फ्लॉप शो साबित हुआ ”रैबार” कार्यक्रम !

देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : पहाड़ी बोली भाषा में रैबार का मतलब होता है सन्देश और उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी में रविवार को एक चर्चित कार्यक्रम हुआ ”रैबार” इस रैबार कार्यक्रम में बुलाये तो उत्तराखंड के नामचीन लोग थे और श्रोता के रूप में जो लोग बुलाये गए थे उनमें से लगभग अधिकाँश लोग पहाड़ों से पलायन कर देहरादून,दिल्ली और चंडीगढ़ जैसे स्थानों में आकर बसने वाले थे। लेकिन उन आम नागरिकों या जनप्रतिनिधियों को नहीं बुलाया गया और जिन्हें बुलाया भी गया था वे सब इस रैबार कार्यक्रम के आयोजकों के इष्ट-मित्रगण थे ,ऐसा कोई व्यक्ति इस कार्यक्रम में नहीं था जो जनसरोकारों से जुड़ा रहा हो और जो यह ”रैबार” पहाड़ों में जाकर देता कि अब पलायन मत करो। बंद हाल में क्या चर्चा-परिचर्चा हुई इसकी सरकारी और सेंसर खबर तो बाहर आयी जिसमें इस कार्यक्रम में आये तमाम नामचीन लोगों के लच्छेदार भाषण तो थे लेकिन पहाड़ की जनता का मर्म और वह क्या चाहती है वह सब गायब था। यह कार्यक्रम आम उत्तराखंडी के लिए क्या रैबार दे गया दूर-दूर तक कुछ पता नहीं चल पाया। हां ‘’रैबार’’ के नाम पर अपनी दुकान चमकाने वाले जरुर मॉल लेकर रफूचक्कर हो गए।
अब बात करते हैं इस कथित कार्यक्रम ”रैबार” की. मूलतः यह कार्यक्रम दिल्ली के एक चर्चित पत्रकार का अपनी पत्नी के नाम से पंजीकृत एक संस्था का इन हाउस कार्यक्रम था जिसने ”आजतक” की जिन्दगी उत्तराखंड के बजाय दिल्ली जैसे महानगर में गुजारी और उत्तराखंड आये भी तो उस मुह्हमद गजनवी की तरह जो भारत को लूट गया। कार्यक्रम का यह आयोजक देश के एक नामी गिरामी इलेक्ट्रोनिक चैनल में बतौर पत्रकार होने का पूरा फायदा उठाता रहा है इसी चैनल के नाते उसका सम्बन्ध देश के शीर्ष पर बैठे उत्तराखंड की नामचीन लोगों से हो गया। बस इन्ही संबंधों का फायदा यह बीते एक दशक से दिल्ली में बैठकर उठाता रहा है और उनको नकदी में बदलता रहा है। इससे पहले भी यह केदारनाथ आपदा के दौरान उत्तराखंड सरकार से लगभग डेढ़ करोड़ रुपये फिल्म के नाम से बटोर चुका है वह फिल्म कहाँ गयी किसने देखी ‘’आजतक’’ किसी को नहीं पता।
चर्चायें आम हैं कि इस बार भी उसने रैबार के नाम पर उत्तराखंड सरकार पर लगभग तीन करोड़ रुपये का कम्बल डाल दिया और अपनी संस्था का प्रचार सरकारी पैसे से कर डाला जबकि चर्चाओं के अनुसार सूबे के मुख्य सचिव ने देहरादून की सड़कों पर लगाये गए होर्डिंग में इस संस्था का नाम न देने की हिदायत सम्बंधित विभाग को दी थी लेकिन मुख्यमंत्री के यहाँ अपने एक दिल्ली के पत्रकार साथी के साथ की गलबहियां उसके काम आई और होर्डिंग पर उसका नाम उत्तराखंड सरकार के साथ प्रकाशित हो गया। इतना ही नहीं इस मंहगे कार्यक्रम का पूरा खर्च भी 42 हज़ार करोड़ रुपये के कर्ज में डूबे इस राज्य ने किया।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया कि जिस कार्यक्रम का शुरूआती उत्तराखंड की सांस्कृतिक परम्पराओं और विरासतों से इतर महिला को छेड़ने जैसी हरकत से शुरू हुई उसका क्या लाभ उत्तराखंड की जनता को मिलेगा यह अपने आपमें विचारणीय है। कुलमिलाकर यह कार्यक्रम आम उत्तराखंडियों को कोई ”रैबार” नहीं दे पाया हां आयोजकों का घर-बार जरुर भर गया।