COVID -19UTTARAKHAND
गज़ब : हरिद्वार के एक होटल के कमरे से चल रही फर्म को दे दिया घटिया पीपीई किट सप्लाई का ठेका !
पीपीई किट के सभी मानकों के अनुरूप होने का सर्टिफिकेट किस अधिकारी ने जारी किया था
शासन के किन अधिकारी के संज्ञान में था सुशीला तिवारी मेडिकल कालेज के लिए पीपीई किट की खरीद का मामला
क्या मेडिकल कॉलेज शासन की जानकारी के बिना ही अपने स्तर से खरीद सकता है पीपीई किट
रुद्रपुर की एक फर्म के 800 रुपये प्रति किट की दर को ठुकराकर, 900 रुपये प्रति किट की सप्लाई को दी गई थी मंजूरी
शासन स्तर से घटिया पीपीई किट की खरीद के मामले की जांच क्यों नहीं की गई
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून। हल्द्वानी के सुशीला तिवारी मेडिकल कालेज के घटिया पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) खरीद मामले में एक नया खुलासा हुआ है। अब सवाल यह उठता है कि क्या मेडिकल कालेज प्रबंधन ने एक हजार किट खरीदने से पहले संबंधित कंपनी के बारे में कोई पड़ताल की थी या बिना जांच पड़ताल के ही 90 लाख रुपये की पीपीई किट का आर्डर एक होटल के कमरे में चलने वाली फार्म को ऐसे ही दे दिया ?
पीपीई किट कोरोना संक्रमण से बचाव संबंधी भारत सरकार की गाइडलाइन और सभी मानकों के अनुरूप है, इसका प्रमाण पत्र किसने जारी किया ? उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग के किन वरिष्ठ अधिकारी ने इसमें सहमति प्रदान की ? यह भी सवाल मुंह बाए आज भी खड़ा है। यदि किसी गाइडलाइन का पालन नहीं हुआ और किसी अधिकारी ने सहमति नहीं दी थी, तो ये घटिया किट क्यों खरीदी गई ? यह तमाम सवाल हैं, जिनके जवाब अभी नहीं मिले हैं। वहीं शासन स्तर पर इतना बड़ा घोटाला होने की जानकारी सामने आने के बाद भी इस मामले में कोई जांच अभी तक सामने नहीं आई है, कि आखिर इस घोटाले के लिए कौन-कौन जिम्मेदार हैं ? अब यह मामला तब और पेचीदा हो गया है जब यह मामला उत्तराखंड उच्चन्यायालय नैनीताल तक जा पहुंचा है।
पीपीई घोटाले को लेकर एक मीडिया रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें खुलासा किया गया है कि पीपीई किट सप्लाई करने वाली कंपनी ने मेडिकल कालेज को एक हजार किट की सप्लाई 90 लाख रुपये में की, जिसमें प्रति किट 900 रुपये की है, जबकि रुद्रपुर की एक कंपनी ने प्रति किट की लागत 800 रुपये बताई थी। वहीं घटिया किट सप्लाई करने वाली फर्म हरिद्वार के किसी होटल के कमरे से संचालित हो रही थी।
बताया गया कि यह पीपीई किट सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर्स और स्टाफ के लिए खरीदी गई थी। पीपीई किट का आर्डर सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज में 27 मार्च को दिया गया था, जिसमें 1000 किट सप्लाई करनी थी। 15 अप्रैल को यह सभी पीपीई किट सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज में पहुंच भी गई।
जब यह किट हॉस्पिटल में पहुंची तो डॉक्टरों ने इन्हें इस्तेमाल करने से मना कर दिया। क्योंकि किट पूरे सेट में नहीं थी। जिसमें न तो चश्मा था और न ही सर्जिकल बूट था। डॉक्टरो का कहना था कि किट में वे जरूरी उपाय नहीं है, जिनसे कोरोना संक्रमण से बचाव हो सके। मामला उछलने के बाद इसके बाद मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने आनन-फानन में इस किट को वापस करके मामला रफा-दफा करने का भले ही प्रयास किया हो लेकिन यह बात साफ़ हो गयी है कि कहीं न कहीं कोई गड़बड़ -घोटाला तो जरूर हुआ है और इस जिम्मेदारी से खरीद करने वाला मेडिकल कॉलेज प्रशासन बच नहीं सकता है।
हालांकि स्थानीय मीडिया ने इस मामले को पहले तो बड़े जोर शोर से उठाया, लेकिन बाद में मीडिया न तो इसकी तह में ही गया और न उसने इस मामले को किसी उपयुक्त मंच पर ही उठाया। एक जानकारी के अनुसार फिलहाल अब इस मामले को रफा दफा करने का पूरा ”खेल” रचा जा रहा है ऐसा सूत्रों का कहना है।
सबसे बड़ा सवाल यह आकर खड़ा हो गया कि शासन में बैठे आला अधिकारी क्या राज्य बनने से लेकर आज तक हुए घपले-घोटालों की तरह इसको भी फाइलों में कहीं दफन कर देंगे ?