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पांच किमी की दूरी भी एक महीने में तय नहीं कर पाया वह ”पत्र”

  • न जाने कहाँ गुम हो गया वह ”पत्र”

  • भ्रष्टाचार की काली कोठरी से होकर गुजरा था वह ”पत्र” 

  • मजमून भी था मोदी जी के भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने को साकार करने वाला जैसा 

राजेन्द्र जोशी

देहरादून : भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस वाली प्रदेश सरकार के एक ताक़तवर कैबिनेट मंत्री का मुख्यमंत्री को लिखा एक ”पत्र” न जाने कहाँ खो गया, इसे कैबिनेट मंत्री द्वारा मुख्यमंत्री को मात्र ”पत्र” लिखने की रस्म अदायगी ही कहा जाय या वह ”पत्र” वाकई मुख्यमंत्री कार्यालय तक की पांच किलोमीटर तक की दूरी एक महीने में भी तय नहीं कर पाया या पहुँचने के बाद फाइलों के अथाह सागर में कहीं अभी भी गोते लगा रहा है या यह मुख्यमंत्री कार्यालय के बाद कहीं अपने गंतव्य को रवाना होकर उस फुस्स पटाखे की तरह किसी अधिकारी के डस्ट बिन का कूड़ा बन गया यह किसी को एक महीने बाद भी नहीं पता।

पेयजल मंत्री द्वारा मुख्यमंत्री को भेजा गया एक ”पत्र” जो चर्चा का विषय बन गया है ”पत्र” जो सूबे के नौकरशाहों के भ्रष्ट कारनामों पर ब्रेक लगाने के लिए लिखा गया था, ”पत्र” वह था जिसपर सूबे के लोगों को उम्मीद थी कि शायद यह ”पत्र” सूबे की भाजपा सरकार के जीरो टालरेंस की नीति में एक मील का पत्थर साबित होगा, ”पत्र” के मजमून का कुछ तो असर बीते 17 सालों से नौकरशाही के बेपटरी होने और भ्रष्टाचार पर लगने वाले अंकुश की उम्मीदों के पंख जैसा था, लेकिन वह ”पत्र” कहाँ गया आज तक किसी को पता नहीं जबकि उस ”पत्र” पर भेजने वाले और पाने वाले का नाम भी साफ़ था और मजमून भी मोदी जी के भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने को साकार करने वाला जैसा था।

”पत्र” के मज़मून में एक भ्रष्ट अधिकारी द्वारा सूबे में की जा रही 17 सालों से लूट और उस लूट को कैमरे में कैद कर राज्य में भ्रष्ट पत्रकारिता के कमाल का उल्लेख था, ”पत्र” में यह भी साफ़ था कि किस तरह कुछ लोग सूबे में पत्रकारिता की आड़ में कुछ भ्रष्ट अधिकारियों का स्टिंग कर उन्हें ब्लैकमेल कर रहे हैं और किस तरह भ्रष्ट अधिकारी सरकार को ही नहीं बल्कि जनता कि गाढ़ी कमाई के पैसे से अपना घर भर रहे हैं यानि चोर-चोर मौसेरे भाई, उत्तराखंड जैसी देवभूमि में मौज ले रहे हैं और आम उत्तराखंडी बीते 17 सालों से उनकी लूट से तैयार अट्टालिकाओं और महलों की तरफ देखकर सोच रहे हैं कि क्या इसी राज्य कि कल्पना राज्य के लिए शहादत देने वालों शहीदों ने की थी । ”पत्र” में पत्रकारिता को कलंकित करने वाले का भी जिक्र था जिसने मात्र कुछ ही सालों में पत्रकारिता को कलंकित करने वाले कारनामों से करोड़ों की संपत्ति अर्जित करने में कहीं भी गुरेज नहीं किया, तो वहीँ इस ”पत्र” में नौकरशाही को कलंकित करने वाले का काले कारनामों का चिट्ठा भी इस ”पत्र” में था। चर्चाओं के अनुसार उस अधिकारी ने भी इन 17 सालों में लगभग पांच सौ करोड़ से ज्यादा की संपत्ति अपने काले कारनामों से अर्जित की है। यानि चोर का माल चांडाल खाये लेकिन दोनों ने इस राज्य को लूटकर अकूत संपत्ति जमा की और अब एक- दूसरे को लूट खाने को तैयार हैं। ”पत्र” में मामले की जांच एसआईटी या सीबीआई से करने की मांग के साथ जांच पूर्ण होने तक चर्चित अधिकारी को मुख्यमंत्री कार्यालय से सम्बद्ध करने को भी कहा गया था। 

कहने को तो यह ”पत्र” मात्र एक कागज़ का टुकड़ा था लेकिन ”पत्र” वजनदार था इस ”पत्र” से कई भ्रष्टाचारियों की नींद हराम हो सकती थी लेकिन भ्रष्टाचार में आकंठ डूब चुके उत्तराखंड के भ्रष्ट तंत्र में गोते लगाते कर्मचारियों और अधिकारियों की एक बड़ी जमात जो भ्रष्ट कृत्यों से लूट में मशगूल हैं के हितों पर आघात करने वाला था यह ”पत्र” । ”पत्र” लिखने वाला और ”पत्र” पाने वाले दोनों ही राज्य की जनता की नज़र में अभी तक साफ़ छवि के नेता रहे हैं लेकिन जिस मार्ग से यह ”पत्र” गुजरा वह भ्रष्टाचार की काली कोठरी से होकर गुजरता है और गंतव्य तक पहुँचने के बाद इस बात की कोई गारंटी नहीं कि इस ”पत्र” पर उस काली कोठरी का काज़ल न लगा हो, तभी तो ”पत्र” कहीं गायब हो गया ।

devbhoomimedia

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