PAURI GARHWAL

आखिर काटना ही पड़ा मासूम कृष का हाथ

बेलगाम  झोलाछाप डॉक्टरो के मसीहा बने सीएमओ

अब भी धडल्ले से चल रही झोलाछापों की दुकानें 

सीएमएस कोटद्वार खुद कर रहे घर पर प्रैक्टिस बाकी पर कैसे लगेगी लगाम

अवनीश अग्निहोत्री 

कोटद्वार। झोलाछाप डाक्टर की करनी का फल एक मासूम को भुगतना पड़ रहा है, स्थिति यह है कि मासूम अब जीवन में अपने दांये हाथ से कोई काम नहीं कर पाएगा। दरअसल मासूम का हाथ इन्फैक्शन होने के कारण उसका हाथ काटना पड़ा। हैरत की बात तो यह है कि स्वास्थ्य विभाग भी इस मासूम को न्याय नहीं दिला पाया है और विभाग ने जांच के नाम पर महज खानापूर्ति कर अपना पल्ला झाड़ लिया है इतना ही नहीं आरोपी झोलाछाप डाक्टर के खिलाफ भी कोई कार्यवाही करने की जहमत तक नहीं उठाई है।

बताते चलें कि विगत अक्टूबर माह में काशीरामपुर तल्ला निवासी बिरजू के ग्यारह वर्षीय पुत्र कृष खेलते वक्त गिर गया, जिससे उसके हाथ में फैक्चर हो गया। बिरजू ने कृष का उपचार यहां बाजार स्थित एक प्राइवेट क्लीनिक में कराया। जहां झोलाछाप चिकित्सक ने कृष के हाथ में प्लास्टर बांध दिया, लेकिन कुछ दिन बाद ही चिकित्सक की लापरवाही के चलते कृष के हाथ में इन्फैक्शन हो गया। दुबारा चिकित्सक को दिखाने पर चिकित्सक ने प्लास्टर काटकर अपना पल्ला झाड़ लिया। उसके बाद राजकीय चिकत्सालय में कृष को दिखाया गया, जहां चिकित्सकों ने उसे रेफर कर दिया, बाहर ले जाकर चिकित्सक से उपचार करने के बाद भी स्थिति में सुधार न होने पर परिजनों ने आरोपी चिकित्सक के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से गुहार लगाई, जिस पर स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों ने जांच कर आरोपी चिकित्सक के खिलाफ कार्यवाही करने का आश्वासन दिया था। साथ ही पीड़ित कृष का मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा के तहत उपचार करने व विभाग की ओर से भी हर संभव मद्द करने का भरोसा भी दिलाया, लेकिन पांच माह बाद अब स्वास्थ्य विभाग ने जांच के नाम पर महज खानापूर्ति कर दी। साथ ही स्वास्थ्य विभाग ने अपना पल्ला झाड़ते हुए यह कह दिया कि पीड़ित परिवार के पास इस तरह के कोई कागजात ही नहीं हैं कि जिससे पीड़ित को लाभान्वित किया जा सके। सीएमओ पौड़ी मनीष अग्रवाल ने तो एक दैनिक अखबार में यह बयान तक दे दिया कि पीड़ित पक्ष के पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं है, जिससे पीड़ित को सरकारी लाभ से लाभान्वित किया जा सके।

जबकि पीड़ित के पिता बिरजू का कहना है कि उनके पास चिकित्सा के सभी कागजात हैं, लेकिन जांच टीम के नाम पर कोई भी चिकित्सक न तो उनसे मिला और न ही किसी प्रकार के चिकित्सा के कागजात ही उनसे मांगे। वहीं स्वास्थ्य विभाग की जांच पर भी सवालिया निशान उठ रहे हैं। पीड़ित परिवार का तो यहां तक कहना है कि जांच टीम में केवल ड्रग इंस्पेक्टर और पीएचसी दुगड्डा के प्रभारी शामिल थे, जिन्होंने जांच के दौरान पुलिस और मीड़िया को शामिल नहीं किया और गुपचुप तरीके से जांच के नाम पर खानापूर्ति कर दी गई। जिन झोलाझाप डाक्टरों के दुकानों के शटर बंद थे न तो उनके फोन नंबरों पर ही संपर्क किया गया और न ही झोलाछाप चिकित्सकों के दुकानों के आस-पास रह रहे दुकानदारों व लोगों से संपर्क किया गया।कृष को अपने दांये हाथ को कटवाना पड़ गया है और अब वह इस हाथ से कोई काम नहीं कर पाएगा। बहरहाल कृष का भविष्य अब अधर में लटक गया है। अब सवाल यह उठता है कि क्या केवल झोलाछाप डाक्टर ही इसका दोषी है। देखा जाय तो झोलाछाप डाक्टर से बड़ा दोषी स्वास्थ्य महकमा है जो झोलाझाप डाक्टरों पर कार्यवाही करने के बजाय अपनी जेबें गरम कर जांच ने नाम पर महज खानापूर्ति करते हैं। अब देखना यह होगा कि कृष को न्याय मिल पाएगा और झोलाछाप डाक्टर के साथ ही सीएमओ पौड़ी और जांच अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही होगी या फिर यह कहानी यही पर बंद हो जाएगी।
सीएमओ पौड़ी की कार्यप्रणाली से क्षेत्र के लोगों में गहरा रोष व्याप्त है और क्षेत्रावासियों ने सीएमओ पौड़ी की बर्खास्तगी की मांग भी उठाई है।

कोटद्वार। सूबे के राजकीय चिकित्सालयों में तैनात चिकित्सकों के प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक लगी हुई है, लेकिन बावजूद इसके बावजूद भी राजकीय संयुक्त चिकित्सालय में तैनात चिकित्सकों पर सरकारी फरमान का कोई असर नजर नहीं आ रहा है, जहां चिकित्सक चिकित्सालय में मरीजों को देखने को तैयार नहीं हैं और जरा सी बीमारी होने पर ही मरीज को रेफर कर देते हैं, वहीं चिकित्सक प्राइवेट प्रैक्टिस जोर-शोर से करते नजर आते हैं। चिकित्सालय के सीएमएस और बाल रोग विशेषज्ञ आईएस सामंत स्वयं प्राइवेट प्रैक्टिस करते नजर आते हैं। घर पर देखने के लिए सीएमएस मोटी फीस वसूल रहे हैं, ऐसे में चिकित्सालय के अन्य चिकित्सकों के लिए क्या कहा जा सकता है।

कोटद्वार। शहर व आस-पास के क्षेत्रों में चल रहे प्राइवेट क्लीनिकों, नर्सिंग होम, मेडिकल स्टोर, प्राइवेट रिटेल, पैथोलाजी लैब के संबंध में स्वास्थ्य विभाग से सूचना अधिकार अधिनियम  2005 के तहत सूचना मांगे जाने पर विभाग की ओर से उपलब्ध कराई गई सूचना से स्पष्ट है कि विभाग वास्तव में क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य के प्रति कितना संजीदा है। विभाग की ओर से जो सूचना उपलब्ध कराई गई, उनमें चंद बड़े नर्सिंग होमों के संबंध में वो भी आधी-अधूरी  सूचना उपलब्ध कराई गई है।

शहर व आस-पास के क्षेत्रों में संचालित हो रहे छोटे क्लीनिकों, मेडिकल स्टोर, व पैथोलॉजी लैब की जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है। विभाग की ओर से दी गई सूचना से लगता है कि ये क्लीनिक या तो मानक पूरे नहीं करते है और विभाग इनसे अंजान है या फिर विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से ये क्लीनिक अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं।

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