सरकार की गले की फांस बना स्टिंग में फंसा भ्रष्ट अधिकारी

सरकार की जीरो टालरेंस की नीति पर सवालिया निशान!
न हुई एसआईटी और न सीबीआई जांच और न हुआ सम्बद्ध
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : सूबे में काबिज भाजपा सरकार के गले की फांस आजकल भ्रष्ट टेक्नोक्रैट से एमडी बना एक अधिकारी बना हुआ है। एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी न तो सरकार इस महा भ्रष्ट अधिकारी को मुख्यमंत्री कार्यालय से ही सम्बद्ध ही करा पाई है और न इसके आज तक के काले कारनामों पर ही मंत्री के सख्त पत्र के बाद भी जांच ही शुरू कर सकी है। उल्टा यह भ्रष्ट अधिकारी स्टिंग की ख़बरों के सुर्खियाँ बंनने के बाद भी एमडी की कुर्सी पर जमा बैठा है। इस मामले को लेकर सरकार की जीरो टालरेंस की नीति पर खुद ही सवालिया निशान तो लग ही रहे हैं साथ ही मंत्री की साख भी धूमिल हो रही है कि वह एक भ्रष्ट अधिकारी को नहीं हटा पा रहे हैं।
गौरतलब हो कि उत्तराखंड के अस्तित्व में आने की बाद से ही सूबे में स्टिंग का प्रचलन चल निकला है राजनेताओं की कुर्सी हिलाने के बाद अब तक कई अधिकारियों के स्टिंग सूबे के कथित पत्रकारों ने पत्रकारिता की आड़ में अब तक किये हैं, और ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को स्टिंग बाज़ों ने दुधारुगाय की तरह दोहन कर फर्श से अर्श तक का सफ़र तय किया है। ऐसा ही एक स्टिंग वर्तमान सरकार के कार्यकाल के दौरान भी हुआ। चर्चा है कि इस स्टिंग में टेक्नोक्रैट से एमडी बना एक विभाग का अधिकारी चर्चा में आया है। मामले की गहराई को देखते हुए सूबे के एक काबिना मंत्री ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मामले की एसआईटी अथवा सीबीआई से जांच के लिए पत्र भी लिखा लेकिन एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी इस भ्रष्ट अधिकारी का सूबे के मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक बाल-बांका तक नहीं कर पाए है उल्टा यह अधिकारी अब उन पत्रकारों को धमकाने पर आमादा हो गया है जो सूबे में भ्रस्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़े हुए हैं।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार देश के एक काबिना मंत्री से लेकर मुज्ज़फरनगर के नामी नेता और चर्चित अपराधी से सम्बन्ध रखने वाला यह भ्रष्ट अधिकारी सत्ता में अपनी ख़ास पकड़ के लिए मशहूर है। चर्चा तो यहाँ तक है कि इसने विभागीय दस्तावेजों में पिछली सरकार के दौरान सारे कायदे कानूनों को बदलकर अपनी सेवानिवृत्ति तक एमडी की कुर्सी अपने नाम करवा दी है,जबकि पूर्व प्रावधानों के अनुसार यह सेवा शर्त केवल तीन वर्ष तक के लिए ही वैध थी। इस भ्रष्ट अधिकारी की राजनीतिक और ब्यूरोक्रेटिक पैठ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक सप्ताह से इसके खिलाफ जांच और सम्बद्धिकरण का पत्र उत्तराखंड शासन में इधर से उधर भटकाया जा रहा है लेकिन कोई भी उसपर प्रभावशाली एक्शन नहीं ले पा रहा है, जिससे मोदी सरकार और प्रदेश की भाजपा सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की बात जनता की नज़र में हवा-हवाई साबित हो रही है।