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मंत्रियों का पौ फटते ही मीटिंगों में व्यस्त होने का बहाना, जनता आखिर जाए तो जाये कहाँ ?

  • जनता और जनप्रतिनिधि दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर 

  • न मंत्री उनका फोन उठाते हैं और मिलता उन्हें सही जवाब  

राजेन्द्र जोशी 

देहरादून : उत्तराखंड राज्यवासियों का यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि उसके द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि केवल वोट मांगने के दौरान ही मतदाताओं की दर पर जाते हैं उसके बाद पूरे पांच साल तक जनता अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से काम के लिए तो दूर मिलकर अपनी समस्या बताने तक के लिए दर -दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं, हालाँकि सूबे के कुछ विधायक अपवाद हैं। लेकिन मंत्रियों में यदि स्वर्गीय प्रकाश पन्त ही एक मात्र ऐसे नेता थे जो लगभग सभी से मिलते भी थी और खुद ही सभी के फ़ोन उठाकर उन्हें संतुष्ट करने का प्रयास भी करते थे।

वहीं वर्तमान सरकार के लगभग सभी मंत्री या तो सुबह पौ फटते  से ही मीटिंगों में व्यस्त होने का बहाना मार जनता से कटे रहते हैं या फिर अधिकांश मंत्रियों के निजी सचिव आम जनता की कॉल को मंत्रियों तक पहुँचने से पहले ही या तो उठाते ही नहीं है या फिर उन्हें टका सा जवाब देकर टरका देते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि स्व.नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल को यदि छोड़ दिया जाय तो उनके बाद की लभग सभी सरकारों के मंत्रियों ने जनता से क्यों दूरी बनाई यह तो समझ से परे है लेकिन स्वर्गीय तिवारी के शासनकाल तक उनके मंत्रिमंडल के लगभग सभी मंत्री सुबह 10 बजे से सायं 5 बजे तक विधानसभा स्थित अपने कार्यालयों में बैठ जनता से मिलते भी थी और अपने विभागीय कार्य और बैठकों तक को वहीं से निबटाते रहे थे, ऑफिस कार्य समय के बाद मंत्री उनको आवंटित सरकारी आवासों में जनता से मिलते भी थे और शेष कार्य वे वहां से निष्पादित भी करते रहे थे ।

स्वर्गीय तिवारी के शासनकाल के बाद वर्तमान परिस्थिति में विधानसभा स्थित अधिकाँश मंत्रियों के कार्यालयों को ही जब मंत्रियों के दर्शन यदा-कदा होते हैं तो प्रदेश की जनता को मंत्रियों के दर्शन होना दूर की बात है। हां केवल विधानसभा सत्र के दौरान ही विधानसभा में मंत्रियों के दर्शन होते हैं।

अब बात करते हैं राज्य के अस्तित्व में आने से लेकर आज तक की सरकारों के मंत्रियों और विधायकों की, भुवनचंद्र खंडूरी से लेकर आज तक की सरकार के अधिकाँश मंत्री न तो विधानसभा स्थित अपने कार्यालयों में न तो बैठते हैं और न उनका यहां बैठने का कोई समय ही निश्चित हैऐसे में सूबे की जनता आखिर मन्त्रियों से मिलने जाए तो कहां जाए। यही कारण है मंत्री जनता से दूर होते जा रहे हैंइसके कई उदाहरण है इसका खामियाजा उन्हें चुनाव में हार के रूप में भी मिलता रहा है या यूँ कहें जनता उस दौरान अपने साथ हुए व्यवहार का फल ऐसे मंत्रियों और विधायकों को चखाती रही है जो चुनाव के बाद जनता से होते हैं ।

वर्तमान में कमोवेश उत्तराखंड विधानसभा के भी यही हाल है आजकल विधानसभा सूनी नज़र आती है न कोई चला -पहल न कोई फरियादी । फरियादी आखिर पहाड़ से यहाँ आयें भी क्यों जब उन्हें न तो मंत्री के आवास का पता होता है और न मंत्री कहाँ बैठे होंगे इसकी ही जानकारी। इतना ही नहीं मंत्रियों के निजी सचिव या स्टाफ दूर दराज के पर्वतीय इलाकों से आये जनप्रतिनिधियों को न तो मंत्री का सही ठिकाना ही बताते हैं और न उनसे मिलने का समय। ऐसे कई जनप्रतिनिधियो ने बताया कि स्वर्गीय तिवारी के शासनकाल में लोगों की भीड़ से गुलज़ार रहने वाला विधासभा का गलियारा आजकल सूना -सूना सा नज़र आ रहा है, यहाँ बैठते हैं तो केवल मंत्रियों के स्टाफ उन्हें भी इसलिए बैठना पड़ता है कि वे सरकारी कर्मचारी हैं।

 

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