पहाड़ में पहले बाघ और भालू का भय होता था, लेकिन अब भूस्खलन खौफ: भट्ट
- गढ़वाल वि.वि.के पौड़ी परिसर में पर्यावरण पर दो दिवसीय सेमीनार
- पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यावरण की अनदेखी कर हो रहे हैं निर्माण
- पर्यावरण को ग्लोबल वार्मिंग से ज्यादा लोकल वार्मिंग से ज्यादा खतरा
- पर्यावरण के प्रति अभी भी नहीं जागे तो केदारनाथ से भी बड़ी आपदा
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
पौड़ी: प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्म विभूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि विकास के लिए जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण जरूरी है, लेकिन इसके लिए पर्यावरणीय दृष्टिकोण को भी अपनाया जाना चाहिए। जिस प्रकार पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यावरण की अनदेखी कर निर्माण कार्य हो रहे हैं, वह गंभीर चिंता का विषय है। कहा कि समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो केदारनाथ में आई त्रसदी से बड़ी त्रसदी पूरे पहाड़ी क्षेत्र को अपने आगोश में ले सकती है।
गढ़वाल विश्व विद्यालय के पौड़ी परिसर में रविवार को भूगोल विभाग की ओर से ‘हिमालय, पर्यावरण एवं विकास’ विषय पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार की शुरुआत हुई। इस राष्ट्रीय सेमीनार में पर्यावरण के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य के लिए पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली, मैती आंदोलन के कल्याण सिंह रावत, डॉ. विनोद भट्ट, कीर्ति नवानी व प्रो.पीपी नवानी को सम्मानित किया गया।
इस दौरान अपने संबोधन में पद्म विभूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि पहाड़ में पहले बाघ और भालू का भय होता था, लेकिन अब भूस्खलन खौफ पैदा कर रहा है। पर्यावरण मानकों की अनदेखी कर पहाड़ी क्षेत्रों में विकास को मूर्तरूप देना काफी खतरनाक है। कहा कि पर्यावरण को ग्लोबल वार्मिग से ज्यादा खतरा आज लोकल वार्मिंग से पैदा हो गया है। ग्लेशियर धीरे-धीरे पीछे-पीछे खिसक रहे हैं, जिससे निकट भविष्य में पानी का संकट भी पैदा हो सकता है। भट्ट ने चेतावनी वाले लहजे में कहा कि अगर हिमालय में गड़बड़ी हुई तो पूरे देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। इसलिए हिमालय को बचाने और पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकारों को ठोस पहल करनी होगी।
सेमीनार के पहले विभिन्न राज्यों से आए विषय विशेषज्ञों ने पर्यावरण की अनदेखी से पैदा होते हालात और संरक्षण के लिए सभी का आगे आने का आह्वान किया। कहा कि सरकारों को भी इसके लिए प्रभावी कार्ययोजना बनानी होगी। इस मौके पर पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली, मैती आंदोलन के कल्याण सिंह रावत, विवि की कुलपति प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल, परिसर निदेशक प्रो. केसी पुरोहित, प्रो. हनुमान सिंह यादव, डॉ. प्रांजली पुरोहित, प्रो. यूसी गैरोला, डॉ. अनीता रुडोला, प्रो. एसके बंसल (रोहतक), प्रो. बीएल तेली (अजमेर), प्रो. वीपी सती (मिजोरम), प्रो. वैंकट सुब्रमण्यम (तमिलनाडु), प्रो. बीसी वैद्य (दिल्ली), डॉ. इशांत पुरोहित, प्रो. मदनस्वरूप रावत, डॉ. वीपी नैथानी, डॉ. राजेश भट्ट आदि मौजूद रहे।