हिलजात्रा का उत्सव रोमांचक और मनोरंजक
![](https://devbhoomimedia.com/wp-content/uploads/2017/09/hiljatra.jpeg)
हिलजात्रा उत्तराखंड का प्रमुख मुखौटा नृत्य
पिथौरागढ़ । पिथौरागढ़ में भादो माह में मनाया जाने वाला हिलजात्रा उत्तराखंड का प्रमुख मुखौटा नृत्य है। इस मुखौटा नृत्य का अब तक देश के प्रमुख महानगरों सहित अन्य शहरों में मंचन हो चुका है। हिलजात्रा का शाब्दिक अर्थ कीचड़ का खेल है। हिल का शाब्दिक अर्थ दलदल यानि पानी वाली दलदली भूमि और जात्रा का अर्थ खेल, तमाशा या यात्रा है। जिसका सीधा तात्पर्य पानी वाले दलदली भूमि में की जाने वाली खेती और खेल का मंचन है।
सोरघाटी के कुमौड़ और बजेटी गांवों में इसे एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा जिले के भुरमुनी, बलकोट, मेल्टा, खतीगांव, बोकटा, पुरान, हिमतड़, चमाली, जजुराली, गनगड़ा, बास्ते, भैंस्यूड़ी, सिल चमू, अगन्या, उड़ई, लोहाकोट, सेरा, पाली, डुंगरी, अलगड़ा, रसैपाटा, सुरौली, सतगड़, देवलथल, सिनखोला, कनालीछीना में मनाया जाता है। प्रत्येक स्थान पर हिलजात्रा मंचन में अंतर पाया जाता है। कुमौड़ की हिलजात्रा को विशिष्ट है, जहां पर लखिया भूत आता है।
यह उत्सव वर्षा ऋतु की समाप्ति और शरद के आगमन से कुछ पूर्व मनाया जाता है। हिमालयी राज्यों में सिक्किम, लेह लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, नेपाल, तिब्बत के अलावा चीन जापान और भूटान में भी मुखौटा नृत्य की परंपरा है। नेपाल में हिलजात्रा को इंदर जात्रा के नाम से जाना जाता है। पिथौरागढ़ जिले में सातू आंठू पर्व की समाप्ति के बाद इसे मनाया जाता है। इस पर्व तो माता सती का पर्व भी माना जाता है। जिसे कृषि पर्व के रूप में जाना जाता है। पिथौरागढ़ के सोर घाटी में पूर्व में पूरा जनजीवन कृषि पर केंद्रित था। उसी परिवेश के क्रियाकलापों का कला के रूप में प्रदर्शन हिलजात्रा में किया जाता है। यह उत्तराखंड की एक विशिष्ट लोक नाट्य शैली है। मुखौटों के साथ होने वाले इस उत्सव में लोक जीवन के साथ आस्था और हास्य भी है।
मुख्य पात्रों की भूमिका पुरुष निभाते ही निभाते हैं। लखिया भूत इस उत्सव का मुख्य पात्र है। जो भगवान शिव का 12वां गण है। उसके मैदान में आते ही पूरा उत्सव आस्था में बदल जाता है। लखिया धन, धान्य और सुख समृद्धि का आर्शीवाद देता है।जिसके चलते लगभग दो से तीन घंटे तक चलने वाले उत्सव के दौरान पूरा वातावरण शिवमय हो जाता है। सोर के कुमौड़ और बजेटी की हिलजात्रा विशेष मानी जाती है। जिसे देखने अब सैलानी भी पहुंचने लगे हैं। हिलजात्रा का उत्सव रोमांचक और बेहद मनोरंजक है। जो मंचन के बाद दर्शकों में अपनी छाप छोड़ जाता है।