गोविंदघाट : उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित सिखों के सबसे पवित्र स्थानों में एक विश्व प्रसिद्घ हेमकुंड साहिब की यात्रा शुरु हो गई है। इसलिए हेमकुंड साहिब के बारे में कुछ बातें जाननी जरूरी हैं। ये ऐसी बातें हैं जो बहुत ही कम लोग जानते हैं। तो चलिए ऐसी ही अनकही बातें आज हम आपको बताते हैं।
हेमकुंड एक संस्कृत नाम है जिसका अर्थ है – हेम (“बर्फ”) और कुंड ( “कटोरा”) है। दसम ग्रंथ के अनुसार, यह वह जगह है जहां पांडु राजा अभ्यास योग करते थे। इसके अलावा दसम ग्रंथ के अनुसार जब पाण्डु हेमकुंड पहाड़ पर गहरे ध्यान में थे तो भगवान ने उन्हें सिख गुरु गोबिंद सिंह के रूप में यहाँ पर जन्म लेने का आदेश दिया था।
इस जगह को उस क्षेत्र के स्थानीय निवासियों द्वारा बहुत ही असामान्य, पवित्र, विस्मय और श्रद्धा का स्थान माना जाता है। यहाँ पर स्थित झील और इसके आसपास के क्षेत्र को लोग एक नाम “लोकपाल” से जानते हैं, जिसका अर्थ है लोगों का निर्वाहक।
कहा जाता है कि हेमकुंड साहिब दो से अधिक सदियों से गुमनामी में रहा था। गुरु गोविंद सिंह ने यहां आकर इस स्थान के मौजूद होने का संकेत दिए। बता दें कि सिख इतिहासकार-कवि भाई संतोख सिंह (1787-1843) ने इस जगह का विस्तृत वर्णन दुष्ट दमन की कहानी में अपनी कल्पना में किया था।
सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक ये सात पर्वत चोटियों से घिरा हुआ है। यह हिमनदों और झील के साथ 4632 मीटर (15,197 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी सात पर्वत चोटियों की चट्टान पर एक निशान साहिब सजा हुआ है।
कहा जाता है कि पंडित तारा सिंह नरोत्तम जो उन्नीसवीं सदी के निर्मला विद्वान थे। हेमकुंड की भौगोलिक स्थिति का पता लगाने वाले वो पहले सिख थे। भाई वीर सिंह ने वर्ष 1934 में इसकी खोज की। 1937 में गुरु ग्रंथ साहिब को स्थापित किया गया। जो आज दुनिया में सबसे ज्यादा माने जाने वाले गुरुद्वारे का स्थल है।
1960 में अपनी मृत्यु से पहले मोहन सिंह ने एक सात सदस्यीय कमेटी बनाकर इस तीर्थ यात्रा के संचालन की निगरानी दे दी। आज गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब के अलावा हरिद्वार, ऋषिकेश, श्रीनगर, जोशीमठ, गोबिंद घाट, और गोबिंद धाम में गुरुद्वारों में सभी तीर्थयात्रियों के लिए भोजन और आवास उपलब्ध कराने का प्रबंधन इसी कमेटी द्वारा किया जाता है।