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पर्यटन के नाम पर विदेश यात्राओं का औचित्य !

  • पर्यटन डिग्री हाथ में लेकर घूमने बेरोजगार और पर्यटन विभाग
  • सूबे के संस्थान पर्यटन विधा के पाठ्यक्रम बंद करने को हैं मजबूर
  • जब रोज़गार नहीं तो पर्यटन पाठ्यक्रम का क्या फायदा ?

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : उत्तराखंड राज्य को पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता रहा है और यहाँ के गढ़वाल विश्वविद्यालय सहित कई और संस्थान ऐसे हैं जहाँ से राज्य के युवा पर्यटन विधा में स्नातक, परास्नातक और डिप्लोमा लेने के बाद भी राज्य के अस्तित्व में आने के 18 साल बाद भी बेरोजगार ही नहीं घूम रहे बल्कि सूबे के रोजगार कार्यालयों में बेरोजगारों की सूची में शामिल होकर राज्य में बेरोजगारों की संख्या में बढ़ोत्तरी प्रदर्शित कर रहे हैं वहीँ दूसरी तरफ राज्य का पर्यटन निदेशालय ऐसे बेरोजगारों को देखने के बाद भी उनकी और आँख बंद किये हुए हैं जबकि सूबे के अन्य संस्थानों के युवाओं को अन्य विधाओं में रोजगार के अवसर भले ही कम लेकिन मिल तो रहे हैं ऐसे में प्रदेश के पर्यटन निदेशालय को ऐसे बेरोजगारों के बारे में अवश्य सोचना चाहिए जो पर्यटन की डिग्री लेकर भी बेरोजगार बैठे हुए हैं। 

गौरतलब हो कि अप्रैल 2018 से लेकर सितंबर 2018 तक थाईलैंड की यात्रा पर पांच आईएएस और 2 पीसीएस अधिकारी गए थे। ऐसे ही कई अन्य अधिकारी भी यूरोप सहित दुनिया के कई देशों की यात्रायें उत्तराखंड में निवेश का सरकारी टूर बनाकर आ जा चुके हैं लेकिन उत्तराखंड में पर्यटन में कितना निवेश हुआ, यह आज तक किसी को नहीं पता और तो और कुछ अधिकारी राज्य के अस्तित्व में आने से लेकर आज तक कई बार विदेशों की यात्रायें सूबे में पर्यटन को लेकर कर चुके हैं उनके स्टडी टूर के क्या परिणाम मिले यह भी आजतक सूबे के लोगों को नहीं पता। इतना ही नहीं  बीते दिनों उधम सिंह नगर के डीएम नेपाल यात्रा पर थे जबकि इस यात्रा से उत्तराखंड की जनता को क्या फायदा हुआ आज तक नहीं पता चला तो ऐसी यात्रा करके क्या फायदा है।

वहीं सूबे में गढ़वाल मंडल विकास निगम की हालत किसी से छिपी नहीं है यहाँ कर्मचारियों और अधिकारियों को वेतन देने के पैसे के लाले पड़ें हुए है लेकिन निगम के मातहत अधिकारी सात महीने पहले दम  तोड़ चुकी हुनर से रोजगार योजना के सलाहकार को जहाँ लाखों रुपये का वेतन बिना काम के दे रहे हैं। वहीं अपने तुगलकी फरमानों से सरकार के पैसे को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। इतना ही नहीं फिजूलखर्ची में निगम सबसे आगे चल रहा है कभी मुख्यालय के एक कमरे को तोड़ा जाता है और फिर उसे बनाया जाता है इसी तरह लाखों रुपयों को पानी की तरह बहाया जा रहा है। वहीं  दूसरी तरफ निगम के बंगलों की हालत बाद से बदतर होती जा रही है यानि जहाँ से कमाई होनी है वहां पैसा खर्च नहीं किया जा रहा है। जबकि दूसरी तरफ कुमायूं मंडल विकास निगम के अधिकारियों ने  अपने मेहनत और कर्त्तव्यपरायणता से निगम को सीमित संसाधनों के बावजूद फायदे में लेकर खड़ा कर दिया है। 

सूबे  के पर्यटन विकास निदेशालय का हाल तो इतना खराब है कि राज्य का पर्यटन विभाग आजतक उत्तराखंड के मूल निवासियों जो क़ि टूरिज्म स्नातक, टूरिज्म परास्नातक को (सन2000 से 2018 तक) कोई भी नौकरी उपलब्ध नहीं करा सका है जबकि हर साल सूबे के संस्थानों से सैकड़ों युवक पर्यटन में डिग्री लेकर बेरोजगारों की सूची में शामिल हो रहे हैं। यदि यही हालात सूबे के विभाग की रही तो सूबे के संस्थानों को पर्यटन विधा के पाठ्यक्रम बंद करने को मजबूर होना पड़ेगा। 

devbhoomimedia

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