UTTARAKHAND

काशीपुर स्थित आयुष्मान स्पेशिलिटी हास्पिटल की दो शाखाओं सितारगंज और जसपुर में भी सामने आया धोखाधड़ी का मामला।

  • धोखाधड़ी के आरोप में राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण ने इन दो शाखाओं पर भी की निलंबन की कार्रवाई
  • फर्जी पैथोलॉजी बिल के आधार पर सितारगंज और जसपुर की इन शाखाओं ने प्रस्तुत किए थे 10 लाख रूपए से अधिक के बिल
  • जांच-पड़ताल के बाद राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण ने उठाया कठोर कदम
देहरादून: राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण। काशीपुर स्थित आयुष्मान स्पेशिलिटी हास्पिटल का धोखाधड़ी मामला शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। इसकी दो यूनिटें सितारगंज और जसपुर में भी धोखाधड़ी का मामला सामने आया है। यहाँ भी हॉस्पिटल ने डॉ योगेश स्वामी की पैथोलाजी रिपोर्ट नाम, हस्ताक्षर व मोहर का इस्तेमाल किया है जो कि जांच पड़ताल में पूरी तरह से फर्जी पाया गया है। डॉ योगेश ने भी इसकी पुष्टि की है कि उनका काशीपुर स्थित आयुष्मान स्पेशिलिटी हास्पिटल तथा इसकी सितारगंज और काशीपुर की शाखाओं से दूर-दूर तक कोई भी संबंध नहीं है।
फर्जी पैथोलॉजी बिल के आधार पर जहां एक ओर आयुष्मान स्पेशिलिटी हास्पिटल, सितारगंज शाखा ने राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण को 27 मामलों 07 लाख 82 हजार से ऊपर के बिल प्रस्तुत किए हैं। वहीं आयुष्मान स्पेशिलिटी हास्पिटल,जसपुर शाखा ने 22 मामलों 02 लाख 57 हजार से ऊपर के फर्जी बिल प्रस्तुत किए हैं। दोनों शाखाओं के फर्जी बिलों को मिला दिया जाए तो कुल 49 मामलों में 10 लाख 39 हजार से ऊपर की धोखाधड़ी सामने आई है।
हाल में आई शिकायतों व जांच-पड़ताल के बाद फर्जी पैथोलाजी रिपोर्ट के आधार पर क्लेम प्राप्त करने पर राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण ने काशीपुर स्थित आयुष्मान स्पेशिलिटी हास्पिटल की सूचीबद्धता निलंबित कर दी गई है। इसी क्रम में इसकी दो शाखाओं सितारगंज और जसपुर पर भी धोखाधड़ी को लेकर सूचीबद्धता निलंबित करने के निर्देश हुए हैं।
इससे पहले काशीपुर स्थित आयुष्मान स्पेशिलिटी हास्पिटल ने फर्जी पैथोलॉजी बिल के आधार पर 1324 मामलों में तीन करोड़ 42 लाख पचास हजार 908 रुपये का क्लेम राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण को प्रस्तुत किया था जिसपर प्राधिकरण ने कार्यवाई कर हॉस्पिटल की सूचीबद्धता निलंबित कर दी। काशीपुर, सितारगंज और जसपुर हॉस्पिटल बिलों में डा. योगेश स्वामी की पैथोलाजी रिपोर्ट नाम, हस्ताक्षर व अस्पताल की मोहर का इस्तेमाल किया गया है।
जबकि प्राधिकरण की जांच-पड़ताल में पाया गया कि डा. योगेश ना अस्पताल में कार्यरत हैैं और न अन्य कोई संबंध है। उन्होंने अपने नाम का गलत उपयोग करने व फर्जी हस्ताक्षर की पुष्टि लिखित रूप में की है। जिस पर प्राधिकरण ने माना है कि यह एक गंभीर आपराधिक कृत्य है। प्राधिकरण प्रशासन ने माना है कि अस्पताल ने प्राधिकरण के साथ धोखाधड़ी की है। इस तरह के कृत्य से मरीजों की जान को भी खतरा हो सकता है। संबंधित अस्पताल से रिकवरी की प्रक्रिया की जा रही है।
आयुष्मान योजना का संचालन कर रहे राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण की ओर से जहां बेहतर कार्य करने वाले अस्पतालों को समय-समय पर प्रोत्साहित किया जाता है वहीं किसी तरह की लापरवाही या अनियमितताएं करने वाले हॉस्पिटलों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई भी की जाती है।

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