केदारनाथ आपदा पर पायलट की लेखनी से निकले शब्द ……..
हंसा दत्त लोहनी
आज से छः वर्ष पूर्व केदारनाथ आपदा से उत्तराखंड को बहुत बड़ा घाव मिला। इस दौरान मुझे राहत व बचाव कार्य करने का पुण्य प्राप्त हुआ था। उस प्रयास पर व प्रभावितों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते कुछ शब्द।
पवित्र मंदिर के चारों ओर होटलों व दुकानों का घेरा बन चुका था, दो मंजिल ऊंचा, पत्थर से बना लगभग एक हजार साल पुराना मंदिर इन आधुनिक ईंट सीमेंट की इमारतों में विलीन हो गया था। जलेबी की तरह गोल चक्कर लगाते हैलीकॉप्टर, पक्का पगडंडी मार्ग, घोड़े खच्चरों की दिन रात टप-टप के सामने पंद्रह किलोमीटर का पैदल सफर व दस हजार फीट की ऊंचाई गौंण हो गई थी। अब यात्रियों में श्रद्धा का उत्साह कम और यौवन की हिलोरें ज्यादा जोर मारतीं।
स्वार्थ व लोभ के वशीभूत राजनीति व धर्म के ठेकेदारों को यह हश्र नजर नहीं आ रहा था। भोलेनाथ को ही अपने धन संचय का साधन इन लोलुपों ने बना डाला।
अभी तक एक ही बार तीसरा नेत्र खुलने की कहानी सुनी थी जब आग बरसी और कामदेव भस्म हो गए। तीसरा नेत्र फिर खुल गया, यह दूसरी बार था – अब पानी बरसा, बरसा, बरसता ही रहा और फिर सैलाब फूट पड़ा। कल-कल करती धाराओं ने देखते ही देखते भोलेनाथ की खुली जटाओं सा विकराल रूप धर लिया, कुछ पलों के लिए भोलेनाथ ने गंगा जी को मुक्त कर दिया, इनके रास्ते में जो भी पड़ा टिक न सका। भोलेनाथ की माया तो देखो अपने भक्त शंकराचार्य जी की भक्ति को आंच भी न आने दी। भगवान और भक्त की इससे बड़ी क्या मिसाल हो सकती है कि सैलाब के साथ एक विशाल शिला भी रवाना कर दी जिसे मंदिर से कुछ ही मीटर पहले रुकने का आदेश था। शिला रुकी और पानी दोनों ओर से बंट गया और भोलेनाथ के चरणों को धोकर मंदिर को बिना किसी नुकसान के आगे बढ़ चला। हर इंच ऊंचाई खोता पानी और भी प्रचंड होता गया, इंसान, जानवर, दुकानें, भवन सब धराशायी होने लगे। सूचना तंत्र भी तहस नहस हो गया।
दो दिन बाद हैलीकॉप्टर से मुआयना करते हुए एक पायलट को नुकसान का सुध हुआ और भारतीय वायु सेना के इतिहास में सबसे बड़ा हवाई बचाव कार्य आरंभ हुआ।
जोधपुर से मेरा स्थानांतरण आदेश आ चुका था, 18 जून 2013 की शाम मुझे अपने ऑफिस से विदाई दी जा रही थी, अगली सुबह का जोधपुर से हैदराबाद का हवाई टिकट मेरी जेब में था। समारोह के मध्य ही मेरा मोबाइल बजा, फोन पर ही कमांड हैडक्वाटर का आदेश हुआ कि कल सुबह एक हैलीकॉप्टर देहरादून के लिए भेजो। अब तक केदारनाथ की खबरें आने लगी थीं पर भयावहता का अंदाज नहीं था। पहला ख्याल यही आया कि उत्तराखंड – अपनी जन्मभूमि की सेवा का अवसर आया है, इतने साल जो काम सीखा है अपने लोगों की सेवा में न्योछावर कर सकूंगा। मैंने कहा “ठीक है, मैं स्वयं जाऊँगा” और जोड़ा कि मेरी पोस्टिंग का मसला संभाल लेना।
अगली सुबह पो फटने के साथ हैलीकॉप्टर का मुंह जोधपुर से देहरादून को मोड़ लिया। देहरादून पहुंचते पहुंचते लगने लगा कि भोलेनाथ पूरे उत्तराखंड से ही रूठे हुए हैं। पांच सौ फीट की ऊंचाई से नीचे की जमीन नहीं दिख रही थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे संपूर्ण क्षेत्र में राख बिखरी हुई है।
देहरादून से ब्रीफिंग लेकर केदारनाथ को कूच किया। दिन में भी श्यामल, पहाड़ों के बीच धुंध में रास्ता खोजते, करीब चालीस अन्य हैलीकॉप्टरों से बचते बचाते केदारनाथ जी के चरणों में प्रणाम किया। हैलीकॉप्टर की गड़गड़ाहट के बाजूद मानवीय भूलों पर क्षमा मांगती पृकृति में अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था।
पर मेरे लिए बाबा भोलेनाथ ने कुछ और ही सोचा होगा, दूसरे ही दिन आदेश आ गया कि बागेश्वर पहुंचो। सरयू और गोमती नदी के संगम पर स्थित यह छोटा शहर हरे भरे पहाडों की घाटी में स्थित है। यहां केदारनाथ मंदिर के काल की उसी शैली के मंदिर में भगवान शिव बागेश्वर रूप में स्थापित हैं । पवित्र नदियों का संगम इस स्थान को प्रयागराज जितना ही तीर्थ फलदाई बनाता है।
डिग्री कालेज के मैदान में उतरते ही श्री ललित फर्सवाण कपकोट विधायक व जिलाधिकारी श्री मनराल ने जमीनी स्थिति व नुकसान की जानकारी दी। पिंडर घाटी में पुल टूटने से गाँव कट गए, निचले क्षेत्र के गाँवों में जानमाल की हानि भी हुई थी। सहायता एजेंसियों का सारा ध्यान केदार घाटी में ही केंद्रित था, इन इलाकों की सुध किसी को नहीं थी।
सरकारी उपेक्षा से परेशान विधायक, प्रशासन व लोगों को बहुत राहत मिली जब उन्हें पता चला कि मैं पास ही के गांव का रहने वाला हूँ, बागेश्वर में ननिहाल है तथा आपदाग्रस्त इलाके से भलीभांति परिचित हूँ।
ताकुला-सोमेश्वर से तत्कालीन विधायक, पूर्व वस्त्र राज्यमंत्री व वर्तमान में सांसद श्री अजय टम्टा जी की मौजूदगी से राहत मिली। अपने राजनीतिक जीवन में लोगों से उनका सीधा जुड़ाव है, अक्सर पैदल ही उन्होंने पूरे इलाके का सघन भ्रमण व उनका मृदुभाषी स्वभाव जन-जन को आकर्षित करता है। अपने पूर्व अनुभव के आधार पर उन्होंने आपदाग्रस्त इलाके पर महत्वपूर्ण सुझाव दिए जो बहुत सार्थक रहे और खराब मौसम के बावजूद प्लानिंग में बहुत उपयोगी साबित हुए।
बिना समय गवांए मैंने हैलीकॉप्टर में राहत सामग्री भरवाई, इंजन चालू किए। बादलों से बचते, कम दृश्यता से जूझते पिंडर नदी के ऊपर एक घंटे की उड़ान भर कर बदियाकोट पहुंचा। हैलीकॉप्टर से नीचे उतर कर पांच दिनों से दुनिया से कटे त्रस्त व भयभीत लोगों के समूह के सामने पहुंचकर वहीं की बोली में हाल पूछना शुरू किया। मेरी बातों से धीरे धीरे पीले पड़े चेहरों पर विश्वास की चमक बढ़ने लगी, मैं लोगों के पीले चेहरों पर बदलते रंग को साफ देख पा रहा था। विधायक जी ने मुझसे बीमार व जरूरतमंद लोगों को बागेश्वर ले जाने की बात कही जो मैंने स्वीकार किया। इस हामी ने माहौल ही बदल डाला, जनसमूह की हर्षध्वनि और तालियों से निराशा उम्मीद में बदल गई।
मैं बहुत ही भावविह्वल भी हो गया, दिन का काम पूरा करने के बाद बागनाथ मंदिर पहुंचा और भगवान को धन्यवाद किया, मुझे इस काबिल बनाया कि मैं अपनी
मातृभूमि के काम व अपने ही लोगों की सेवा कर पा रहा हूँ। अगले दिन से सुबह काम पर जाने से पहले बागनाथ जी का आशीर्वाद लेने का नियम भी बना लिया।
बादल, खराब मौसम व कम दृश्यता से भरे माहौल में लगभग पंद्रह दिन मैंने बागेश्वर में बिताए। इस दौरान कई सौ ज़रूरतमंदों को दवाई व उपचार के लिए बागेश्वर लाया, कई क्विंटल खाद्यान्न व कपड़े छोटे छोटे गाँवों में पहुंचाए। उत्तराखंड की सेवा में रत यह मेरे जीवन का सर्वोत्तम समय रहा है।
(लेखक विंग कमांडर हंसा दत्त लोहानी उत्तराखंड निवासी हैं और भारतीय वायु सेना के हेलीकाप्टर कप्तान हैं वर्तमान में ITBP में सेवारत हैं)
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