चीन युद्ध के दौरान गंवाना पड़ा घर और जमीन
- 56 साल बाद भी नहीं मिला दोनों गांवों के लोगों को मुआवजा
उत्तरकाशी : जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 113 किमी की दूरी पर नेलांग और 129 किमी पर जादुंग जो समुद्रकी सतह से 4000 मीटर की ऊंचाई पर नेलांग घाटी पर स्थित हैं ,वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान इन दोनों गांवों के लोगों को अपना घर और जमीन दोनों ही गंवानी पड़ी है । तब से लेकर आज तक ये लोग अपने हक के लिए दर – दर भटक रहे हैं। लेकिन 56 सालों बाद भी इन्हें न तो यहाँ के निवासियों को इनकी जमीन का मुआवजा ही मिला और न इनका कहीं पुनर्वास ही किया गया । वर्तमान में बगोरी और डुंडा में विस्थापितों की तरह जिंदगी जी रहे भोटिया जनजाति के ये ग्रामीण लोग आज भी बीते पांच दशक से मुआवजे की बाट जोह रहे हैं। तब से लेकर अब तक केंद्र और राज्य सरकार में न जाने कितनी सरकारें आई और गयी लेकिन किसी भी सरकार ने इसके भविष्य के बारे में नहीं सोचा।
बगोरी के प्रधान भवान सिंह राणा ने बताया कि गणतंत्र दिवस के दिन नेलांग घाटी में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत पहुंचे तो थे और वहां के ग्रामीणों के प्रतिनिधिमंडल ने उनसे मुलाकात भी की। स्थानीय लोगों ने उनको बताया कि वह 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान सेना ने चीन सीमा से लगे नेलांग और जादुंग गांव को खाली करा दिया था। लेकिन तब नेलांग से 40 और जांदुग से 30 परिवार डुंड व बगोरी में अपने नाते-रिश्तेदारों के यहां आए गए थे। उन्होंने मुख्यमंत्री को बताया कि नेलांग में उनकी 375 हेक्टेयर और जांदुग में 8.54 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि थी, जिसका उन्हें आज तक मुआवजा नहीं मिला।
उन्होंने मुख्यमंत्री को बताया कि पिछले 56 सालों से वह केन्द्र और राज्य सरकार को पत्राचार कर रहे हैं। किसी भी सरकार ने उनकी समस्या का समाधान नहीं किया। जबकि वर्ष 1967 में दोनों गांवों को पूर्ण जनजाति ग्राम घोषित किया जा चुका है। इसके बावजूद भी उन्हें उनका हक नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने सीएम को ज्ञापन सौंपाकर शीघ्र विधिवत विस्थापन की मांग उठाई और साथ ही चीन सीमा पर छूटी उनकी जमीन का उचित मुआवजा देने की मांग भी की है।
ग्रामीणों के अनुसार नेलांग में उनकी 375.61 हेक्टेयर और जादुंग में 8.54 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि थी। जिस पर युद्ध के बाद आईटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस) और सेना ने बंकर और कैंप स्थापित कर दिए। अब ये परिवार हर साल जून माह में चैन देवता, लाल देवता, रगाली देवी व कुल देवता की पूजा के लिए नेलांग व जादुंग जाते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें गंगोत्री नेशनल पार्क प्रशासन और आईटीबीपी के अधिकारियों से अनुमति लेनी पड़ती है।