शुरू हो गया माँ नंदा सुनंदा महोत्सव

- चंद वंशजों के बिना नहीं होती पूजा
- हिमालय की पुत्री के नाम से है विख्यात
अल्मोड़ा : सदियों पहले शुरु हुई एक प्रथा जो आज तक चली आ रही है वह है इस देवी के मंदिर में तांत्रिक पूजा का होना। जी हां, चंद राजाओं के वंशज आज भी यहां तांत्रिक पूजा करने के बाद ही महोत्सव की शुरुआत करते हैं।
सोमवार को नंदाष्टमी के अवसर पर इस महोत्सव की शुरुआत हो गई है। अल्मोड़ा में नंदा देवी की पूजा तारा शक्ति के रूप में होती है। यह पूजा तांत्रिक विधि से होती है और चंद शासकों के वंशज ही इस पूजा को कराते हैं।
आज भी चंद शासकों के वंशज नैनीताल के पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा और उनके परिजन नंदाष्टमी के मौके पर परंपरा के मुताबिक तांत्रिक पूजा करवाते हैं। ज्योतिष और तंत्र-मंत्र विधाओं से उत्तराखंड का जनजीवन और संस्कृति बहुत प्रभावित रही है।
कत्यूरी और चंद राजा तंत्र विद्या में पारंगत माने जाते थे। देवी को युद्ध देवी के रूप में पूजने की परंपरा कत्यूरी और चंद शासनकाल में काफी प्रचलित रही। स्व. राजा आनंद सिंह तंत्र विद्या में काफी पारंगत माने जाते थे।
जानकारी के मुताबिक उनके निधन के बाद नंदा देवी की पूजा पद्धति में काफी परिवर्तन आ चुका है। हालांकि आज भी चंद शासकों के वंशज नैनीताल के पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा और उनके परिजन नंदाष्टमी के मौके पर परंपरा के मुताबिक तांत्रिक पूजा करवाते हैं।
यह पूजा तारा यंत्र के सामने होती है। यह पूजा षोडस उपचार, पूजन, यज्ञ, बलिदान और विसर्जन के साथ संपन्न होती है। तारा यंत्र राज परिवार अपने साथ लेकर आता है। यह यंत्र राज परिवार के पास ही है।
शक्ति उपासना के क्षेत्र में तारा को 10 महाविद्याओं के बीच दूसरे स्थान पर शोभित किया गया है। ब्रह्मांड पुराण में उनको तारा नाम महाशक्ति कहा गया है। मातृ शक्ति के रूप में उन्हें तारांबा नाम दिया गया है। उन्हें समुद्र की देवी माना जाता है, जो जल की गति को नियंत्रित करती हैं और समुद्र में नाविकों का मार्गदर्शन करती हैं।
उनका श्याम वर्ण है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार तारा को उग्र तारा कहा जाता है। तारा की उपासना मुख्यत: तांत्रिक पद्धति से होती है। इसे आगमोक्त पद्धति कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि बौद्ध धर्म में तारा के माध्यम से ही शक्ति का प्रवेश हुआ।
तिब्बत में उन्हें तारा धारणी का नाम दिया गया है। यह भी उल्लेखनीय है कि नंदा महोत्सव के दौरान चंद राज वंशज केसी सिंह बाबा को यहां राजा की तरह ही सम्मान दिया जाता है। प्रोटोकॉल के तहत नंदा महोत्सव के दौरान राज परिवार को सर्किट हाउस में ही ठहराया जाता है।
उत्तराखंड को एक सूत्र में पिरोने में मां नंदा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। नंदा देवी की पूजा पूरे प्रदेश में होती है। उन्हें उत्तराखंड की देवी मां का दर्जा प्राप्त है। पुराणों में हिमालय की पुत्री को नंदा बताया गया है, जिनका विवाह भगवान शिव से होता है।
देवी भागवत में नंदा को शैलपुत्री के रूप में नौ दुर्गाओं में एक बताया गया है। जबकि, भविष्य पुराण में उन्हें सीधे तौर पर दुर्गा कहा गया है। नंदा देवी के नाम से हिमालय की अनेक चोटियां हैं। इनमें नंदा देवी, नंदा कोट, नंदा घुंटी, नंदा खाट आदि चोटियां हैं। इसके अलावा नंदाकिनी, नंदकेसरी आदि नदियों के नाम भी नंदा देवी के नाम से हैं। उन्हें पर्वत राज हिमालय की पुत्री तथा उमा, गौरी और पार्वती के रूप में भी माना जाता है।
हर साल भाद्र शुक्ल अष्टमी को कुमाऊं के नैनीताल, भवाली, रानीखेत, चंपावत, कोट भ्रामरी, कपकोट, बागेश्वर, पिथौरागढ़ सहित विभिन्न स्थानों में नंदा देवी का मेला लगता है। अल्मोड़ा नगर में होने वाले मेले में चंद राजाओं के प्रतिनिधि मेले में पूजा करने आते हैं।
इसमें एक प्रतिमा चंद शासकों की कुलदेवी (तारा) और दूसरी नंदा (महिषासुर मर्दिनी) की बनाई जाती है। आम लोग इन प्रतिमाओं को मां नंदा और सुनंदा के नाम से जानते हैं। यह माना जाता है कि मां नंदा-सुनंदा का रूप नंदा देवी की चोटी के स्वरूप से आया।