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हरक सिंह रावत को मंत्री बने रहने का हक नहीं

 जीरो टोलरेंस सरकार का हरक मामले में टोलरेंस क्यों?

20 साल बीते, कब तक होती रहेगी जांच पर जांच

गुणानंद जखमोला 
त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की जीरो टोलरेंस सरकार कर्मकार बोर्ड घपला उजागर होने के बावजूद कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत पर टोलरेंस क्यों बरत रही है, यह सवाल आम जनमानस कर रहा है। इससे साफ संदेश जा रहा है कि प्रदेश सरकार की कथनी और करनी में अंतर है। कर्मकार बोर्ड के अध्यक्ष पद से हरक सिंह रावत को हटाए जाने से स्पष्ट हो चुका है कि बोर्ड में अनियमितता हुई है। मामले की जांच महालेखाकार कार्यालय यानी एजी को सौंपी गई है तो सरकार के पास पुख्ता प्रमाण हैं कि बोर्ड में सबकुछ ठीक नहीं है। जब त्रिवेंद्र सरकार ने हरक सिंह को बोर्ड अध्यक्ष पद से हटा दिया तो उन्हें नैतिकता के आधार पर कैबिनेट में बने रहने का हक नहीं है। चूंकि राजनीति में अब नैतिकता बची ही नहीं है, इसलिए जांच पर जांच होगी और ये जांच कभी समाप्त नहीं  होगी।
उत्तराखंड भवन एवं सनिर्माण कर्मकार बोर्ड का बजट 400 करोड़ का था और 350 करोड़ खर्च भी हो चुके हैं। कहां खर्च हुए पता नहीं? 11 करोड़ की साइकिलें बांट दी गई। 11 करोड़ की साइकिलें यदि सड़क पर होती तो देहरादून में दुपहिया और चैपहिया वाहनों के चलने की जगह ही नहीं होती। कहां हैं साइकिलें। ऐसी ही कई मद्दों में अनियमितता है। मृतप्राय कांग्रेस इस मामले में चुप्पी साधे हुए है। कांग्रेस की न तो नीति है और न ही कोई नेतृत्व। आम आदमी पार्टी ने तो साइकिलें ही बांटी है तो वो इस मुद्दे को क्यों उठाएगी? यूकेडी की इस प्रदेश में सुनता ही कौन है? यूकेडी का लचर और थका हुआ नेतृत्व कुछ सोचने लायक बचा ही नहीं है।
इस प्रदेश का दुर्भाग्य रहा है कि यहां राज्य गठन के बाद से 156 से भी अधिक बड़े घोटाले हुए हैं जो कि राज्य के कुल बजट यानी 50 हजार करोड़ से भी अधिक के हैं। 2002 से शुरू हुई जांच अब तक पूरी नहीं हुई हैं। एक भी घोटाले के आरोपित नेता को जेल नहीं भेजा गया है। वह और ताकतवर होकर सत्ता में लौटा है। इसके लिए दोषी राज्य की जनता भी है जो महज एक बोतल शराब और 500 रुपये में अपना वोट बेच देती है और फिर पांच साल रोती है। नेता जनता के इस मिजाज को जानते हैं कि जनता बिकाऊ है। इसलिए वो जमकर भ्रष्टाचार करते हैं और चुनाव के समय वोट खरीद लेते हैं। भ्रष्टाचार में कांग्रेस-भाजपा दोनों ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों दलों के नेताओं ने मूक समझौता किया है कि पांच साल भाजपा, पांच साल कांग्रेस, जनता जाए भाड़ में।
हरक सिंह रावत भी इस मूक समझौते का अंग है। इसलिए हरक मामले में कांग्रेस चुप्पी साधे हुए है। जनता नेताओं से सवाल नहीं करती है, ऐसे में जवाब देने को कोई नेता बाध्य नहीं है।
गुणानंद जखमोला की फेसबुक वाल से साभार 

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