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रेखा धस्माना व हीरासिंह राणा को मिला स्व.चंद्रसिंह राही सम्मान

  • सुप्रसिद्ध लोक कलाकार स्व. चन्द्रसिंह राही की तीसरी पुण्यतिथि 
  • उत्तराखंङ फिल्म एवं नाट्य संस्थान की ओर से राही जी को श्रद्धांजलि 

सी एम पपनै

नई दिल्ली। उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध लोकगायक स्व.चन्द्रसिंह राही की तीसरी पुण्यतिथि पर इण्डिया हैबिटेड सेंटर मे आयोजित कार्यक्रम मे उत्तराखंड के प्रवासी प्रबुद्ध जनों व उनके परिजनों ने उनके चित्र पर फूल अर्पित कर दो मिनट का मौन रख भावभिनी श्रद्धांजलि अर्पित की। श्रद्धांजलि अर्पित करने वालो मे स्व.राही की धर्मपत्नी श्रीमती सुधादेवी पुत्र सतेंद्र नेगी, महेंद्र नेगी, राकेश भारद्वाज, छोटे भाई देवराज रंगीला, पुत्री विद्योत्तमा व सतीश राही भी मौजूद थे।

इस अवसर पर सुप्रसिद्ध लोकगायक स्व. चन्द्रसिंह राही के द्वारा रचित व उनके द्वारा गाए व संगीतबद्ध जागर, लोकगीत व गजल अनेको युवागायकों द्वारा अपने प्रिय लोकगायक की याद मे प्रस्तुत किए गए।

आयोजक संस्था ‘पहाड़ी सोल’ ने उत्तराखंड के अनेकों लोकगायकों व समाजसेवियो को स्व.चंद्रसिंह राही सम्मान से सम्मानित किया।

सम्मानित होने वाले उत्तराखंड के लोकगायकों मे हीरासिंह राणा व रेखा धस्माना तथा विभिन्न क्षेत्रो मे उत्कृष्ट कार्यो हेतु आशीष डबराल, नेत्र सिंह असवाल व गुंजन डंगवाल को भी सम्मानित किया गया।

पुण्यतिथि को यादगार बनाने के लिए हैबिटैट सेंटर के खुले सभागार मे मौजूद सैकड़ो श्रोताओं की उपस्थिति मे स्व. चन्द्रसिंह राही की रचनाओं व उनके गाए व संगीतबद्ध जागर, लोकगीत, गजल, इत्यादि को उनके पुत्र राकेश भारद्वाज के संगीत निर्देशन व सत्येन्द्र नेगी के सानिध्य मे प्रस्तुत किया गया।

स्व. चन्द्रसिंह राही के जीवन पर्यन्त उत्तराखंड की लोकसंस्कृति के उत्थान के लिए किए कार्यो पर एक प्रभावशाली डोक्यूकमैंट्री भी श्रोताओं के बीच प्रदर्शित की गई।

देव राज रंगीला ने अपने बड़े भाई स्व.चन्द्रसिंह राही को श्रद्धाजंलि स्वरूप भाई की गाई जागर ‘पांडव वार्ता’ डोर वाद्य बजाकर प्रवीण गुसाईं के द्वारा बजाई थाली की संगत मे प्रस्तुत की। जागर देव स्तुति के बोल थे-

…हरी केदार के ध्यान दिया…तू रखवाली जगवाली… विश्व की पालन करने वाली माता…

रोहित चौहान ने सतीश नेगी की ढोलक की संगत मे गीत गाया-
दाड़ी कांठी जन की तन छ मनखी बदलना।
उत्तराखंडी रीति रिवाज चाल बदलि गये……

स्व. राही जी की 70 के दशक मे रची गजल बहुत ही प्रभावशाली ढंग से दिल्ली विश्वविघालय संगीत के शिक्षक मोहित डोभाल ने प्रस्तुत की-
खैरी लैरी कैनै दयाड…जिकुली की पीड़ा कैलै बताड़….

नेहा खंखरियाल व राकेश भारद्वाज का लोकगीत-
गोरु चरोला द्वी रसूइयो का बोल… गीतों का झमकारों को बासुरी बजालो….

राही जी की 1950 की रचना लोकगीत देवराज रंगीला ने प्रस्तुत की-
मोटर बुलैदै लठ्ठ…हरजा का झीस झीस… हरी हो… बाज की अछाडी अछाडी म्यार गौ आली ज्यू चोंक खैली…

भुवनेश नैथानी ने गाया-
अपड़ी थाती मे लौटि के ऐजा…

राकेश भारद्वाज व मेघना चंद्रा ने लोकगीत गाया-
थिकडू बानू.. मेरी कमर पीड़ है जाली…. मिथै साली भूख लैगी छै….

भुवनेश नैथानी ने स्व. राही जी की सूफी संगीत की रचना गाई-
अपना नसीब बड़ा ….

बाल कृष्ण शर्मा ने गाया-
सात समुंदर पार …..

ज्योति पवार व राहुल पवार-
रुमझुम कै मेहण लेगो….

रोहित नैथानी-
ये जो स्यारियो मा….

मोहित डोभाल-
मंसूरी पहाड….

नेहा खंखरियाल व मेदना चंद्र – जरा ठंडो चला दे…..

सुविख्यात रचनाकार व लोकगायक स्व.चन्द्रसिंह राही के गाए सदाबहार सुप्रसिद्ध लोकगीतों, गजल व अन्य रचनाओं को सुनने व उनकी तीसरी पुण्यतिथि पर नमन करने के लिए देर रात्रि तक खुले सभागार की ठण्ड मे मौजूद उत्तराखंडियों की मौजूदगी स्पष्ट बयां कर रही थी उत्तराखंड के इस लोक कलाकार की प्रसिद्धि व दिल्ली प्रवास मे उनके लोकगायन के क्षेत्र मे दिए 53 वर्ष के अस्मरणीय अमिट योगदान की।

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