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लखवाड़ परियोजना के बाद अब सूबे की अन्य बंद जलविद्युत परियोजनाओं के बहुरेंगे दिन!

  • मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की उपलब्धियों में जुड़ेगी एक और उपलब्धि 
  • लखवाड़ परियोजना से उत्तराखंड को मिलेगी पूरी बिजली 
  • लखवाड़ परियोजना पर बनेगा  204 मीटर ऊंचा बांध
  • 28 अगस्त को उत्तराखंड सहित पांच अन्य राज्यों के बीच होगा समझौता 

राजेन्द्र जोशी 

DEHERADUN : लखवाड़ जलविद्युत परियोजना पर  सप्ताह छह राज्यों के मध्य होने जा रहे समझौते के बाद अब उत्तराखंड में खण्डूड़ी शासन काल में एनजीटी द्वारा बंद कराई गयी अन्य जलविद्युत परियोंजनाओं के दिन भी बहुरे जाने की उम्मीद दिखाई देने लगी है , बंद पड़ी इन परियोजनाओं पर राज्य व केंद्र सरकार का करोड़ों रुपया डूब चुका है जो परियोजनाओं के अस्तित्व में आने के बाद वसूल तो होगा ही साथ ही इससे जहाँ राज्य की आय में इजाफा होगा वहीँ देश को सबसे सस्ती बिजली मिलेगी जिसकी की वर्तमान में देश को काफी आवश्यकता भी है। राज्य में एनजीटी द्वारा द्वारा बंद करवाई गयी जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर पिछले एक साल से त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार केंद्र से लगातार पत्राचार और खुद भी सचिवों के माध्यम से परियोजनाओं को शुरू करवाने के लिए प्रयासरत रही है। यही कारण है कि लखवाड़ जल विद्युत परियोजना पर मिल रही सफलता के बाद अब अन्य परियोजनाओं पर भी राज्य को सफलता मिलने  की उम्मीद जगी है ,जिसे त्रिवेन्द्र रावत की उपलब्धियों में ही शुमार किया जाएगा। 

गौरतलब हो कि  लखवाड़ जलविद्युत परियोजना को 1976 में योजना आयोग ने मंजूरी दी थी। दस साल बाद 1986 में पर्यावरणीय मंजूरी मिलने के बाद 1987 में जेपी समूह ने उत्तर प्रदेश के सिंचाई  विभाग के पर्यवेक्षण में 204 मीटर ऊंचे बांध का निर्माण कार्य शुरू ही किया गया जा रहा था कि और वर्ष 1992 में इस परियोजना का लगभग 35 फीसदी काम पूरा हो गया था इसी दौरान निर्माण कार्य कर रही जेपी समूह सरकार से पैसा न मिलने को लेकर परियोजना से अलग हो गयी थी। वहीँ  बाद में वर्ष 2008 में केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया, जिसके तहत 90 फीसद धन केंद्र सरकार द्वारा खर्च किये जाने और बाकी दस फीसदी राज्य सरकार द्वारा खर्च किये जाने पर सहमति बनी थी। हालाँकि इस समझौते के दौरान राजस्थान अपने यहाँ नहरों के लिए अतिरिक्त धन की मांग कर रहा था लेकिन  बाद में यह तय हुआ कि राज्यों में 1994 के समझौते के तहत पानी का बंटवारा होगा।इसके  अनुसार राज्यों को खुद ही नहरों को बनाने में अपने आर्थिक संसाधन जुटाने होंगे। 

वहीँ अब राज्य सरकार द्वारा बनाई जा रही इस परियोजना को लेकर बीती 15 फरवरी को दिल्ली में अपर यमुना रिवर बोर्ड की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने की थी। बैठक में छह राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच वर्ष परियोजना पर सहमति बनी । एक जानकारी के अनुसार, अब  28 अगस्त को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल परियोजना पर समझौते पत्र पर हस्ताक्षर करेंगे। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार लखवाड़ जलविद्युत परियोजना के सम्बंधित के बाद इस परियोजना पर लगभग चार हजार करोड़ की लागत का अनुमान है।  निर्माण के बाद इस परियोजना से तीन सौ मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। जिस पर पूरा अधिकार उत्तराखंड राज्य का होगा, जबकि यहाँ से छोड़े जाने वाले पानी को छह राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान के बीच बांटा जाएगा। इस परियोजना पर  204 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाएगा।  प्राप्त  जानकारी के अनुसार परियोजना के तहत बनने वाली पूरी  300 मेगावाट बिजली उत्तराखंड को मिलेगी, जिस पर लगभग 1400 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह खर्च उत्तराखंड द्वारा उठाया जाएगा। जबकि बाकी पैसा सिंचाई व पेयजल पर खर्चकिया जायेगा। वहीँ जहाँ दिल्ली को इससे पेयजल की किल्लत दूर की जाएगी तो वहीँ अन्य राज्यों को सिंचाई  के लिए पानी दिया जाएगा।

 

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