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हंस के ‘खजाने’ पर ही सबकी नजर !

योगेश भट्ट 
साल 2009 में एक संस्था, हंस फाउंडेशन वजूद में आती है और आठ सालों के अंदर देखते ही देखते उत्तराखंड में हर दिल अजीज बन जाती है। चाहे वह सरकार हो, कोई एनजीओ हो या फिर कोई जरूरत मंद व्यक्ति, यानी सरकार से लेकर पत्रकार तक हर आमो खास की जुबान पर इस संस्था का नाम चढ़ जाता है। आखिर हो भी क्यों ना? यह संस्था इन वर्षों में अपने पास आने वाले हजारों लोगों की आर्थिक सहायता जो करती रही है। जो सुरक्षा सरकार को देनी चाहिए वो यह संस्था दे रही है l

है ना आश्चर्य, सरकार भी हंस फाउनडेशन से तमाम जरूरतें पूरी कराती है l हाल यह है कि आज किसी गरीब व्यक्ति को इलाज के लिए पैसों की जरूरत हो, बेटी की शादी के लिए आर्थिक मदद की दरकार हो, किसी गरीब पृष्ठभूमि वाले प्रतिभावान विद्यार्थी को छात्रवृत्ति की जरूरत हो, या किसी भी तरह से निराश्रित व्यक्ति को आर्थिक सामाजिक सुरक्षा चाहिए हो, तो वह सरकार की तरफ बाद में और हंस फाउंडेशन की तरफ पहले देखता है। फाउंडेशन भी उसे निराश नहीं करता। भोले महाराज और माता मंगला की यह संस्था खुल कर लोगों की मदद कर रही है। प्रदेश में चल रही तमाम सरकारी योजनाओं की तर्ज पर हंस फाउडेशन द्वारा कई समानांतर योजनाएं चल रही हैं।

संस्था वर्तमान में एक अस्पताल का संचालन कर रही है और दूसरा अस्पताल निर्माणाधीन है।कई स्थानों पर सचल चिकित्सा वाहन भी चलाए जा रहे हैं। प्राइवेट स्कूलों को अनुदान से लेकर गैर सरकारी संगठनों को भी संस्था बड़े पैमाने पर आर्थिक मदद कर रही है। गरीब परिवारों की बेटियों की शादी में आर्थिक सहायता देने के साथ संस्था बुजुर्गजनों को पेंशन भी दे रही है। इन सब पर हर साल करोड़ों रुपये का खर्च आ रहा है। यही कारण है कि आज सरकारों पर भी इस संस्था का पूरा दबदबा है, सच यह है कि हर किसी की नजर में यह धनवर्षा से मंगल करनी वाली संस्था है । सच भी है जिसे तरह यह संस्था प्रदेश में फंड करा रही है उससे तो लगता है मानो संस्था के पास कुबेर काले खजाना हो l

चाहे पूर्ववर्ती हरीश रावत की सरकार रही हो या मौजूदा त्रिवेंद्र सरकार, हंस फाउंडेशन के लिए हर सरकार में रेड कार्पेट बिछाया जा रहा है। पिछली सरकार ने तो इस संस्था के साथ विभिन्न सेवाओं के लिए 500 करोड़ रुपये का एमओयू भी किया था। तब हंस फाउंडेशन पर सरकार इस कदर बलिहारी थी कि माता मंगला को ‘उत्तराखंड रत्न’ देकर सम्मानित किया गया था। एक अहम तथ्य यह भी है कि भोले जी महाराज मूल रूप से उत्तराखंड के हैं और कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के भाई हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सतपाल महाराज के साथ उनकी प्रतिद्वंदिता है। हरीश रावत और सतपाल महाराज की सियासी दुश्मनी से हर कोई वाकिफ है। कहते हैं कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त बन जाता है।

ठीक इसी तर्ज पर भोले महाराज और माता मंगला, हरीश रावत के करीब आए। हरीश रावत अपने कार्यकाल में हंस फाउंडेशन को खूब तवज्जो देते रहे। तब यह भी माना गया कि माता मंगला राजनीति में दस्तक दे सकती हैं। बहरहाल, हंस फाउंडेशन की धाक अब नई सरकार में भी जम गई है। अपने पूर्ववर्ती हरीश रावत की तरह मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी भोले महाराज और माता मंगला को खूब तवज्जो दे रहे हैं। इसको लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं। दूसरी तरफ हंस फाउंडेशन का खजाना नई सरकार के लिए भी खुल गया है। इस बार फाउंडेशन संघ द्वारा संचालित स्कूलों को भी कई तरह की सहायता मुहैया करा रहा है, जिसमें वाहन से लेकर कंप्यूटर, फर्नीचर और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराना शामिल हैं।

कुल मिलाकर सबसे अहम बात यह है कि हंस फाउंडेशन की ताकत उसका ‘खजाना’ है, जिस पर हर किसी की नजर है। चाहे नेता हों, सामाजिक संगठन हो, मीडिया हो या फिर वास्तविक जरूरतमंद।आज संस्था की जो छवि बन चुकी है उसमें हर कोई इससे कुछ न कुछ हासिल करना चाहता है। संस्था भी जिस तरह आगे बढ़ कर लोगों की मदद कर रही है उससे यह तो साफ है कोई ना कोई मकसद जरूर है l बहरहाल फाउंडेशन द्वारा जो प्रचारित है उसके मुताबिक ‘उत्तराखंड 20-20’ नाम से कार्यक्रम तैयार किया गया है l उसका मकसद कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोगों का जीवन स्तर सुधारना है। लेकिन जिस तरह से इस फाउंडेशन के सियासी सक्रियता बढ रही है, उससे कुछ सवाल उठने भी स्वभाविक हैं ।

हकीकत यह है कि ये एक फंडिंग संस्था है जो जिसका काम विभिन्न सामाजिक कार्यों के लिए गैर सरकारी संस्थाओं को धन मुहैया कराना है। संस्था के पास यह धन अमेरिका स्थित ‘रूरल इंडिया सपोर्टिंग ट्रस्ट’ नाम की संस्था से आता है। हालांकि हंस फाउंडेशन की गतिविधियां देशभर में हैं, मगर इसका मुख्य फोकस उत्तराखंड पर ही है। बहरहाल यदि मकसद वही है जो हंस फाउंडेशन द्वारा प्रचारित तो निश्चित ही तारीफे काबिल है। निसंदेह फिर संस्था प्रदेश के लिए ‘बड़ी सरकार’ से कम नहीं हैl फिर तो प्रदेश को भी इस संस्था प्रति अपना नजरिया ब्दलना होगा, सिर्फ ‘दुधारू गाय’ ना समझा जाए l लेकिन अगर संस्था का मकसद कुछ और है तो मामला गंभीर है, फिर इसी पर वाकई गंभीर चिंतन की आवश्यकता है।

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