मन की बात : PM मोदी देहरादून की बेटी के दर्द से आहत
खाने की बर्बादी गरीबों के साथ अन्याय
छोटी-छोटी चीजों से बनेगा ‘न्यू इंडिया’: पीएम मोदी
देहरादून : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के जरिए देश को संबोधित किया। मन की बात कार्यक्रम का यह 30वां संस्करण था । पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन के बाद पीएम मोदी का ये पहला रेडियो कार्यक्रम था। इस बार मन की बात में पीएम मोदी ने परीक्षाओं से लेकर डिप्रेशन की समस्या तक पर बात की। पीएम ने कार्यक्रम के दौरान लोगों से ट्रैफिक नियमों का पालन करने और हफ्ते में एक दिन पेट्रोल डीजल का प्रयोग न करने का संकल्प लेने को कहा। इसी के साथ पीएम ने गंदगी को लेकर लोगों को अपने अंदर गुस्सा पैदा करने की बात कही।
वहीँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ से पूरे राष्ट्र को संबोधितकरते हुए देहरादून की बेटी दर्द से आहत दिखे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाश वाणी में ‘मन की बात’ में देहरादून की गायत्री का जिक्र किया। आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला…
देहरादून की रिस्पना नदी में गंदगी को लेकर देहरादून की 11वीं की छात्रा गायत्री ने मेसेज के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समस्या से रूबरू कराया। छात्रा ने मोदी से कहा की “आदरणीय प्रधानाचार्य, प्रधानमंत्री जी, आपको मेरा सादर प्रणाम। सबसे पहले तो आपको बहुत बधाइयां कि आप इस चुनाव में आपने भारी मतों से विजय हासिल की है। मैं आपसे अपने मन की बात करना चाहती हूँ।”मैं कहना चाहती हूँ कि लोगों को यह समझाना होगा कि स्वच्छता कितनी ज़रूरी है। मैं रोज़ उस नदी से हो कर जाती हूँ, जिसमें लोग बहुत सा कूड़ा-करकट भी डालते हैं और नदियों को दूषित करते हैं। इस नदी के लिये हमने बस्तियों में जा करके रैली निकाली, लोगों से बातचीत भी की, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। मैं आपसे ये कहना चाहती हूं कि अपनी एक टीम भेजकर या फिर न्यूज़पेपर के जरिए इस बात को उजागर करें, धन्यवाद।’
गायत्री की बात पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाश वाणी में रविवावा को ‘मन की बात’ में कहा की देखिए भाइयों-बहनों, 11वीं कक्षा की एक बेटी को नदी में कूड़ा-कचरा देख कर कर कितना गुस्सा आ रहा है। उसे इस बात की कितनी पीड़ा है। मैं इसे अच्छी निशानी मानता हूं। मैं यही तो चाहता हूं, सवा-सौ करोड़ देशवासियों के मन में गन्दगी के प्रति गुस्सा पैदा हो। एक बार गुस्सा पैदा होगा, नाराज़गी पैदा होगी, उसके प्रति रोष पैदा होगा, हम ही गन्दगी के खिलाफ़ कुछ-न-कुछ करने लग जाएंगे। और अच्छी बात है कि गायत्री स्वयं अपना गुस्सा भी प्रकट कर रही है, मुझे सुझाव भी दे रही है, लेकिन साथ-साथ ख़ुद ये भी कह रही है कि उसने काफ़ी प्रयास किए, लेकिन विफलता मिली।
जब से स्वच्छता के आन्दोलन की शुरुआत हुई है, जागरूकता आई है। हर कोई उसमें सकारात्मक रूप से जुड़ता चला गया है। उसने एक आंदोलन का रूप भी लिया है।गन्दगी के प्रति नफ़रत भी बढ़ती चली जा रही है। जागरूकता हो, सक्रिय भागीदारी हो, आंदोलन हो, इसका अपना महत्व है ही है। लेकिन स्वच्छता आंदोलन से ज़्यादा आदत से जुड़ी हुई होती है।
ये आंदोलन आदत बदलने का आंदोलन है, ये आंदोलन स्वच्छता की आदत पैदा करने का आंदोलन है, आंदोलन सामूहिक रूप से हो सकता है। काम कठिन है, लेकिन करना है। मुझे विश्वास है कि देश की नयी पीढ़ी में, बालकों में, विद्यार्थियों में, युवकों में, ये जो भाव जगा है, ये अपने-आप में अच्छे परिणाम के संकेत देता है। आज की मेरी ‘मन की बात’ में गायत्री की बात जो भी सुन रहे हैं, मैं सारे देशवासियों को कहूँगा कि गायत्री का संदेश हम सब के लिये संदेश बनना चाहिए।