- अमित शाह के तेवरों से फूले उत्तराखंड भाजपा के हाथ-पाँव
- सबका कच्चा चिट्ठा लेकर दून पहुँच रहे हैं अमित शाह
- कार्यकर्ताओं का इंतज़ार कि शाह करेंगे चमत्कार
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : अमित शाह का पूरे देश में प्रवास और भ्रमण चल रहा है, इस यात्रा में वे पार्टी संगठन की जमीन पर वास्तविकता और उन तक पहुंचाए गए फीड -बैक कि समीक्षा कर रहे हैं। उसी क्रम में आगामी 19 -20 सितम्बर को अमित शाह देहरादून में सघन प्रवास करेंगे। इस दौरान अमित शाह पार्टी और सरकार के कामों की समीक्षा करेंगे क्योंकि एक साल बाद राज्य में पंचायत और निकाय चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो जाएगी और 2019 कि शुरुआत में लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से रणनीति भी बनायीं जानी है कि सूबे से लोक सभा में पाँचों सीटों का इतिहास एक बार फिर दोहराया जाय। अमित शाह को जानने वाले बताते हैं कि वे लक्ष्य तक पहुँचने के लिए पूरा फीड-बैक और सर्वे के आधार पर रणनीति बनाते हैं और फिर किसी की नहीं सुनते हैं , और ऐसा उन्होंने कई बार साबित भी कर दिखाया है। प्रयोगधर्मी अमित शाह बिहार और दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजों को लेकर आलोचकों के निशाने पर आये, समय के साथ नितीश को एनडीए में मिलाकर उनका मुंह भी बंद किया। हालिया दिल्ली नगर निगम चुनाव में अमित शाह कि दलील थी कि सभी पुराने पार्षदों के टिकट काटे जायं जनता भाजपा के साथ है और पार्षदों के विरोध में है। शुरुआत में सभी ने दबी जुबान में अमित शाह के फैसले को लेकर असहमति जताई किन्तु तीनों नगर निगमों के प्रचंड बहुमत ने उन्हें सबसे बड़े रणनीतिकार के रूप में स्वीकार किया। उत्तराखंड भाजपा की अनेक शिकायतों और शिथिलता का पूरा कच्चा चिट्ठा अमित शाह के पास है वे यहाँ आकर क्या फैसला लेंगे इसको लेकर पार्टी के माई -बाप बने नेताओं की साँसें अटकी हुई हैं।
अभी हाल ही में उत्तराखंड भाजपा में संगठनात्मक स्तर पर एकाएक बड़ी तेजी दिखाई दी है अजय भट्ट के नेतृत्व में चल रही सुषुप्त और निष्क्रिय भाजपा ने इस दौरान अचानक तेज़ी से कुछ सांगठनिक फैसले लिए पार्टी द्वारा मीडिया ,आईटी ,सोशल मीडिया ,बुद्धिजीवी , निवेश, विधि और व्यापार प्रकोष्ठों में खाली पड़े पदों पर नेताओं पर अपने कृपापात्र नेताओं का मनोनयन किया गया है।इससे पता लगाया जा सकता है कि संगठन में लाखों कार्यकर्ता होने के बावजूद कार्यकर्ताओं को अभी तक काम क्यों नहीं दिया गया ,जबकि अजय भट्ट को अध्यक्ष बने दो साल होने वाले हैं। अजय भट्ट भले ही बहुत कमजोर स्थिति में हैं किन्तु राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश और संजय कुमार जिनकी जोड़ी ने सूबे के संगठन पर पूरा कब्जा किया हुआ है। उन्हीं की इच्छा, पसंद-नापसंद के आधार पर इन नए नेताओं को जिम्मेदारियां दी गई है। संजय कुमार के नेतृत्व में एक चारण और चाटुकार वर्ग जिसका जमीन पर कोई आधार नहीं है केवल उपहार और प्रशंसा के आधार पर उन्हें संगठन में दायित्व दिया गया है। इस दौरान जिस तेजी के साथ संगठन मंत्री संजय कुमार ने पदाधिकारी भरे हैं ताकि राष्ट्रीय अध्यक्ष आने से पहले सारा संगठन चुस्त दुरुस्त दिखायी दे। किंतु तू डाल डाल मैं पात पात की तर्ज पर राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास प्रदेश अध्यक्ष, संगठन मंत्री, शिव प्रकाश और श्याम जाजू कि क्षमताओं का पूरा फीड-बैक मौजूद है इसी तरह वर्षों से संगठन पर कब्जा किए कुछ नेताओं से लेकर सरकार के मंत्रियों तक के कच्चे चिट्ठे उनके पास पहले से ही पहुंचे हुए हैं।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के तेवरों से सभी परिचित हैं अभी हाल ही में मध्यप्रदेश की यात्रा के बाद पूरे देश के पार्टी नेताओं की घिग्घी बंधी हुई है। 2019 के परिणामों को लेकर सारा संगठन अमित शाह के नए तेवरों से घबराया हुआ है, क्योंकि राज्यों को अपनी विरासत समझ कर चलाने वाले नेताओं को अमित शाह की खरी-खरी बैठकों में सार्वजनिक रूप से सुननी पड़ रही है।अपने मध्यप्रदेश दौरे के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सार्वजनिक रुप से बैठक में कहा कि मेरी यात्रा से पहले आपने सारे खाली पद भर लिए हैं। क्या प्रदेश में कार्यकर्ताओं का अकाल था ? आखिर ऐसा क्यों किया गया ? जबकि पार्टी कहती है कि हर कार्यकर्ता के लिए काम और हर काम के लिए कार्यकर्ता उपलब्ध है। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि अगर नाम सार्वजनिक करने हैं तो मैं मुख्यमंत्री शिवराज जी को नाम भी बता सकता हूं कि किन के कारण मध्यप्रदेश भाजपा की दुर्गति हुई है।इसके बाद जिन शेष राज्यों में अमित शाह की यात्रा जानी है वहां के नेताओं को सांप सूंघा हुआ है।
उत्तराखंड को अपना जेबी संगठन बना चुके संजय कुमार और शिव प्रकाश की पेशानी पर सबसे ज्यादा बल पड़े हुए हैं।क्योंकि यहां का कच्चा चिट्ठा लगातार दिल्ली पहुंचाया जा रहा है।अमित शाह उत्तराखंड के लिए क्या निर्णय लेंगे यह विस्फोट उनकी यात्रा के दौरान ही होगा। क्योंकि राज्य के वरिष्ठ नेताओं ,पदाधिकारियों, पूर्व अध्यक्षों , पूर्व विधायकों ने अमित शाह को निरंतर राज्य का फीडबैक दिया है और एक गुट द्वारा चल रही दादागिरी से अध्यक्ष को अवगत तक कराया है। जिस तरीके से कुछ एक लोगों की जेब में भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड रखी गई है उससे पार्टी के संगठन कार्यों पर भारी विपरीत असर पड़ा है। अनेक अनुभवी कार्यकर्ताओं को जानबूझकर इसलिए किनारे किया गया है कि वे इस गुट कि पसंद नहीं थे। इस बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष पूछेंगे कि आठ वर्ष पूर्व प्रदेश कार्यालय के लिए मसूरी बाईपास पर खरीदी गई कार्यालय की भूमि पर अभी तक कोई भी काम शुरू क्यों नहीं हुआ है। प्रदेश के सांगठनिक रूप से 22 जिलों में बाजार भाव से अधिक कीमत पर क्यों कार्यालय खरीदे गए यह सवाल भी बैठक में पूछा जायेगा।
अभी तक संगठन में खाली पदों पर पदाधिकारियों को न रखने की मजबूरी भी पूछी जाएगी। भले ही अध्यक्ष का मूड भांपकर उत्तराखंड और दिल्ली वाले संगठन मंत्री ने रणनीति बैठानी शुरू कर दी है। हर राज्य में अमित शाह उस राज्य के पूर्व अध्यक्षों , पूर्व पदाधिकारियों, पूर्व दयित्वधारियों ,पूर्व संगठन मंत्रियों ,पूर्व मंत्री विधायकों से अलग से चर्चाकर फीड-बैक भी लेते हैं और तय है कि उत्तराखंड भाजपा के वर्तमान काकस से पीड़ित कार्यकर्ता और नेता सारा सच पार्टी अध्यक्ष से सामने उगल देंगे। इसलिए राज्य में भारतीय जनता पार्टी के कील कांटे मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास ढेरों सवालों के जवाब पहले से मौजूद हैं। आश्चर्य का विषय है लंबे समय से उत्तराखंड भाजपा कुछ हाथों में खेल रही है। उत्तराखंड भाजपा के लिए संगठनमंत्री के पद संगठन को बढ़ाने के बजाय गुटबाजी कराने और अपनी सम्पन्नता बढाने तक ही सिमित रहे हैं। जिन्होंने भूखे प्यासे रहकर संगठन खड़ा करना था, उनकी दरिद्र स्थिति को संपन्न स्थिति में बदलते हुए कार्यकर्ताओं ने देखा है। उत्तराखंड भाजपा के लिए कोई भी संगठन मंत्री रास नहीं आये।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार संगठन का कायाकल्प आवश्यक है। जब तक जमीनी और संघर्षशील कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी तब तक पार्टी सक्रिय नहीं हो पाएगी।प्रदेश पदाधिकारी महेंद्र भट्ट, पुष्कर सिंह धामी और विनोद कंडारी विधायक की जिम्मेदारी के कारण अपने क्षेत्र में व्यस्त हैं। वहीँ गीता ठाकुर ने राज्यसभा प्रत्याशी से एक षड्यंत्र के तहत नाम कटने के बाद नाराजगी में पार्टी छोड़ दी थी। प्रदेश मंत्री सीमा चौहान पार्टी से बगावत करके चुनाव लड़ी इस कारण उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया था। वहीँ सुनील उनियाल गामा अधिकतर मुख्यमंत्री के साथ व्यस्त हैं। इस तरह इन पदाधिकारियों की जगह अनेक सक्रिय कार्यकर्ता जो खाली हैं उन्हें इन पदों के स्थान पर जिम्मेदारी दी जा सकती थी। वैसे सरकार बनने के बाद प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट भी अधिकतर मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में व आवास में नज़र आते रहे हैं।
प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट चुनाव हारने के बाद कहते हैं कि मैं अपनी टीम को जिताने के चक्कर में चुनाव हारा हूँ अर्थात राज्य में हुई जीत उन्हीं की मेहनत का नतीजा थी, ऐसे बडबोलेपन के फीडबैक भी अमित शाह के पास हैं। अर्थात मोदी लहर से ऊपर अपनी क्षमताओं को आंकने वाले प्रदेश अध्यक्ष भी अमित शाह की क्लास में उनके सामने खड़े होंगे। शाह अभी तक के परंपरागत भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्षों से अलग किस्म के अध्यक्ष हैं जो रिजल्ट देने वाले कार्यकर्ताओं पर आंख बंद कर विश्वास करते हैं और पार्टी हित के खिलाफ किसी को बख्शते नहीं है। प्रदेश सरकार में अभी विभिन्न निगम बोर्ड के चेयरमैन पदों पर नियुक्तियां होनी है जिसके लिए अनेक नेताओं ने अपनी दुकानें सजा दी हैं। संगठन के कोटे के आधार पर सिफारिशें तय की जा रही हैं और अनेक संपन्न नेता-कार्यकर्ता अपने आकाओं से ”यस” मिलने के बाद आश्वस्त हो चुके हैं किंतु अमित शाह के तेवरों से शायद ही इनके मंसूबे पूरे हों।यह सब दिल्ली से तय होगा।
भारतीय जनता पार्टी में एक वर्ग लंबे समय से हर अध्यक्ष के साथ निरंतर संगठन में पदाधिकारी बनता रहा है। सरकार में आने पर ये लोग दायित्व में बैठे होते हैं और पार्टी के आर्थिक मैनेजमेंट में भी यही लोग आगे दिखाई देते हैं यहां तक कि VIP के आगमन ,उनके प्रवास ,हेलीकॉप्टर यात्रा आदि सारा जिम्मा इन्ही के हवाले रहता है।यहां तक कि प्रधानमंत्री के एअरपोर्ट पर स्वागत से लेकर प्रधानमंत्री, अध्यक्ष के मंच तक इनके परिवार के सदस्यों की उपस्थिति चर्चाओं में रहती रही है। ऐसा नहीं है कि ये सारे विषय पहली बार उठाए गए हैं यह सारे विषय भी अमित शाह के संज्ञान में हैं प्रदेश प्रभारी श्याम जाजू द्वारा कितनी ईमानदारी से राज्य की समीक्षा राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने की गई है कितने पारदर्शी फीड -बैक नेतृत्व को दिए गए हैं यह सब श्याम जाजू से भी पूछा जाएगा। श्याम जाजू दिल्ली प्रदेश के भी प्रभारी हैं। उनकी अधिकतर रुचि दिल्ली संगठन में रहती है। रस्म के तौर पर वे बड़े अवसरों पर ही उत्तराखंड में दिखाई देते हैं।
इतना तय है कि अमित शाह की यात्रा के बाद अनेक वटवृक्ष जो अनावश्यक रुप से संगठन में जड़ें फैलाए हुए हैं और उत्तराखंड के नाम पर दिल्ली तक नंबर बढ़ाते रहे हैं ऐसे नेताओं के पर कतरे जाएंगे और उत्तराखंड भाजपा को तहस-नहस करने वाले नेताओं से खुले सभागार में अमित शाह के सवाल -जवाबों का सामना करना होगा।क्योंकि अन्य प्रदेशों की तरह उत्तराखंड भाजपा भले ही कागजों में रोजनामचा भरकर दिल्ली को संतुष्ट कर रही हो मगर अमित शाह के पास सारा फीड-बैक मौजूद है। प्रतीक्षा है अमित शाह के दौरे कि जिसमें पार्टी का कच्चा चिट्ठा और अंदरूनी गणित भी आम कार्यकर्ताओं के सामने होगा बहरहाल उत्तराखंड भाजपा अपने रंगरोगन में व्यस्त है।