EXCLUSIVE

भ्रष्ट अफसरशाही के जाल में जकड़ता उत्तराखण्ड

न खुद करेंगे, न किसी और को काम करने देंगे
देवभूमि मीडिया ब्यूरो

 

देहरादून : इन सत्रह सालों में उत्तराखण्ड राज्य की जनता ने भले ही कुछ न पाया हो मगर अफसरों के लिये यह प्रदेश  मौज बहार की रिहाइश बना हुआ है। खासकर आईएएस अफसरों के शिकंजे में छटपटाता उत्तराखण्ड उनका उपनिवेश मात्र  बनकर गया है। राज्य की लीडरशिप अब तक उनके दबाव में रही है, मीडिया भी उनका चारण रहा है। प्रदेश का स्वभाव,  संस्कृति भले ही हिमाचल से मेल खाती हो मगर अफसर इसे मिनी यूपी और बिहार बना चुके हैं।

आश्चर्य की बात है  सूबे का सबसे भ्रष्ट आईएएस सबसे ज्यादा लाडला बन जाता है , सबसे ज्यादा विवादित अफसर राजदरबार की पहली पसन्द होता है, इसका उदाहरण पिछली कांग्रेस सरकार का और वर्तमान सरकार ने भी राजदरबार में  ऐसे ही एक अधिकारी को बैठाकर उस इतिहास को दोहराया है। दोनों हाथों राज्य को तो लूटेंगे उस पर तुर्रा ये राज्य से चुनाव लड़ने की हिमाकत भी करेंगे। एक नौकरशाह तो बाकायदा गत विधानसभा चुनाव ने एक  सीट पर चुनावी तैयारी कर रहे थे और भाजपा कांग्रेस दोनों उन्हें अपने दल में शामिल करने के लिए झगड़ रहे थे।

उत्तराखण्ड राज्य शुरुआत से ही अफसरों की कमी से जूझ रहा है। अनेक राज्य कैडर के अफसर दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं जिस कारण अफसरों की कमी और बढ़ जाती है इन सबके बाद भी उत्तराखंड में सेवा देने के मामले में  इन आईएएस अफसरों की आपसी एकता काबिले तारीफ है। लेकिन एक और खास बात यह भी है कि जो अधिकारी ईमानदारी  कर्तव्यनिष्ठा से यहाँ काम करना चाहते हैं उन्हें यहाँ के ये भ्रष्ट अधिकारी काम नहीं करने देते आखिरकार थकहारकर ऐसे अधिकारी या तो केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर चले जाते हैं  फिर वे स्टडी लीव का बहाना कर विदेश चले जाते रहे हैं। सूबे की ब्यूरोक्रेसी के ऐसे कई उदाहरण सामने हैं। वहीँ ये अधिकारी किसी अन्य सेवा के अफसर को प्रदेश में योगदान देने के कट्टर विरोधी भी रहे हैं उन्हें अपनी बिरादरी यानी आईएएस के अतिरिक्त कोई बर्दाश्त नहीं अगर कोई प्रभावी राजनेता या मुख्यमन्त्री किसी दूसरी सेवा के अफसर को राज्यहित में लाया भी तो उसे मुँह की खानी पड़ी, आईएएस लॉबी के सामने किसी की नहीं चली और गैर आईएएस को किसी न किसी षड्यंत्र के तहत रुखसत होना पड़ा।

कुछ अफसरों के उदाहरण हैं कि विदेश सेवा के विनोद फोनिया, लेखा सेवा के अजय  प्रद्योत, वन सेवा के अशोक पई और टेलीकॉम सेवा के दीपक कुमार को राज्य की ब्यूरोक्रेसी नहीं पचा पायी। पूर्व मुख्य वन संरक्षक आरबीएस रावत को प्रमुख सचिव वन बनने में इसी नौकरशाही ने रोड़े अटकाये।किसी आईपीएस अफसर को शासन में बैठने पर भी आईएएस लॉबी को एतराज रहा है। जबकि एमएच खान और  निधिमणि त्रिपाठी जो कि मणिपुर कैडर के आईएएस हैं दोनों पर राज्य की ब्यूरोक्रेसी ने दोनों हाथों कृपा बरसाई, दोनों प्रतिनियुक्ति पर राज्य में आये एक को आठ साल और दूसरे को नौ साल निष्कंटक राज्य में सेवा करने दिया गया जबकि आईएएस के लिए अधिकतम सात साल किसी अन्य राज्य में डेपुटेशन का नियम है, सूत्र बताते है उनको फिर राज्य में लाने की जमीन तैयार हो रही है। इतना ही नहीं इन्होने ऐसे कई अधिकारियों को अब तक गले लगाकर रखा जो राज्य में भ्रष्टाचार का बीज रोपित करके चले गए और अब यहाँ जमे कुछ भ्रष्टाचारी अधिकारी उनकी बोई हुई फसल काट रहे हैं।  

चर्चित और उत्तरप्रदेश काडर के अफसर विनोद शर्मा को कितना संरक्षण यहाँ  दिया गया सर्वज्ञात है, विनय शंकर पाण्डे भी उत्तराखण्ड में डेपुटेशन पर हैं मगर राज्य के अफसरों का उनके प्रति उदार रवैया है जबकि राज्य मूल के अफसरों के लिए छल-छद्म जारी हैं। राज्य की लीडरशिप की कमी और उनका अफसरशाही के समक्ष नतमस्तक होना इसका सबसे बड़ा कारण है। आईएएस अफसरों द्वारा अपनी सुविधा के अनुसार राज्य को हाँका जा रहा है। पर्वतीय क्षेत्र में जिनकी तैनाती है उनके कैम्प कार्यालय देहरादून और हल्द्वानी में हैं। पर्वतीय इलाकों में कोई जाकर रहना ही नहीं चाहता। 

हाल ही में आईटीएस सेवा के अफसर और सचिव सूचना प्रौद्योगिकी दीपक कुमार के लिए इसी लॉबी ने षड्यंत्र कर नये हाकिम के कान भर दिये गये और आनन फानन में उन्है मूल कैडर के लिए रिलीव करने में अप्रत्याशित तेजी दिखाई, आखिर राज्य के हुक्मरान उत्तराखण्ड के उन मूलनिवासी अफसरों को तवज्जो क्यों नहीं देते तो अपने प्रान्त में योगदान देना चाहते हैं। दीपक कुमार विजय बहुगुणा के सीएम काल मे उत्तराखण्ड आये, शुरू में नौ माह उन्है कोई काम न देने वाली नौकरशाही ने डिजिटल इंडिया अभियान में शानदार काम करने वाले इस अफसर की रुखसती कर दी।

आखिर राज्य कब इन अफसरी तिकडमी चालों से उबरेगा। न खुद काम करेंगे न करने देंगे की सोच पर काम करने वाले उत्तराखण्ड के अकर्मण्य अफसरों की सरकार निर्बाध रूप से सत्ता में है। ये पहाड़ों में नौकरी नहीं करना चाहते न पहाड़ी मूल के अन्य कैडर के अफसरों को राज्य में टिकने देते हैं। राज्य के राजनीतिज्ञों को हिम्मत दिखाकर इस सिंडिकेट को तोड़ना होगा नहीं तो आंदोलन और संघर्षों से बना उत्तराखण्ड इस लालफीताशाही से जूझता रहेगा।

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »