UTTARAKHAND

प्रदेश का पहला Community reserve (सामुदायिक संरक्षित) क्षेत्र बनेगा मुनस्यारी का बौंन गांव इलाका

देश का 46वां  सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र होगा बौंन गांव का इलाका 

पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र की दारमा और व्यास लैंडस्केप में बसा है बौंन गांव

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

कम्युनिटी रिजर्व क्षेत्र आखिर है क्या 

निजी और सामुदायिक वन क्षेत्रों की विशिष्टता के आधार पर किसी क्षेत्र विशेष को वन और वन्यजीवों के साथ ही वहां की वनस्पतियों के संरक्षण के लिए कम्युनिटी रिजर्व घोषित किए जाते हैं। इसमें भूमि का स्वामित्व जनता का होता है। साथ ही वह कम्युनिटी रिजर्व के प्रबंधन में उसकी मुख्य भूमिका होती है। यह समुदाय के प्रयासों को वैज्ञानिक समर्थन व पहचान प्रदान करता है। समुदाय के हितों को रक्षण और वन एवं वन्यजीव संरक्षण के लक्ष्य प्राप्त करने की व्यवस्था करता है।

देहरादून : वन और वन्यजीवों के संरक्षण के लिहाज से संरक्षित क्षेत्रों की चार श्रेणियां तय की गई हैं। इनमें नेशनल पार्क, अभयारण्य, कंजर्वेशन रिजर्व और कम्युनिटी रिजर्व शामिल हैं। देश का पहला सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र 2003 में मेघालय में ही बनाया गया था। इसके बाद 2007 में कर्नाटक में सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया। 3.12 वर्ग किलोमीटर के इस क्षेत्र को पक्षियों की विविधता के लिए जाना जाता है। इसके बाद से पूरे देश में 45 सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र घोषित किए जा चुके हैं। इस तरह के सबसे अधिक क्षेत्र मेघालय में हैं। वहां करीब 40 वर्ग किलोमीटर में 41 सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र घोषित किए जा चुके हैं। इसके अलावा पंजाब में दो, केरल में एक सामुदायिक  संरक्षित क्षेत्र हैं।  इन सबके बाद अब प्रदेश का पहला सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र (कम्यूनिटी रिजर्व) पिथौड़ागढ़ जिले के धारचूला की दारमा घाटी के बौन गांव को बनाया जा रहा है। यह देश का 46वां  सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र होगा। 

पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र की दारमा और व्यास लैंडस्केप में बसे बौंन गांव के  इलाके को प्रदेश का पहला कम्युनिटी रिजर्व (सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र) बनाने की दिशा में कार्य शुरू हो गया है। राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में हरी झंडी मिलने के बाद अब मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने कम्युनिटी रिजर्व के लिए प्रस्तावित किए गए क्षेत्र की भूमि के स्वामित्व के बारे में राजस्व विभाग से ब्योरा मांगा है।  

71 फीसद वन भूभाग वाले राज्य में संरक्षित क्षेत्रों की तीन श्रेणियां तो हैं, मगर राज्य में अब तक कम्युनिटी रिजर्व की स्थापना नहीं हो पाई है। इसे देखते हुए निजी और सामुदायिक वन क्षेत्रों के संरक्षण की अवधारणा को सामुदायिक रिजर्व के रूप में धरातल पर आकार देने की तैयारी है। प्रदेश के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में गंगोत्री नेशनल पार्क, गोविंद वन्यजीव विहार से लेकर अस्कोट अभयारण्य तक के क्षेत्र में चल रहे सिक्योर हिमालय प्रोजेक्ट के तहत बॉन गांव को कम्युनिटी रिजर्व बनाने का प्रस्ताव किया गया है। पिथौरागढ़ के दारमा-व्यास घाटी के अंतर्गत बौंन गांव के निवासियों ने बॉन को कम्युनिटी रिजर्व बनाने पर सहमति दे दी है। इस संरक्षित क्षेत्र के अस्तित्व में आने पर स्थानीय बौंन गांव के लोग वन संसाधनों के संरक्षण में सक्रिय रूप से शामिल हो सकेेंगे। संरक्षित क्षेत्र बनने के बाद बौंन गांव के लोग ही तय करेंगे कि वन उपज का किस तरह से और कितना उपयोग किया जाए। दारमा घाटी का यह गांव दुर्लभ जड़ी बूटियों, कस्तूरा सहित अन्य वन्य जीवों और बुग्यालों के लिए जाना जाता है।

संरक्षित क्षेत्र के लाभ को देखते हुए अभी हाल में हुई राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया था। इसमें कम्युनिटी रिजर्व बनाने के प्रयास करने पर जोर दिया गया। बौंन कम्युनिटी रिजर्व के प्रस्ताव को एक प्रकार से झंडी मिलने के बाद अब वन्यजीव महकमा सक्रिय हो गया है। इसके तहत मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक राजीव भरतरी ने बौंन  कम्युनिटी रिजर्व के लिए प्रस्तावित किए गए क्षेत्र के स्वामित्व के बारे में पिथौरागढ़ के प्रभागीय वनाधिकारी और राजस्व विभाग से संपूर्ण ब्योरा जल्द मुहैया कराने को कहा है। अभी तक राज्य वन्य जीव बोर्ड को मिली जानकारी के अनुसार प्रस्तावित क्षेत्र में कुछ भूमि ग्रामीणों के स्वामित्व की है, जबकि कुछ वन पंचायत की है। 

उधर, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने बताया कि भूमि के स्वामित्व का ब्योरा मिलने के बाद इस दिशा में आगे कदम बढ़ाया जाएगा। यह होगा फायदा कम्युनिटी रिजर्व घोषित होने के बाद बौंन  क्षेत्र के लोगों की वन और वन्यजीव प्रबंधन में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित होगी। प्रबंधन की योजनाएं भी उन्हीं की सहमति से बनेंगी। यानी ग्रामीण ही तय करेंगे कि वनोपज का कितना व किस तरह उपयोग होना है, इनका संरक्षण कैसे होगा। बता दें कि बौंन क्षेत्र जड़ी-बूटियों का विपुल भंडार होने के साथ ही यह कस्तूरा मृग समेत दूसरे वन्यजीवों के लिए पहचान रखता है। 

Related Articles

Back to top button
Translate »