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किन कारकों से होगी हार या जीत किसकी रही कितनी भूमिका… यहां पढ़िए

17 वीं लोकसभा के लिए आज देश के कई इलाकों में दूसरे चरण का मतदान शुरू हो चुका है,उत्तराखंड राज्य में पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को हो चुका है, उत्तराखंड के लोकसभा चुनाव में क्या मुद्दे हावी रहे और किन-किन मुद्दों ने मतदाताओं पर प्रभाव डाला इसको लेकर हमने समाज के तमाम बुद्धिजीवियों और राजनीतिक विश्लेषकों की राय जानी, अब आपकी बारी है क्या आपको भी यही कारक प्रभावी नज़र आते हैं तो जरुर अपनी राय ई-मेल editor@devbhoomimedia.com पर हमसे साझा कीजियेगा।

प्रकाश सुमन ध्यानी /देवभूमि मीडिया ब्यूरो

लोकसभा चुनाव 2019 के प्रथम चरण के तहत उत्तराखंड के पांचो सीटों के चुनाव 11अप्रैल को संपन्न हो गए हैं अब कयासों का दौर चालू है। कौन जीतेगा कौन हारेगा, हार जीत के कुछ कारण होते हैं और कुछ घटनाक्रम भी हार जीत के कारण बनते हैं। यहां दोनों राष्ट्रीय पार्टियों भाजपा एवं कांग्रेस के बीच ही लड़ाई थी। इन पार्टियों को अपने अपने मुद्दे व घोषणा पत्र थे। कौन कितना वोटर को प्रभावित कर पाया इसकी समीक्षा की जा सकती है, लेकिन इसके साथ ही कुछ स्थानीय कारक भी अवश्य थे वे कारक ने भी हार जीत में निर्णायक भूमिका अवश्य निभाएंगे। आइये इन कारकों पर बात करें और पाठक स्वयं चिंतन करें कि कहाँ कौन जीतेगा व प्रदेश स्तर पर पार्टियों की हार जीत का स्कोर क्या रहेगा अपना-अपना दिमाग लगाकर 23 मई के नतीजों से मिलान करें व हो सकते तो हमें भी सूचित करें कि इन कारकों ने हार जीत में कितनी भूमिका निभाई।

1. भाजपा का प्रचार तंत्र आक्रामक था और साधन संपन्न भी था और उसने कांग्रेस पर मानसिक बढ़त बनाई हुई थी।
2. मोदी का नेतृत्व राहुल गाँधी के नेतृत्व पर हावी हो रहा था।
3. कांग्रेस का घोषणा पत्र प्रभावी था अपेक्षाकृत भाजपा के घोषणापत्र को आम जनता वोटिंग से पहले ही भूल चुकी थी। जबकि कांग्रेस की 72हज़ार रूपये,  मनरेगा  के 150 दिन व रोज़गार की बात लोगों को चुनाव के बाद भी याद है और चर्चा चाहे अच्छे या बुरे पर हो तो रही है वह कांग्रेस के कांग्रेस के घोषणा पत्र पर हो रही है।
4.मोदी सरकार ने दो हज़ार रूपये किसानों के खाते में डाल दिए थे इसका वोटर पर असर था।
5. 72 हज़ार रुपये की न्यूनतम आय बेरोज़गार युवकों को लुभा रही थी।
6. पकिस्तान के बालाकोट का सैनिक प्रहार सैनिक बहुल प्रदेश को रोमांचित कर रहा था।
7. लेकिन प्रधान मंत्री मोदी द्वारा पूर्व प्रधानमंत्रियों के कार्यो को अपने भाषणों में नकारना, 90 फीसदी शैक्षणिक योग्यता वाले प्रदेश के लोगों को अच्छा नहीं लग रहा था। पांच वर्ष और 70 वर्ष के कार्यकाल के तुलना भी लोगों के गले नहीं उतर रही थी। इस देश में मारा हुआ व्यक्ति भगवान मान लिया जाता है।वहां वर्तमान प्रधान मंत्री द्वारा स्वर्गीय प्रधानमंत्रियो पर प्रश्न उठाना लोगों को अच्छा नहीं लगा।
8. डबल इंजन की सरकार भी लोगों को कुछ करती हुई नहीं लगी।
9. पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खण्डुरी के पुत्र मनीष खंडूरी का कांग्रेस में जाना प्रदेश राजनीति का टर्निंग पॉइंट था।लोग इसकी चर्चा कर रहे हैं , यह कैसे हुआ किसने कराया शायद भविष्य इसका अनावरण करेगा।
10.हरीश रावत का हरिद्वार के बजाय नैनीताल जाना भी चुनाव समीकरण में उथल पुथल कर गया।
11. पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को किनारे लगाना भी एक कारक रहा है ।
12. भगत सिंह कोशियारी एवं भवन चंद्र खंडूरी जैसे कद्दावर हटाकर अपेक्षाकृत हलके प्रत्याशी लाना अवश्य चुनाव को अवश्य प्रभावित करेगा ।
13.हरिद्वार में पहली बार देसी पहाड़ी मुद्दा बना अब यह देखना है कि यह वहां के समाज पर कितना प्रभाव डाल पाया।
14. कुमांऊ में प्रमोद नैनवाल की भाजपा में एंट्री के लाभ और हानि का अवलोकन भी आवश्यक है।
15. कुमांऊ में मंथर गति का चुनाव प्रचार भी भाजपा के समीकरणों को प्रभावित करेगा।
16. भा ज पा का प्रत्याशियों के द्वारा किये गए कार्यों और अपनी छवि के बजाय मोदी के नाम पर वोट मांगना दर्शाता है की प्रत्याशियों की छवि क्या है। वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी अपनी पार्टी की छवि और अपनी छवि और राजनीतिक अनुभव पर चुनाव मैदान में नज़र आये।
17.कांग्रेस के चुनाव प्रचार में कम स्टार प्रचारकों का पहुंचना पार्टी के चुनाव टेम्पो को मंथर कर गया ।
18. कांग्रेस में साधनों का स्पष्ट अभाव लग रहा था।
19. नैनीताल में हरीश रावत का व्यवस्थित व आक्रामक चुनाव प्रचार परिणामों पर प्रभाव डालेगा।
20. दो राज्य सभा सदस्यों का लोग सभा चुनाव लड़ना (प्रदीप टम्टा व राज बब्बर ) अंदर ही अंदर राज्य सभा की लड़ाई का ताना -बाना बुन रहा था।
21. पौड़ी एवं टिहरी सीट पर कांग्रेस की एक जुटता का क्या कोई गुल खिलाएगी?
22. कथावाचक श्री गोपाल मणि जी कितना वोट लाते हैं इस पर लोगों की निगाह है यह गणित टिहरी लोग सभा परिणाम को प्रभावित भी कर सकता है ।
23.कुमाऊ में नेतृत्व के मुद्दा भी चर्चा में रहा की भविष्य में कुमांऊ नेतृत्व भाजपा या कांग्रेस किसके पास रहेगा, कहीं न कहीं इस चुनाव में कुमांऊ में कुमाऊँवाद मुद्दा भी एक मुद्दा था।
24.पौड़ी में भाजपा कांग्रेस दोनों ही जनरल भुवन चंद्र खंडूरी के नाम पर चुनाव लड़ रही थी ।
25.जहां एक ओर हलकी मोदी लहर भी थी वहीं कहीं न कहीं परिवर्तन की चाहत भी थी देखें कौन किस पर हावी होता है।

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