ब्यूरोक्रेसी में NH घोटाले की सीबीआई जांच की संस्तुति से मची खलबली
एनएचएआई के अफसरों समेत राजस्व विभाग के कर्मचारियों पर भी गिरेगी गाज
जांच में घेरे में घिर सकते हैं कई आईएएस अफसर
एसएलएओ और एक प्रभावशाली नेता की लड़ाई के बाद खुला मामला !
रुद्रपुर। खेती वाली जमीन को गैर कृषि वाली भूमि दर्शा कर 240 करोड़ के घोटाले में छह पीसीएस अधिकारियों के निलंबन आदेश के बाद अभी एनएच के दो परियोजना निदेशक एवं क्षेत्रीय अधिकारी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण समेत बड़ी संख्या में कर्मचारियों पर गाज गिर सकती है। क्षेत्रीय अधिकारी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने सिर्फ एसएलएओ की रिपोर्ट को मानते हुए बड़ी धनराशि वालों का ही मुआवजा रिलीज किया था। जो प्रतिकर एसएलएओ दफ्तर से तय किया गया, उस पर एनएचएआई ने कोई आपत्ति नहीं जताई, जबकि अधिक प्रतिकर तय होने पर एनएचएआई को आर्विटेटर के पास जाना चाहिए था। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के मामले को सीबीआई के हवाले करने की घोषणा के बाद अफसरों में खलबली मच गई है।
गौरतलब है कि मंडलायुक्त डी सेंथिल पांडियन की जांच रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत छह पीसीएस अफसरों को निलंबित करके मामले की जांच सीबीआई के हवाले करने का ऐलान बीती शाम कर दिया था। मुख्यमंत्री ने पीसीएस अधिकारी सुरेंद्र सिंह जंगपांगी, जगदीश लाल, भगत सिंह फोनिया, एनएस नगन्याल, दिनेश प्रताप सिंह, अनिल कुमार शुक्ला को निलंबित कर दिया है, जबकि एक सेवानिवृत पीसीएस अफसर एचएस मर्तोलिया के खिलाफ भी कार्रवाई हो रही है। उनकी पेंशन रोकी जा सकती है। श्री मर्तोलिया 17 जनवरी को सेवानिवृत हो चुके हैं।
मुख्यमंत्री के इस एक्शन के बाद एनएचएआई के दो परियोजना निदेशक एवं क्षेत्रीय अधिकारी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण पर भी गाज गिर सकती है। इसके अलावा जिले की तहसीलों में तैनात कई तहसीलदारों, कानूनगो एवं पटवारियों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। दरअसल, जिन जमीनों पर खेती हो रही थी, उन जमीनों को गैर कृषि की दर्शा कर जमीनों का भू उपयोग कर दिया तथा मुआवजा राशि कई गुना अधिक वसूली गई। इस खेल की शुरूवात को पटवारी की रिपोर्ट से शुरू हुई थी, मगर बड़े अफसर भी इसमें संलिप्त हो गए और उन्होंने बगैर निर्धारित प्रक्रिया अपनाए जमीनों का भू उपयोग बदल दिया। इसके साथ ही चकबंदी विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है।
छह अफसरों के निलंबन के बाद अब यह तय हो गया है कि इस मामले में अन्य अफसरों के खिलाफ भी कार्रवाई होगी। बड़ी संख्या में कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी अभी बाकी है। सीबीआई जांच में कुछ आईएएस अफसर भी फंस सकते हैं। सीबीआई जांच के आदेश से संबंधित अधिकारियों एवं कर्मचारियों में खलबली मच गई है।
तत्कालीन डीएम ने सरकारी जमीन का 13.82 करोड़ प्रतिकर कर दिया था मंजूर
राष्ट्रीय राजमार्ग 74 के ग्राम बरा एवं बरी में 20 भूखंडों (सरकारी भूमि) का 13.82 करोड़ का मुआवजा तत्कालीन जिलाधिकारी ने आर्विटेटर के रूप में जारी करने का आदेश दिया था, मगर तत्कालीन एसएलएओ डीपी सिंह ने उस राशि को जारी नहीं किया। यहीं से एसएलएओ और एक प्रभावशाली नेता की लड़ाई शुरू हुई थी।
गौरतलब है कि ग्राम बरा में किसान तरुण कुमार का खसरा 428 रकबा 0.0155 (बंजर भूमि) का 765600, परिणिता निवासी बरी का खसरा नंबर 484 रकबा 0.1147 हेक्टेयर भूमि का प्रकार वर्ग चार क का 20187200, बरी के ही उदित कुमार का खसरा नंबर 514 रकबा 0.0307 भूमि का प्रकार वर्ग 6(4) खंती का 5403200 रुपये, सुरेश कुमार निवासी बरा खसरा संख्या 772 व 435 भूमि का प्रकार वर्ग 6(2) का 2907520 रुपये, बरा के वीर पाल खसरा नंबर 355/990 रकबा 0.400 हेक्टेयर भूमि का प्रकार वर्ग 6 (4) खंती का 7040000 रुपये, बरा के ईश्वरी प्रसाद का खसरा संख्या 433 रकबा 0.0186 भूमि का प्रकार वर्ग 6(2) का 3273600 एवं खसरा संख्या 772 रकवा 0.0282 भूमि का प्रकार वर्ग 6 (2) का 4963200 रुपये, बरी निवासी रामनरायन ने खसरा संख्या 419 रकबा 0.0790 हेक्टेयर वर्ग 6 (4) खंती का 5403200 रुपये, खसरा संख्या 408 रकबा 0.0720 हेक्टेयर वर्ग चार क, खसरा संख्या 410 रकबा 0.088 हेक्टेयर वर्ग चार क, खसरा संख्या 411 रकबा 0.0848 वर्ग चार क, खसरा 468 रकबा 0.0331 हेक्टेयर, खसरा 709 रकबा 0.063 हेक्टेयर वर्ग 5 (3) अन्य बंजर का सात करोड़ 39 लाख दो हजार चार सौ रुपये का, बरा अमित कुमार का खसरा नंबर 492 रकबा 0.0062 हेक्टेयर भूमि का प्रकार वर्ग 5 (3) बंजर तथा खसरा संख्या 560 रकबा 0.0133 भूमि का प्रकार 5 (3) बंजर का 3432000 रुपये, बरा के महीपाल का खसरा संख्या 692 रकबा 0.0250 भूमि का प्रकार वर्ग 6 (क) खंती का 4400000 रुपये एवं बरा के जयपाल भी खसरा नंबर 482 एवं 491 बंजर जमीन का 5104000 रुपये का आर्विटेटर (तत्कालीन जिलाधिकारी)ने प्रतिकर राशि तय कर दी थी। तत्कालीन एसएलएओ ने 13 करोड़ 82 लाख 69120 रुपये की इस प्रतिकर राशि को जारी नहीं किया था। यहीं से एसएलएओ की जिले के उस वक्त के कांग्रेस नेता (अब भाजपा में) से लड़ाई शुरू हुई थी।
फाइलों में दबा रहता करोड़ों का घोटाला आयुक्त संज्ञान न लेते
आयुक्त पांडियन को जाता है घोटाले को सार्वजनिक करने का श्रेय
अवैध तरीके से भू उपयोग परिवर्तन के बाद 240 करोड़ के राजस्व क्षति का मामला फाइलों में ही दब कर रह जाता यदि मंडलायुक्त डी सेंथिल पांडियन खुद संज्ञान लेकर जांच शुरू न करते। हालांकि जसपुर में एसडीएम पद पर तैनात प्रशिक्षु आईएएस मनुज गोयल ने भी इस मामले में जांच की थी, लेकिन उसके बाद भी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई।
गौरतलब है कि मंडलायुक्त पांडियन ने इसी महीने जिले का दौरा किया था। तभी उन्होंने नेशनल हाइवे की समीक्षा की थी। पहले ही दिन उन्होंने एनएच भूमि अधिग्रहण में जमीनों की बैकडेट में 143 करके 170 करोड़ के घोटाले का अंदेशा जताते हुए शासन को रिपोर्ट भेजी थी। शासन ने आयुक्त की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी का गठन किया था। साथ ही निर्देश दिया था कि इस घोटाले में प्राथमिकी दर्ज कराई जाए। जिस पर 10 मार्च को कई विभागों के अफसरों के खिलाफ विभिन्न अपराधिक धाराओं में सिडकुल चौकी में एफआईआर दर्ज करा दी गई। शासन के निर्देश पर आयुक्त ने फिर से विस्तृत जांच की।
जांच के बाद आयुक्त ने माना था कि मामला काफी बड़ा और गंभीर है। उन्होंने 240 करोड़ तक की राजस्व क्षति का आंकलन किया था। साथ ही इस मामले की तथ्यात्मक रिपोर्ट शासन को भेजते हुए मामले की जांच किसी स्वतंत्र एवं विशेषज्ञ की टीम से कराने की सिफारिश की थी। आयुक्त की रिपोर्ट को मुख्यमंत्री रावत ने गंभीरता से लिया, साथ ही दर्ज एफआईआर की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश कर दी। साथ ही राज्य सरकार के अधीन आधा दर्जन पीसीएस अफसरों को एक साथ निलंबित कर दिया।
राज्य के इतिहास में शायद पहला मौका है जब किसी एक मामले में इतने अफसरों पर कार्रवाई हुई हो। यदि आयुक्त पांडियन इस प्रकरण का संज्ञान लेकर जांच न करते तो मामला न सिर्फ दब जाता, बल्कि राजस्व क्षति का यह खेल यूं तो चलता रहता। इस बड़े घोटाले को सार्वजनिक करने का श्रेय ही आयुक्त को जाता है। उन्हीं की बदौलत भ्रष्टाचार के इस खेल पर लगाम लग सकी है।