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क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी कमीज में लगा प्लास्टिक का बटन कहां से आया…


आपकी, हमारी कमीज में लगा छोटा सा बटन भी,डिजाइन से लेकर उत्पादन, क्वालिटी चेक, मार्केटिंग सहित कई प्रक्रियाओं से होते हुए हम तक पहुंचा है। मेरा सवाल अभी भी बरकरार है, ये सब बनता कैसे है। इनको बनानेका स्किल कहां से आता है। क्या मैं सीख सकता हूं, क्या इन सब बातों को जानने केलिए बहुत ज्यादा तकनीकी होने की जरूरत है।
सिपेट में शॉर्ट टर्म कोर्स के लिएउत्तराखंड के किसी भी जिले से युवा कभी भी आकर एडमिशन ले सकते हैं। स्किल डेवलपमेंट के ये प्रोग्राम नेशनल स्किल्स क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क (एनक्यूएफ) सेसंबद्ध होने के साथ नेशनल स्किल्स क्वालिफिकेशन कमेटी (एनएसक्यूसी) से एप्रूव्डहै।
अभी तक संस्थान से 90 युवा शॉर्ट टर्मप्रोग्राम में शामिल हो चुके हैं, जबकि लगभग 150 युवा वर्तमान में कोर्स में इनरॉल हैं। फिलहाल कोविड-19 की वजह से ट्रेनिंग नहीं चल रही हैं। वहीं डिप्लोमा कोर्स के175 विद्यार्थियों को ऑनलाइन क्लासेज में पढ़ाया जा रहा है।
सिपेट के उपनिदेशक अभिषेक राजवंश का कहनाहै कि प्लास्टिक इंजीनियरिंग मेंअसीमित संभावनाएं हैं। अभिषेक राजवंश शुरुआत से ही देहरादून सिपेट सेंटर के संचालन से जुड़े हैं। उन्होंने हमें प्लास्टिक मॉल्ड टेक्नोलॉजी और प्लास्टिक टेक्नोलॉजी पर तीन-तीन वर्ष के डिप्लोमा कोर्स के बारे में बताया। मैथ, साइंस और इंगलिश विषयों के साथ दसवीं कक्षा के बाद एंट्रेस परीक्षा में बैठ सकते हैं। इन पाठ्यक्रमों में संयुक्त प्रवेश परीक्षा(जेईई) के माध्यम से प्रवेश मिलता है।
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