CRIME

जानिए क्या होता है ब्लैक वारंट जिसमें सबकुछ होता है तय, नाम, दिन, समय, जगह और जेल

जेल प्रशासन दोषियों की फांसी के लिए पटियाला हाउस कोर्ट में ब्लैक वारंट जारी करने के लिए दाखिल करेगा याचिका

 फांसी में हर चीज ब्लैक होती है ब्लैक कपड़े, ब्लैक वॉरेंट और  ब्लैक थैला 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

निर्भया की मां बोली -सात साल इंतजार किया, एक सप्ताह और सही

निर्भया की मां ने कहा कि उसे सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा है और उम्मीद है कि कोर्ट निर्भया के दोषी अक्षय की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर देगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि 18 दिसंबर को पटियाला हाउस कोर्ट भी दोषियों का ब्लैट वारंट जारी कर देगी।

कोर्ट से बाहर आई निर्भया की मां ने कहा कि जब सात साल रुके तो सात दिन का इंतजार कोई लंबा नहीं है। बेटी को इंसाफ मिलने की घड़ी अब नजदीक है। अब एक सप्ताह और सही।

देहरादून : निर्भया के दोषियों की फांसी की तारीख 18 दिसंबर को तय होगी। शुक्रवार को पटियाला हाउस कोर्ट में निर्भया के माता-पिता की याचिका पर सुनवाई टाल दी गई।जबकि 17 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में दोषी अक्षय की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई होनी है। माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट से अक्षय की याचिका खारिज होने के बाद जेल प्रशासन 18 दिसंबर को दोषियों की फांसी के लिए पटियाला हाउस कोर्ट में ब्लैक वारंट जारी करने के लिए याचिका दाखिल करेगा।

गौरतलब है कि इन दरिंदों ने 16-17 दिसंबर 2012 की रात पैरामेडिकल छात्रा निर्भया से दुष्कर्म कर उसकी नृशंस हत्या कर दी थी। हम आपको बता रहे हैं कि जब किसी को फांसी दी जाती है तो उसके साथ वहां कौन-कौन लोग मौजूद होते हैं। क्योंकि इसके लिए भी नियम बनाए गए हैं। कौन होते हैं वो पांच लोग? क्या होता है ब्लैक वारंट?

  • नियमों के आधार पर ब्लैक वांरट लोअर कोर्ट द्वारा जारी किया जाता है।

  • भले ही ब्लैक वांरट कोर्ट के माध्यम से जारी होता है, पर फांसी का वक्त जेल सुपरिंटेंडेंट द्वारा निर्धारित किया जाता है।

  • उसके बाद कोर्ट को सुपरिंटेंडेंट तय समय बताता है।

  • जब एक बार वारंट जारी हो जाता है तो फांसी से जुड़ी सभी तैयारियों में भी देरी नहीं होती है।

  • नियमों के मुताबिक जेल मैनुअल में ब्लैक वारंट जारी होने के 15 दिन बाद फांसी दी जाती है। पर ये नियम कुछ हालात में सरकार द्वारा बदला भी जा सकता है।

  • ट्रायल कोर्ट द्वारा ब्लैक वारंट जारी करने के बाद सेशन जज और DG तिहाड़ को जेल सुपरिटेंडेंट फांसी का वक्त बताता है।

  • चूंकि फांसी के समय जेल में बहुत गमगीन माहौल बन जाता है इसलिए सभी कैदी अपनी बैरक में बंद होते हैं।

निर्भया मामले में चारों दोषियों को फांसी पर लटकाए जाने की तैयारी शुरू हो गई है। दोषियों की कानूनी जरूरतों के पूरा होने के बाद जेल प्रशासन सबसे पहले कोर्ट से ब्लैक वारंट यानी डेथ वारंट जारी कराएगा। डेथ वारंट में एक फार्म नंबर-42 होगा, जिसमें दोषियों की फांसी की सजा की जानकारी विस्तार में लिखी होगी।

फार्म संख्या-42 के पहले कॉलम में उस जेल का नंबर लिखा होता है, जिसमें दोषियों को फांसी दी जाएगी। उसके अगले कॉलम में फांसी पर चढ़ने वाले दोषियों के नाम लिखे होते हैं। उसके अगले कॉलम में केस का एफआईआर नंबर लिखा जाता है। अगले कॉलम में उस तारीख का जिक्र होता है जिस दिन ब्लैक वारंट जारी होता है।

केवल पांच लोग जो फांसी की सजा देते वक्त रह सकते हैं मौजूद ….

  1. जेल सुपरिटेंडेंट

  2. डिप्टी सुपरिटेंडेंट

  3. RMO (Resident Medical Officer)

  4. चिकित्सा अधिकारी (डॉक्टर)

  5. मजिस्ट्रेट या ADM

  6. इसके अलावा दोषी जिसे फांसी हो रही है वो चाहे तो वह उसके धर्म का कोई भी नुमाइंदा जैसे पंडित, मौलवी भी फांसी होते हुए देख सकता है।

फिर फांसी के दिन की तारीख, समय और किस जगह फांसी दी जाएगी यह सब लिखा होता है। फार्म के अगले कॉलम में स्पष्ट लिखा होता है कि जिन लोगों को फांसी दी जा रही है उन्हें तब तक फांसी के फंदे पर लटकाया जाए जब तक उनकी मौत न हो जाए। सबसे नीचे समय, दिन और ब्लैक वारंट जारी करने वाले जज के हस्ताक्षर होते हैं। दोषियों को फांसी होने के बाद जेल प्रशासन को उनकी मौत से जुड़े कागजात और फांसी हो गई है इसकी लिखित जानकारी अदालत को देनी होती है।

अल सुबह खामोशी में दी जाएगी फांसी

जेल मैनुअल के मुताबिक सुबह सूर्योदय के बाद ही फांसी देने का रिवाज है। आमतौर पर गर्मियों में सुबह छह बजे और सर्दियों में सात बजे फांसी दी जाती है। आमतौर पर गर्मियों में सुबह छह बजे और सर्दियों में सात बजे फांसी दी जाती है।   

फांसी से पहले दोषी को नहलाया जाता है

फांसी घर लाने से पहले दोषी को सुबह पांच बजे ही नहलाया जाता है। उसके बाद उसे नए कपड़े पहनाए जाते हैं। फिर उसे चाय पीने के लिए दिया जाता है। साथ ही उनसे नाश्ता के बारे में पूछा जाता है। अगर कोई नाश्ता करना चाहता है तो उसे नाश्ता दिया जाता है। उसके बाद मजिस्ट्रेट दोषी से उनकी आखिरी इच्छा के बारे में पूछते हैं।  

सब कुछ इशारों में ही होता है पहले रूमाल गिरेगा फिर लिवर खिंचेगा 

फांसी देते वक्त कोई आवाज न हो इसके लिए पूरे बंदोबस्त किए जाते हैं। जब फांसी देने की वक्त आता है तो उसके लिए इशारे के तौर पर रुमाल को गिराया जाता है और जल्लाद लिवर खींचता है। लिवर खींचते ही तख्त खुल जाता है और फंदे पर लटका दोषी नीचे चला जाता है। कुछ देर बाद डाक्टर वहां पहुंचकर उसकी जांच करता है। धड़कन बंद होने की पुष्टि होने के बाद उसे मृत घोषित कर दिया जाता है। उसके बाद उसे फंदा से नीचे उतार लिया जाता है। इस दौरान जेल में कोई काम नहीं होता है। फांसी लगने के बाद ही जेल के दरवाजे को खोला जाता है।

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