चीन के आरोप पर विश्व को यकीन नहीं कि गलवन घाटी की घटना के लिए भारत जिम्मेदार
कमल किशोर डुकलान
भारत की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गलवन घाटी में चीनी सेना ने जो हरकत की उसे भारत भूल नहीं सकता। चीन की धोखेबाजी के कारण भारतीय सेना के 20 जवान बलिदान हुए। भारत और भारतीय सेना की यह नैतिक जिम्मेदारी रहती है कि दूसरे पक्ष पर हमला न किये बिना भारतीय सेना प्रतिपक्ष पर हमला नहीं करती है। भारत और भारतीय सेना की इस सोच से पूरी दुनिया परिचित है। इसीलिए वह चीन के इस आरोप पर यकीन नहीं कर रही कि गलवन घाटी की घटना के लिए भारत जिम्मेदार है। विश्व समुदाय इसी नतीजे पर पहुंचा है कि चीन ने काइराना हरकत की है।
चीन अभी भी शरारत पर आमादा है और समझोतों पर यथास्थिति कायम करने को लेकर बनी सहमति पर अमल करने से इन्कार कर रहा है। वह सीमा पर न केवल अतिक्रमण ही कर रहा है, बल्कि अपने सैनिकों का जमावड़ा भी बढ़ा रहा है। उसके जवाब में भारत को भी ऐसा ही करना पड़ रहा है। माना जा रहा कि चीन गलवन घाटी में सामरिक बढ़त हासिल करने के लिए भारतीय क्षेत्र पर कब्जे की फिराक में है। गलवन घाटी के साथ-साथ वह एक अन्य इलाके पैंगोंग सो में भी अतिक्रमण करने की ताक में है। इसी तरह वह दौलत बेग ओल्डी इलाके में यथास्थिति बदलने की कोशिश कर रहा है।
भारत ने काराकोरम हाईवे के बेहद करीब दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी को न केवल आधुनिक बना दिया है, बल्कि उसे हर मौसम में इस्तेमाल होने वाले सड़क मार्ग से भी जोड़ रहा है। यही चीन की चिंता का मुख्य कारण है। चीन इसके बावजूद एलएसी पर यथास्थिति बदलने की कोशिश कर रहा कि 1962 में हथियाया गया इलाका अभी भी उसके कब्जे में है। इसके अलावा उसके पास गुलाम कश्मीर का वह हिस्सा भी है जिसे पाकिस्तान ने चीन को सौंप दिया था। चीन सीमा विवाद सुलझाने की बात अनमने मन से तो करता है, लेकिन उसका इरादा इसे सुलझाने का बिल्कुल भी नहीं रहा है। चीन की हरकतों के चलते भारत में यह भाव प्रबल हो रहा है कि उसे सबक सिखाया जाना चाहिए।
लेकिन इस सबके बीच विपक्षी दल कांग्रेस सीमा विवाद एवं बदस्तूर हो रहे हमलों पर मोदी सरकार को घेरने में जुटी है। आते दिन कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी आते दिन सरकार पर उलटे-सीधे आरोप लगाने के जोश में यह भूल रहे हैं कि आजादी के बाद से ही चीन सीमा विवाद के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार अगर कोई है,तो वह कांग्रेस नेतृत्व ही है।
आजादी के बनी सरकार में नेहरू ने चीन के खतरनाक मंसूबों की न केवल अनदेखी की, बल्कि 1962 में उसके द्वारा कब्जाई गई जमीन को हासिल करने की कोई कोशिश ही नहीं की। आजकल आते दिन राहुल गांधी ऐसे-ऐसे आरोप उछालने में लगे हुए हैं जिनका न तो सिर है,और न ही पैर–। ऐसा लगता है कि वह उस अवतार में आ गए हैं जो उन्होंने राफेल विवाद को तूल देते वक्त अपनाया था।
वह ठीक वैसा ही विचित्र और राजनीतिक तौर पर आत्मघाती व्यवहार कर रहे हैं जैसा सर्जिकल और एयर स्ट्राइक के वक्त कर रहे थे। वह ऐसा दिखा रहे हैं कि मानो चीन भारत के समझोतों का सच केवल राहुल गांधी को ही पता है। ऐसे समय में जब चीन हमलावर हो ऐसे समय पर राहुल गांधी के रवैये से चीन को एक ताकत मिलने जैसा है।
चीन भारत का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसका देश में अच्छा-खासा निवेश भी है । आधारभूत ढांचे के निर्माण से लेकर बड़े स्टार्टअप में चीनी कंपनियों ने भारत में निवेश कर रखा है। इसके अलावा तमाम भारतीय उद्योग कच्चे माल, उपकरणों के लिए भारत चीन पर निर्भर हैं। चीन को जवाब देने के मामले में यह बात बार-बार सामने आ रही है कि हमारी चीन पर निर्भरता कम कैसे होगी, लेकिन इसे समझने की जरूरत है कि भारतीय उद्योग जगत जिस तरह चीन पर निर्भर है उसे देखते हुए यदि जल्दबाजी में कोई कदम उठा लिया जाता है तो यह भारत के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
साफ है कि उन भावनाओं पर लगाम लगाना होगा जिनके तहत यह माहौल बनाया जा रहा कि चीनी वस्तुओं का बहिष्कार तत्काल प्रभाव से शुरू कर दिया जाए। ऐसा करने से लॉकडाउन से बाहर आ रहे भारतीय उद्योग जगत के सामने एक नई समस्या खड़ी हो सकती है-कच्चे माल और उपकरणों के अभाव की।
वर्तमान समय में चीन पर नहीं निर्भरता कम करने के लिए भारतीय उद्योगों एवं स्टार्टअप को अपने पैरों पर खड़ा होने के साथ ही चीनी कंपनियों और निवेशकों के विकल्प हमें तलाशने होंगे। आज चीन से ऐसा बहुत सामान आ रहा है जिनके निर्माण की क्षमता भारत के पास है। ऐसे सामानों की पहचान करके जल्द उन्हें देश में ही बनाने की योजना शुरू की जानी चाहिए। आखिर इसका क्या मतलब कि घरेलू जरूरत की वस्तुएं, बिजली की झालर, गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां चीन से मंगाई जाएं?
चूंकि चीन एक तरह से भारत को ललकार रहा है इसलिए उसका प्रतिकार करने के लिए हर भारतीय को तैयार रहना चाहिए। उसे अपने अंदर एक जज्बा पैदा कर यह बीड़ा उठाना होगा कि अब चीन के बगैर ही हमें काम चलाना है। इसी के साथ इस पर भी विचार करना होगा कि चीन हमसे आगे क्यों निकल गया? उसके आगे निकलने में उसकी आर्थिक-व्यापारिक नीतियों के साथ वहां के लोगों के समर्पण और अनुशासन की भी एक बड़ी भूमिका रही है।
भारत के उत्थान में समर्पण और अनुशासन का परिचय हम भारतीयों को भी देना ही होगा। नि:संदेह यह गर्व की बात है कि हमारा देश भारत एक लोकतांत्रिक देश हैं, लेकिन यह भी सही है कि औसत भारतीय नियम-कानूनों के पालन के प्रति उतना सजग-सचेत नहीं जितना उसे होना चाहिए। लोकतंत्र हमें स्वतंत्रता प्रदान करता है, लेकिन स्वच्छंदता नहीं
हमें अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग होने के साथ ही अपने काम को कुशलता से करने के मामले में अपना मिजाज बदलने की जरूरत है। मिजाज में बदलाव हमारे राजनीतिक वर्ग में भी आना चाहिए, क्योंकि तभी चीजें तेजी से बदलेंगी और वह माहौल निर्मित होगा जो आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति देने और चीन का मुकाबला करने में सहायक होगा।