पेयजल निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कहाँ गया सरकार का जीरो टालरेंस !
- वतर्मान मुख्यसचिव व तत्कालीन सचिव व अध्यक्ष के आदेश तक कर डाले दरकिनार!
- सबसे बड़ा सवाल: आरोप पत्र में शामिल लोगों की कैसे हो गयी पदोन्नति ?
- सवालों के घेरे में : केवल एक को ही चार्जशीट बाकि आठ आरोपियों को क्यों नहीं ?
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून: उत्तराखंड में निर्माण कार्यों में अनियमिताओं पर चार्ज शीट (आरोप पत्र) भी अपना -पराया देखकर तो दी ही जाती है साथ ही इसको देने में अधिकारी अपना नफ़ा नुकसान भी देखते रहे हैं। यही कारण है कि अनियमितता और भ्रष्टाचार के मामलों में न्याय की दरकार बेकार हो जाती है और चालाक और तिकड़मी अधिकारी वक्त और पहुँच का फायदा लेकर न्याय पाने के नैसर्गिक अधिकार से वंचित कर अपने दुश्मनों को किनारे करते नज़र आते हैं। मामला वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली औद्यानिकी महाविद्यालय भरसार का है जहाँ पेयजल निगम द्वारा जलोत्सारण योजना में गड़बड़ी हुई थी और इसका खुलासा सीएजी की 2009 को जारी रिपोर्ट में हुआ था।
मामले में वतर्मान मुख्यसचिव और तत्कालीन सचिव व अध्यक्ष पेयजल निगम उत्पल कुमार सिंह द्वारा सभी दोषी आठ अधिकारियों के खिलाफ चार्ज शीट देने के निर्देश दिए गए थे लेकिन पेयजल निगम के प्रबंध निदेशक द्वारा केवल एक अधिकारी को ही चार्ज शीट देकर अपने कर्तव्यों की इति श्री कर दी गयी क्योंकि बाकि जो अधिकारी इस मामले में दोषी पाए गए थे वे इनके अपने थे,और जिनको चार्ज शीट थमा दी गयी थी वह इनके प्रतिद्वंदी। इसी मामले को लेकर निवर्तमान प्रबंध निदेशक और वर्तमान प्रबंध निदेशक के बीच पदोन्नति को लेकर उच्च न्यायालय नैनीताल और उच्चतम न्यायालय दिल्ली में मामला अभी भी न्यायालय में विचाराधीन है।
विभागीय सूत्रों का कहना है कि वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली औद्यानिकी महाविद्यालय भरसार में जलोत्सारण योजना में अनियमितता के चर्चित इस मामले में सात अन्य अधिकारियों के खिलाफ भी चार्ज शीट दी जानी चाहिए थी वतर्मान प्रबंध निदेशक ने आरोपियों को किन्ही कारणों से चार्ज शीट नहीं दी । इतना ही नहीं मामले में आरोपित इन सात अधिकारियों में से दो अधिकारियों का अधीक्षण अभियंता के पदों पर प्रमोशन भी कर दिया गया। जबकि सेवा नियमावली के अनुसार आरोपी अधिकारियों का मामले के निस्तारण तक किसी भी प्रावधान के अनुसार प्रोन्नति नहीं दी जा सकती थी। लेकिन मातहत अधिकारी ने केवल एक को चार्ज शीट के आधार पर प्रबंध निदेशक के पद से पदावनत कर दिया,और बाकियों को खुद ही माफ़ कर दिया। यही मामला वर्तमान में न्यायालय में विचाराधीन चल रहा है।
वह भी तब जबकि वर्तमान मुख्य सचिव जो तत्कालीन समय में पेयजल निगम के अध्यक्ष व सचिव भी थे ने सभी अधिकारियों के खिलाफ चार्ज शीट देने के निर्देश 12 नवम्बर 2011 को अपनी टिप्पणी में दिए थे लेकिन वर्तमान प्रबंध निदेशक ने उनके आदेशों को दरकिनार करते हुए आरोपित आठ अधिकारियों में से केवल एक को चार्ज शीट दे डाली और अपनी प्रोन्नति का रास्ता साफ़ कर दिया। इतना ही नहीं वर्तमान प्रबंध निदेशक ने उक्त दस्तावेजों की कापी उच्च न्यायालय में भी लगाते हुए न्यायालय तक को गुमराह करने का प्रयास किये जाने की जानकारी मिली है।
वहीँ इस मामले में तत्कालीन मुख्य अभियंता गढ़वाल द्वारा अपने पत्रांक 220 /गोपनीय जांच -भरसार जलो.यो. दिनांक 23/12/2010 के क्रम में प्रबंध निदेशक को भेजे पत्र में साफ़ कहा गया है कि उन्होंने रवीन्द्र कुमार, प्रभारी मुख्य अभियंता (कु.)सुभाष चन्द्र सहायक अभियंता,पी.के.गुप्ता सहायक अभियंता , एन.एस.रावत सहायक अभियंता, एस.पी. गुप्ता कनिष्ठ अभियंता, महेंद्र सिंह कनिष्ठ अभियंता, बी.एस. नेगी कनिष्ठ अभियंता और बुद्धि बल्लभ नौडियाल मंडलीय लेखाकार के विरुद्ध आरोप पत्र प्रेषित किये गए हैं। वहीँ मामले में प्रबंध निदेशक ने उपरोक्त आठ लोगों में से केवल एक व्यक्ति रवीन्द्र कुमार को ही चार्ज शीट दे दी गयी क्योंकि वे ही उनकी प्रोन्नति में सबसे बड़े बाधक थे।
मामले के एक बार फिर सुर्खियों में आ जाने से यह साफ़ हो गया है कि उत्तराखंड पेयजल निगम में सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। मातहत अधिकारी जहाँ एक तरफ सेवा नियमावली को दरकिनार कर सरकार और शासन की नहीं सुन रहे हैं तो वहीँ वे न्यायालय तक को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा करने पर जुटे हुए हैं। वहीँ प्रबंध निदेशक की हठधर्मिता को लेकर विभागीय मंत्री से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री और आलाधिकारियों की चुप्पी सवालों के घेरे में हैं वह भी तब जब सूबे में भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की सरकार काबिज है।