर जांच की मांग ही नहीं की बल्कि इनकी नियुक्ति को ही निरस्त करने की मांग की है। पहला पत्र उत्तराखंड के जनसरोकारों से सम्बन्ध रखने वाले और सक्रिय रहने वाले पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष इन्द्रेश मैखुरी ने लिखा है। इसे आप भी पढ़िए तो सारी बात आपके सामने साफहो जाएगी कि कुमाऊं विश्व विद्यालय के कुलपति के चयन में कितनी बड़ी गड़बड़ी हुई है बात गड़बड़ी तक ही सीमित नहीं चयन प्रक्रिया पर भी यह पत्र सवालिया निशान लगाता है।
प्रति,
महामहिम राज्यपाल महोदया,
उत्तराखंड शासन,
देहरादून(उत्तराखंड)
विषय : कुमाऊँ विश्वविद्यालय,नैनीताल के कुलपति की नियुक्ति रद्द करने व नियुक्तिकी जांच के संबंध में।
महामहिम,
बीते कुछ अरसे से राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों में नियुक्ति और विशेष तौर पर कुलपति पद की नियुक्ति निरंतर विवादास्पद होती जा रही है। ऐसा तब हो रहा है,जबकिराज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति पद की नियुक्ति संबंधी विज्ञापनों में नियुक्ति संबंधी अर्हताओं और आवश्यक योग्यताओं का स्पष्ट उल्लेख होता है। राज्य के विश्वविद्यालयों में नियुक्ति के संबंध में एक अनिवार्य शर्त है कि कुलपति पद पर नियुक्ति चाहने वाले अभ्यर्थी को अनिवार्य रूप से दस वर्ष तक प्रोफेसर होना चाहिए।
दस वर्ष प्रोफेसर होने की अनिवार्य शर्त के पूरा न होने के कारण ही माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल ने 03 दिसंबर 2019 को सुनाये गए अपने फैसले में दून विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ। चंद्रशेखर नौटियाल को कुलपति पद से बर्खास्त कर दिया था।
महामहिम,ऐसा ही मामला कुमाऊँ विश्वविद्यालय,नैनीताल के कुलपति नियुक्त किए गए प्रो। एन। के। जोशी का भी प्रतीत होता है।
कुमाऊँ विश्वविद्यालय,नैनीताल के कुलपति पद के लिए आवेदन आमंत्रित करने वाली विज्ञप्ति में उल्लेख था कि आवेदक को “। । विश्वविद्यालय में कम से कम दस वर्षों के लिए आचार्य के रूप में अनुभव या एक प्रतिष्ठित अनुसंधान या शैक्षणिक प्रशासनिक संगठन में शैक्षणिक नेतृत्व के साक्ष्य के साथ 10 वर्षों के अनुभव के साथ एक विशिष्ट शिक्षाविद होना चाहिए। ”
महामहिम, सूचना के अधिकार अधिनियम,2005 के अंतर्गत प्राप्त प्रो। एन। के। जोशी के बायोडाटा को देख कर यह स्पष्ट होता है कि कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति पद के लिए चयन समिति द्वारा विज्ञापन में उल्लिखित उपरोक्त अनिवार्य अर्हता को प्रो। एन। के। जोशी पूरा नहीं करते हैं। उनके बायोडाटा से स्पष्ट है कि प्रो. एन. के. जोशी ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय में नियुक्ति से पूर्व किसी सरकारी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर कार्य नहीं किया। प्रोफेसर होने का उनका जो भी दावा है, वो निजी संस्थानों का है,जहां की नियुक्ति प्रक्रिया की वैधता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने का कोई माध्यम या पैमाना नहीं है।
महामहिम, इन निजी संस्थानों में पद और पदनाम किस कदर मनमाने तरीके से प्रयोग किए जाते हैं,इसका अंदाजा प्रो। एन। के। जोशी के बायोडाटा और उनके प्रकाशनों की सूची से लगा सकते हैं। चयन समिति के सम्मुख प्रस्तुत अपने बायोडाटा में प्रो। एन। के। जोशी ने लिखा है कि वे 16 अगस्त 2017 से उत्तरांचल विश्वविद्यालय, देहारादून के कुलपति हैं। लेकिन उनके एक शोध पत्र,जिसका शीर्षक है “ Extended Multi Queue Job Scheduling in Cloud”, जिसमें वे तृतीय लेखक (Third Author) हैं,नवंबर 2017 में प्रकाशित इस शोध पत्र में प्रो.एन. के. जोशी ने स्वयं को Director,Uttaranchal Institute of Technology,Uttaranchal University,Dehradun लिखा है। व्यक्ति यदि कुलपति के सर्वोच्च पद पर आसीन है तो वह स्वयं को डाइरेक्टर क्यूँ लिखेगा ? ऐसा इसलिए क्यूंकि निजी संस्थानों में सारे पदों पर पदोन्नति की न तो कोई निर्धारित प्रक्रिया है, न उसकी कोई अहमियत।
आश्चर्यजनक यह है कि स्वयं को 15 वर्षों से प्रोफेसर बताने वाले एन.के. जोशी साहब का पहला प्रकाशन (publication) 2017 का है। बिना किसी प्रकाशन के कोई व्यक्ति प्रोफेसर कैसे हो सकता है ?
प्रकाशनों (publications) की बात आई है तो यह भी गौरतलब है कि जिन जर्नल्स(journals) में प्रो. एन. के. जोशी ने स्वयं के शोध पत्र प्रकाशित होना,बायोडाटा में दर्शाया है,उनकी अकादमिक वैधता भी संदिग्ध है। जैसे प्रो. एन. के. जोशी के नवंबर 2017 के जिस शोध पत्र का ऊपर उल्लेख किया गया है,वह International Journal of Computer Science and information Security में प्रकाशित हुआ है। उक्त जर्नल के बारे में https://predatoryjournals। com/ नामक वैबसाइट बताती है कि यह प्रेडटरी जर्नल( predatory journal) हैं। प्रेडटरी जर्नल, अकादमिक जगत में उन जर्नल्स को कहा जाता है,जिनके पास शोध पत्र की गुणवत्ता परखने का कोई पैमाना नहीं होता और जो लेखकों से भारी धनराशि के एवज में उनके शोध पत्र प्रकाशित करते हैं। जाहिर सी बात है कि प्रेडटरी जर्नल में छपे शोध पत्रों का अकादमिक जगत में महत्व शून्य है। प्रो.एन.के. जोशी के बायोडाटा में दर्शाये गए शोधपत्र ऐसे ही प्रेडटरी जर्नल्स में छपे हैं,जो किसी भी अकादमिक व्यक्ति की प्रतिष्ठा को धूसरित करते हैं।
महामहिम प्रो. एन. के. जोशी द्वारा अपने बायोडाटा में पीएच. डी. बिना किसी विषय के तथा केवल शोध शीर्षक के साथ 1996 में पूर्ण करना दर्शाया गया है। जबकि एफ़आरआई, देहरादून की वैबसाइट के अनुसार इनकी पीएच. डी. फारेस्टरी विषय में 28 जनवरी 1998 को दर्शायी गयी है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रो. एन. के. जोशी द्वारा अपने बायोडाटामें पीएच. डी. के संबंध में भी सही तथ्य नहीं दिये गए हैं।
प्रो. एन. के.जोशी द्वारा अपने बायोडाटा में अपने आप को Fellow at Centre for Advance Engineering Study (CAES), Massachusetts Institute of Technology (MIT), Boston, USA, 1980 लिखा गया है। जबकि Fellow केवल अकादमिक सोसाइटी द्वारा प्रदान किया जाता है,न कि किसी संस्थान या विश्वविद्यालय द्वारा। अतः यह जानकारी भी संदिग्ध प्रतीत होती है।
प्रो.एन.के.जोशी अपने बायोडाटा में लिखते हैं कि 2003-09 तक वे Missouri Universityof Science and Technology,Rolla,USA से संबद्ध कॉलेज में ओमान में Professor (Computer Science) थे और ठीक इसी अवधि में यानि 2003-09 में वे Missouri Universityof Science and Technology,Rolla,USA में Adjunct Professor थे। एक व्यक्ति एक विश्वविद्यालय के दूसरे देश में संबद्ध कॉलेज में पूर्णकालिक Professor हो और उक्त विश्वविद्यालय के मूल देश में उस विश्वविद्यालय में Adjunct Professor हो,यह दावा भी भ्रामक और संदेहास्पद प्रतीत होता है।
प्रो.एन.के.जोशी के बायोडाटा के अनुसार 2017 के पूर्व इनका कोई भी शोध पत्र, किसी अकादमिक जर्नल (Journal) में प्रकाशित नहीं हुआ है। केवल कॉन्फ्रेंस/ सेमिनार बायोडाटा में दर्शाये गए हैं। इसका सीधा अर्थ यह है कि 2017 से पहले प्रो.एन.के.जोशी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(यूजीसी) द्वारा निर्धारित अर्हता पूरी ही नहीं करते थे तो उनके 15 वर्ष तक प्रोफेसर रहने का प्रश्न ही नहीं उठता।
प्रो. एन. के जोशी के बायोडाटा के अनुसार उन्होंने एम. एससी. (फ़िज़िक्स) 1983 तथा पीएचडी (फॉरेस्ट्री)की उपाधि 1996 में प्राप्त की। प्रो.एन.के.जोशी स्वयं को Associate Professor(Computer Science and MIS) 1997-99, Associate Professor (Information Technology)1999-2002,Professor (Information Technology) 2002-03,Professor (Computer Science)2003-09 तथा Director&Professor (Computer Science) 2009-11 बताया है। लेकिन Computer Science या Information Technology की किसी उपाधि का जिक्र प्रो. एन. के. जोशी के बायोडाटा में नहीं है, जिससे पूरा मामला संदिग्ध प्रतीत होता है।
महामहिम,कुमाऊँ विश्वविद्यालय,नैनीताल के कुलपति पद हेतु चयन समिति की ओर से जारी विज्ञप्ति में अभ्यर्थी से प्रोफेसर के रूप में सेवा अवधि/ राष्ट्रीय अवार्ड / प्रकाशन की अपेक्षा की गयी थी। परंतुप्रो। एन। के। जोशीके बायोडाटा को देख कर स्पष्ट होता है कि वे इनमें से किसी पैमाने पर खरे नहीं उतरते हैं। इसके बावजूद कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर उनकी नियुक्ति हैरतंगेज़ और एक उत्कृष्ट अकादमिक संस्थान के तौर पर कुमाऊँ विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाली है।
अतः महामहिम से निवेदन है कि उक्त तथ्यों के आलोक में कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर प्रो। एन। के। जोशी की नियुक्ति को तत्काल रद्द करने की कृपा करें। साथ ही कुलपति पद पर नियुक्ति हेतु स्पष्ट अर्हताओं के उल्लेख के बावजूद,किन परिस्थितियों में एक अनर्ह व्यक्ति की नियुक्ति की गयी, इस बात के जांच के आदेश भी निर्गत करने की कृपा करें।
सधन्यवाद, सहयोगाकांक्षी,इन्द्रेश मैखुरी, पूर्व अध्यक्ष छात्र संघ हे. न. ब. गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर(गढ़वाल) द्वारा-परिवर्तन लाइब्रेरी,निकट पंजाब नेशनल बैंक,कर्णप्रयाग(चमोली),उत्तराखंड