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सीबीएसई,राज्य बोर्ड परीक्षाओं पर असमंजस

कमल किशोर डुकलान

सीबीएसई,राज्य बोर्ड की पहली प्राथमिकता परीक्षाएं कराने की संभावनाएं टटोलने की होनी चाहिए,क्योंकि परीक्षाएं छात्रों के भविष्य निर्धारण में अहम भूमिका निभाती हैं। परीक्षाओं से न केवल छात्रों की मेधा शक्ति का वास्तविक मूल्यांकन होता है,बल्कि यह भी तय होता है कि छात्रों को आगे क्या और कहां पढ़ाई करनी है।

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानी सीबीएसई की 12वीं की परीक्षाओं के संदर्भ में केन्द्रीय स्तर पर बुलाई गई बैठक भले ही किसी नतीजे पर न पहुंची हो,परन्तु केंद्रीय मंत्रियों समेत कुछ राज्यों के शिक्षा मंत्री इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि ये परीक्षाएं कराई जानी चाहिए। परीक्षाओं के आयोजन पर अंतिम फैसला जो भी हो,पहली प्राथमिकता परीक्षाएं कराने की संभावनाएं टटोलने की होनी चाहिए,क्योंकि परीक्षाएं छात्रों के भविष्य निर्धारण में अहम भूमिका निभाती हैं। परीक्षाओं से न केवल छात्रों की मेधा शक्ति वास्तविक मूल्यांकन होता है,बल्कि यह भी तय होता है कि छात्रों को आगे क्या और कहां पढ़ाई करनी चाहिए? इसी कारण कोरोना की दूसरी लहर के सिर उठा लेने पर यह फैसला किया गया था कि केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अनुसार देशभर की राज्य सरकारों ने 10वीं के छात्रों को बिना परीक्षा के आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर पास कर दिया जाएगा,पूरे देशभर में कोरोना संक्रमण की बिक्रालता को देखते हुए फिलहाल यह कहना कठिन है कि 12वीं की परीक्षाएं कराई जाएंगी। जिस तरह से पूरे देशभर में पिछले दो-तीन दिनों से संक्रमितों के आंकड़ों में गिरावट देखी जा रही है उससे लगता है कि स्थिति-परिस्थिति के अनुसार जुलाई तक हालात सामान्य हो पायेंगे ऐसे में भी कोविड प्रोटोकाल का सख्ती से पालन करते हुए परीक्षाएं कराई जा सकती हैं।

परीक्षा विभाग को एक सीमित विषयों का पाठ्यक्रम बनाकर सभी विषयों की बजाय कुछ ही विषयों की परीक्षाओं की सम्भावना तलाशी जानी चाहिए ताकि छात्रों को इस महामारी में कम से कम जोखिम का सामना करना पड़े। निश्चित ही पाठ्यक्रम कम रहने और चुनिंदा विषयों की परीक्षाएं होने से छात्र तनाव से भी बचेंगे। इससे अभिभावकों की भी चिंता एक हद तक कम होगी। सम्भवतः जब परीक्षाएं हो रही हों,तब देश के कुछ हिस्सों में कोरोना संक्रमण का स्तर चिंताजनक हो,इसलिए भिन्न-भिन्न राज्यों में अलग-अलग समय पर भी परीक्षा कराने का विकल्प खुला रखना चाहिए। यह अच्छा हुआ कि शिक्षा मंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया कि परीक्षाओं को लेकर फैसला करते समय यह ध्यान रखा जाएगा कि छात्रों को कम से कम 15 दिन का समय मिले। यह सूचना भी छात्रों के तनाव को कम करने वाली साबित होनी चाहिए। चूंकि राज्य बोर्डों की 12वीं की परीक्षाएं कराने-न कराने का फैसला राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है, इसलिए इसे राजनीतिक मसला बनाने से बचा जाना चाहिए। यह ठीक नहीं कि कुछ नेता इस पर संकीर्ण राजनीति कर रहे हैं।

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