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अमेरिकी शोध ने किया दावा : कैंसर की दवा से कम की जा सकती है कोरोना संक्रमण की गंभीरता

अमेरिकी शोध में किया गया दावा कि कैंसर की दवा से तीन दिन में मिला आराम

सांस की तकलीफ और इम्यून सिस्टम पर दवा से हुआ नियंत्रण

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
देहरादून : कोरोना के बढ़ते संक्रमण से जहां दुनियाभर के दो सौ से ज्यादा देश प्रभावित हैं। वहीं अमेरिका, ब्राजील, रूस, ब्रिटेन जैसे देशों में संक्रमण की स्थिति गंभीर है। जबकि भारत में भी हर दिन कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। वहीं एक और चिंता की बात यह है कि छह महीने बाद भी अब तक इस घातक बीमारी को रोकने की वैक्सीन तक तैयार नहीं हो सकी है और न ही इसकी कोई निश्चित दवा ही उपलब्ध है ,विश्व में जहाँ भी इलाज किया जा रहा है वह सब मलेरिया या अन्य बीमारियों की दवाओं के प्रयोग पर आधारित ही है। हालांकि कोरोना मरीजों को सांस लेने में होने वाली तकलीफों को भी कुछ अन्य बीमारियों की दवाओं के जरिए कम किया जा रहा है। वहीं कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित अमेरिका में कोरोना मरीजों की तकलीफ कम करने और इलाज में मदद करने के लिए अब कैंसर की दवा का कोरोना के संक्रमितों पर प्रयोग जारी है और वैज्ञानिक इस शोध भी कर रहे हैं ।
नेशनल कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि कैंसर की दवा से कोरोन संक्रमण की गंभीरता कम की जा सकती है और कोरोना के इलाज में मदद मिल सकती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, ब्लड कैंसर की दवा से संक्रमित मरीजों की सांस लेने की तकलीफ को कम किया जा सकता है। इसके जरिए मरीजों के इम्यून सिस्टम को भी कंट्रोल किया जा सकता है। इम्यून सिस्टम में ज्यादा एक्टिव होने के कारण गंभीर संक्रमण की संभावना होती है।
प्रोटीन को ब्लॉक करती है दवा
साइंस इम्यूनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक, कैंसर की दवा ‘एकैलब्रूटिनिब’ कोरोना मरीजों में बीटीके प्रोटीन यानी ब्रूटॉन टायरोसिन काइनेज को ब्लॉक करती है। इम्यून सिस्टम में यह प्रोटीन अहम रोल अदा करता है। कई बार जब इम्यून सिस्टम ज्यादा एक्टिव हो जाता है तो यह शरीर को संक्रमण से बचाने की बजाय सूजन का कारण बनने लगता है।

शोधकर्ताओं का मानना है कि इम्यून सिस्टम में सायटोकाइनिन प्रोटीन की वजह से ऐसा होता है। इस प्रक्रिया को चिकित्सकीय भाषा में सायटोकाइनिन स्टॉर्म भी कहा जाता है। इस प्रक्रिया में ब्रूटॉन टायरोसिन काइनेज प्रोटीन का भी रोल होता है। इसलिए कैंसर की दवा के जरिए कोरोना मरीजों में इस प्रोटीन को ब्लॉक किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना मरीजों में सायटोकाइनिन प्रोटीन ज्यादा मात्रा में रिलीज होता है, जिसके कारण इम्यून सिस्टम उल्टा ही काम करने लगता है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने लगता है। कोरोना के 19 मरीजों पर एक छोटा सा अध्ययन किया गया तो पाया गया कि उनके शरीर में ऑक्सीजन का स्तर घट रहा था और सूजन बढ़ रही थी।
एक से तीन दिन में मिला आराम
शोधकर्ताओं का दावा है कि कोरोना के 19 मरीजों में से 11 मरीजों को दो दिन तक ऑक्सीजन दी गई थी, जबकि बाकी आठ मरीज डेढ़ दिन तक वेंटिलेटर पर रहे थे। इन मरीजों को कैंसर की दवा देने के एक से तीन दिन के अंदर सूजन कम हुई और सांस लेने की तकलीफ में भी बहुत आराम मिला। 11 मरीजों को दिया जा रहा ऑक्सीजन सपोर्ट भी हटा दिया गया और उन्हें हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई।

वेंटिलेटर पर रह रहे आठ में से चार मरीजों को राहत मिलने पर सपोर्ट हटा लिया गया और दो को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। दुर्भाग्यवश अन्य दो मरीजों की तबतक मौत हो चुकी थी। हालांकि इसके और भी कारण रहे होंगे। इन मरीजों की ब्लड रिपोर्ट में सामने आया कि इनका ब्लड प्रोटीन इंटरल्यूकिन-6 का स्तर बढ़ा हुआ था। सूजन का कारण बनने वाला यह प्रोटीन कैंसर की दवा देने के बाद कम हुआ था।

साइंस इम्यूनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, क्लीनिकल प्रैक्टिस के लिए इस दवा के इस्तेमाल की सलाह नहीं दी जानी चाहिए। कैंसर की इस दवा का प्रयोग और अध्ययन बहुत ही कम मरीजों पर हुआ है। इसलिए कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इसका इस्तेमाल मरीजों की स्थिति पर निर्भर करता है।

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