भ्रष्टाचार की जंग में सिस्टम से लोहा लेता एक अधिकारी
- अपनों ने दुत्कारा लेकिन गैरों ने पुचकारा
- विश्वविख्यात हैदराबाद पुलिस ट्रेनिंग संस्थान ने लेक्चर के लिए बुलाया
- भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग के लिए मिल चुका है विश्व प्रसिद्द रमन मेगसेसे पुरूस्कार
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखंड में तैनात एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अधिकारी जिसे भ्रष्टाचार को सामने लाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग के लिए विश्व प्रसिद्द रमन मेगसेसे पुरूस्कार से नवाजा जा चुका है ।ऐसे अधिकारी को उत्तराखंड सरकार ने एक कोने फेंक रखा है। लेकिन उसकी काबिलियत को देखते हुए देश में सर्वोच्च प्रशिक्षण देने के लिए मशहूर हैदराबाद पुलिस इंस्टिट्यूट ने अपने यहाँ देश के नामी गिरामी अधिकारियों को भ्रष्टाचार से कैसे लड़ा जाय और उनकी कानूनी बारीकियों को समझाने के लिए आमंत्रित किया। यह उत्तराखंड के भ्रष्ट तंत्र के लिए भले ही अच्छी खबर न हो लेकिन राज्यहित में सोचने वालों के लिए यह जरुर एक अच्छी खबर है कि उत्तराखंड में वह नायाब हीरा मौजूद है जिसको राष्ट्रीय और विश्व पटल पर एक अलग पहचान मिली है। इस शख्स का नाम है संजीव चतुर्वेदी।
गौरतलब हो कि संजीव चतुर्वेदी ने वर्ष 1995 में मोतीलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद से बीटेक करने के बाद 2002 के आईएफएस अफसर बने । संजीव चतुर्वेदी मूलत: हरियाणा काडर के अधिकारी थे लेकिन अब केंद्रीय कार्मिक विभाग ने इन्हें उत्तराखंड काडर आवंटित कर दिया है। इनकी पहली पोस्टिंग हरियाणा के कुरुक्षेत्र में मिली, जहां इन्होंने हांसी बुटाना नहर बनाने वाले ठेकेदारों पर एफआईआर दर्ज करवाई। बतौर सीवीओ, एम्स में संजीव ने अपने दो साल के कार्यकाल में 150 से ज्यादा भ्रष्टाचार के मामले उजागर किए। केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद संजीव को CVO पद से हटा दिया गया, जिस पर काफी विवाद भी हुआ था। वर्ष 2014 में संजीव को स्वास्थ्य सचिव ने ईमानदार अधिकारी का तमगा दिया था। 2007-08 में संजीव ने झज्जर में एक हर्बल पार्क के निर्माण में हुए घोटाले का पर्दाफाश किया, जिसमें मंत्री और विधायकों के अलावा कुछ अधिकारी भी शामिल थे।
वहीँ वर्ष 2009 में ही संजीव पर एक जूनियर अधिकारी संजीव तोमर को प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था , हालांकि बाद में उन्हें आरोप मुक्त कर दिया गया। हरियाणा में सेवाकाल के दौरान पांच साल में उनका 12 बार ट्रांसफर किया गया। इसके बाद 2010 में उन्होंने राज्य सरकार से परेशान होकर केंद्र में प्रति नियुक्ति की अर्जी दी थी। इसके बाद उन्हें 2012 में AIIMS के डिप्टी डायरेक्टर का पद सौंपा गया और CVO पद की जिम्मेदारी सौंपी गई इसके बाद केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद संजीव चतुर्वेदी को CVO पद से हटा दिया गया, जिस पर काफी विवाद भी हुआ। इतना ही नहीं कई झूठे पुलिस मुकदमों और निलंबन के बाद राष्ट्रपति के यहां से चार बार इनकी बहाली हो चुकी है
उत्तराखंड आने के बाद आईएफएस अफसर संजीव चतुर्वेदी ने अपनी तैनाती पर उत्तराखंड के तत्कालीन वन मंत्री की सार्वजनिक टीका-टिप्पणी करने से आक्रोशित होकर व्यक्तिगत आधार नोटिस तक भेज दिया था उन्होंने वन मंत्री को भेजे नोटिस में लिखा था कि ‘वन मंत्री दिनेश अग्रवाल यदि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और आला नेताओं की नीति से सहमत नहीं तो वे नैतिकता के आधार पर कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दें। उन्होंने नोटिस में कहा था एक ओर उनका केंद्रीय नेतृत्व मुझे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आदर्श प्रतीक के तौर पर सम्मान देता है और दूसरी तरफ वे मुझ पर अनर्गल टिप्पणियां करने से नहीं हिचकते।’
उत्तराखंड में वन संरक्षक पद पर तैनात संजीव चतुर्वेदी को भले ही उत्तराखण्ड सरकार या सूबे का वन महकमा किन्ही कारणों से तवज्जो न देता हो लेकिन देश में प्रशिक्षण देने के लिए विख्यात हैदराबाद पोलिस प्रशिक्षण केंद्र ने उन्हें सम्मान दिया है और अपने यहाँ उनके अनुभवों और जानकारियों को साझा करने को बुलाया है , उन्होंने वहां देश के सर्वोत्तम और अपने से वरिष्ठ अधिकारियों के सामने अपने सेवाकाल के अनुभवों और संघषों को साझा किया और अधिकारियों को जाँच के साथ ही कानूनी बारीकियों को भी समझाया वहीँ उन्होंने देश के आईएएस, आईपीएस काडर के अधिकारियों को देश सेवा के लिए नेक नियति से काम करने का भी मंत्र दिया।