Uttarakhand

NH-74 मुआवज़ा घोटाला : राज्य के इतिहास में भ्रष्टाचार पर बड़ी कार्रवाई

त्रिवेन्द्र रावत का जारी है भ्रष्टाचार के विरुद्ध धर्म युद्ध

  • सैकड़ों घोटाले अंतहीन जांचों में होते रहे अब तक गुम!
  • पहली बार बड़े मगरमच्छों के जाल में फंसने के बने आसार!
  • कृषि भूमि को व्यवसायिक दिखाकर 8 से 10 गुना अधिक हड़पा मुआवजा 
  • एमडीडीए के स्पेशल ऑडिट की कार्रवाई स्वागत योग्य पहल

– अजेंद्र अजय
उत्तराखंड में एक चर्चा आम होती है कि प्रदेश के पहाड़ी इलाकों की सर्पाकार, ऊंची चोटियों व खतरनाक ढलान वाली सड़कों में भले ही वाहन फर्राटे नहीं भर पाते हों। मगर इस नवगठित राज्य का माहौल भ्रष्टाचारियों के लिए एक्सप्रेसवे की तरह साबित होता है। जहां वह तूफानी गति से दौड़तें हैं और किसी प्रकार की दुर्घटना अथवा जोखिम से मुक्त रहते हैं।

लोगों की ऐसी धारणा बेवजह नहीं है। राज्य गठन के 18 सालों में यहां के जनमानस के कानों सबसे अधिक जिस शब्द की गूंज सुनाई दी है वह है भ्रष्टाचार। राज्य में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लगातार हो-हल्ला मचता रहा है। इसके बावजूद भ्रष्टाचार का आलम देखिए। प्रदेश के एक मुख्यमंत्री तक विधायकों की खरीद-फरोख्त करते हुए और उनके सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शराब के कारोबार में लेनदेन करते कैमरे पर पकड़े जाते हैं। जिस केदारनाथ आपदा के बाद पीड़ितों की मदद के लिए देश-दुनिया के लोगों ने मदद भेजी, उस केदारनाथ आपदा घोटाले ने देशभर में मीडिया में सुर्खियां बटोरीं।

प्रदेश में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए आयोग तक गठित होते रहे हैं। कुछ मामलों को अपवादस्वरुप छोड़ दिया जाए तो सैकड़ों घोटाले अंतहीन जांचों में गुम हो गए। पहली बार राज्य में एक घोटाले ने भ्रष्टाचारियों में हड़कंप मचाया है। हरिद्वार से बरेली को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-74) से जुड़ा यह घोटाला पिछले डेढ़ वर्ष से मीडिया से लेकर आम जनमानस तक में चर्चा में बना हुआ है। एनएच-74 विस्तारीकरण के लिए वर्ष 2011 से 16 के दौरान उधमसिंह नगर जिले में कृषि भूमि को व्यवसायिक दिखाकर 8 से 10 गुना अधिक मुआवजा हड़पा गया। इसमें 300 से 500 करोड़ तक के घोटाले का अनुमान लगाया जा रहा है। यह घोटाला प्रदेश की राजनीति खासकर नौकरशाही में भूचाल लाने वाला साबित हो रहा है। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ती जा रही है, मामले की परतें उघड़ती जा रही हैं।

दरअसल, एनएच-74 घोटाले का खुलासा हुआ उत्तराखंड हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल होने के बाद। दिसंबर, 2016 में एक तरफ प्रदेश में विधान सभा चुनावों की हलचल मची हुई थी।इसी दौरान उधमसिंह नगर जिले के निवासी मनेंद्र सिंह व मंगा सिंह ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल कर एनएच विस्तारीकरण में गड़बड़ झाले की शिकायत की। हाईकोर्ट ने सरकार से 3 सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा। इसे संयोग ही कहना चाहिए कि सरकार चुनाव अभियान में व्यस्त थी। चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण नौकरशाही राजनीतिक दबाव से मुक्त थी। उधमसिंह नगर जिला प्रशासन हाईकोर्ट के लिए काउंटर एफिडेविट तैयार करने में जुटा। ऊधमसिंह नगर की जसपुर तहसील में मामले की फाइलों की खोजबीन की गई तो कई फाइलें गायब मिलीं। जसपुर की तत्कालीन उप जिलाधिकारी युक्ता मिश्रा के निर्देश पर एक पेशकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। इस दौरान तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर डी. सेंथिल पांडियन ने मामले की पड़ताल की तो बड़े स्तर पर धांधलियां सामने आईं।

घोटाले ने नया मोड़ तब लिया, जब हाईकोर्ट में उधमसिंह नगर के ही निवासी राम नारायण ने एक और जनहित याचिका दाखिल की। याचिका में घोटाले की सीबीआई जांच की मांग के साथ कांग्रेस पार्टी के नाम से देहरादून में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में खोले गए एक एकाउंट का ब्यौरा भी संलग्न किया गया। एकाउंट में अधिकांशत एनएच के विस्तारीकरण में मुआवजा लेने वाले किसानों ने मोटी रकम जमा कराई थी। हाईकोर्ट के दखल के बाद आयकर विभाग भी सक्रिय हुआ। आयकर विभाग ने प्रकरण से जुड़े तमाम लोगों के ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की और कई अनियमितताएं पकड़ी।

इस बीच मार्च, 2017 में प्रदेश में त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में भाजपा सरकार का गठन हुआ। मुख्यमंत्री ने शपथ ग्रहण के एक सप्ताह के भीतर मामले में प्रांतीय सिविल सेवा (पीसीएस) के 4 अफसरों समेत 6 अफसरों को निलंबित किया। मुख्यमंत्री ने घोटाले की सीबीआई जांच कराने की घोषणा भी की। कारणवश सीबीआई ने प्रकरण को अपने हाथ में नहीं लिया तो एकबारगी ऐसा लगा कि यह घोटाला भी ठंडे बस्ते में चला जाएगा। प्रदेश की जनता इसके लिए अभ्यस्त भी थी।

मगर इसे प्रदेश सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति ही कहा जाना चाहिए कि उसने पूर्व से इस मामले की जांच कर रही स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) को प्रभावी तरीके से कार्रवाई जारी रखने के निर्देश दिए। घोटाले में अब तक करीब आधा दर्जन पीसीएस अफसरों सहित करीब 22 लोग जेल की सलाखों के पीछे हैं। लगभग 50 लोगों के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी है। दो वरिष्ठ आईएएस अफसरों को नोटिस जारी कर उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया है। यही नहीं जो संकेत मिल रहे हैं, उनसे अनुमान लगाना कठिन नहीं की जांच जब मामले की तह तक पहुंचेगी तो कुछ राजनेता भी घोटाले की जद में होंगे।

बहरहाल, उत्तराखंड के इतिहास में भ्रष्टाचार के विरुद्ध यह अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है। जांच अभी जारी है। पहली बार बड़े मगरमच्छों के जाल में फंसने के आसार बने हैं। इसके साथ ही वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा कुछ चर्चित घोटालों यथा- समाज कल्याण, शिक्षा विभाग में फर्जी नियुक्ति, कुमाऊं खाद्यान्न घोटाले आदि को लेकर एसआईटी गठित कर जांच के आदेश दिए गए हैं। इसके अलावा भाजपा सरकार ने हमेशा विवादों में रहने वाले मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण का ऑडिट कराने का निर्णय भी लिया है। आम आदमी के लिए कायदे-कानून का पाठ पढ़ाने और बिल्डरों व भू माफियाओं के लिए रेड कार्पेट बिछाने वाले एमडीडीए के स्पेशल ऑडिट की कार्रवाई स्वागत योग्य पहल है। उम्मीद की जानी चाहिए कि एनएच-74 की तरह इन मामलों में भी भ्रष्टाचारी सलाखों के पीछे होंगे और प्रदेश सरकार की तरफ से भ्रष्टाचार के विरुद्ध यह, जैसा कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने एक बयान में कहा था भ्रष्टाचार के विरुद्ध धर्म युद्ध होगा।

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