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कौन मजबूत और कौन मजबूर ?

मोदी को अपने भविष्य का अभी से चल गया पता !
”दिल्ली के रामलीला मैदान में बीजेपी राष्ट्रीय परिषद की बैठक में मोदी का भाषण, एक ऐसे हारे हुए व्यक्ति का भाषण प्रतीत हुआ जिसके पास न तो अपनी पार्टी को देने के लिए कुछ है और न ही देश को देने के लिए।”
डॉ. वेदप्रताप वैदिक

ऐसा क्यों हुआ ? क्योंकि यह अकेला प्रादेशिक गठबंधन राष्ट्रीय राजनीति को नया चेहरा दे सकता है। मोदी के 80 मिनिट के भाषण में भी इसी गठबंधन की सबसे ज्यादा मजाक उड़ाई गई। मोदी ने बिल्कुल ठीक सवाल देश के करोड़ों मतदाताओं से पूछा। उन्होंने पूछा कि आप कैसी सरकार चाहते हैं ? मजबूत या मजबूर ? गठबंधन की सरकार यदि बन गई तो वह मजबूत तो हो ही नहीं सकती। वह तो मजबूर ही रहा करेगी।
मोदी यहां यह मानकर चल रहे हैं कि उन्हें 2019 की संसद में स्पष्ट बहुमत मिल जाएगा। कैसे मिल जाएगा, वह यह नहीं बता सकते याने अपने भविष्य को ही वे खुद देख नहीं पा रहे हैं। दूसरा प्रश्न यह भी कि मजबूत याने क्या ? कोई सरकार यदि पांच साल तक देश की छाती पर लदी रहे तो क्या उसे आप मजबूत कहेंगे ? ऐसी मजबूती को देश चाटेगा क्या ? ऐसी सरकारें अपनी मूर्खताएं बड़ी मजबूती से करती हैं। जैसे इंदिरा गांधी ने आपातकाल ठोक दिया था, राजीव गांधी ने भारत को बोफोर्स और श्रीलंका के दल-दल में फंसा दिया था और नेहरु चीन से मात खा गए थे।
हमारे प्रधान सेवक जी ने नोटबंदी, जीएसटी, फर्जीकल स्ट्राइक, बोगस आर्थिक आरक्षण, रफाल-सौदा, हवाई विदेशी घुमक्कड़ी आदि कई कारनामे कर दिए। औरंगजेबी शैली में अपने पितृतुल्य नेताओं को बर्फ में जमा दिया। पार्टी मंचों पर चाटुकारिता को उत्कृष्ट कला का दर्जा दे दिया। क्या यह मजबूती का प्रमाण है ? अटलजी की सरकार गठबंधन की सरकार थी और अल्पजीवी थी लेकिन उसने भारत को परमाणु-शक्ति बना दिया। बाद में उसने कारगिल-युद्ध भी लड़ा और कश्मीर को हल के समीप पहुंचा दिया। जो मजबूत काम करे, वह सरकार मजबूत होती है, पांच-साल तक रोते-गाते घिसटनेवाली नहीं।
मोदी को अपने भविष्य का पता अभी से चल गया है, इसीलिए उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से साफ-साफ कह दिया है कि अब मोदी के नाम पर वोट नहीं मिलनेवाले हैं, आपको हर मतदान-केंद्र पर डटना होगा। वे तो डट जाएंगे लेकिन वे वोटर कहां से लाएंगे ? मोदी का यह कहना तो ठीक है कि गठबंधनों और महागठबंधन का लक्ष्य सिर्फ एक है, मोदी हटाओ। आपने भी कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था कि नहीं। इसमें भी शक नहीं कि सारे गठबंधन अवसरवादी होते हैं लेकिन क्या आप खुद गठबंधन में नहीं बंधे थे ? आपने भी सोनिया-मनमोहन हटाओ के अलावा क्या किया? जो फसल पहले आपने काटी, वही अब वे काटेंगे।