कमल किशोर डुकलान
भारतीय सनातन हिन्दू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को सृजन एवं निर्माण का देवता एवं तकनीकी और विज्ञान का जनक माना जाता है। वे वास्तुदेव के पुत्र तथा माता अंगिरसी के पुत्र थे। पौराणिक काल में विशाल भवनों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा करते थे। उनके द्वारा ही लंका,इन्द्रपुरी,खाण्डव प्रस्थ, यमपुरी, वरुणपुरी, द्वारिकापुरी, पांडवपुरी, कुबेरपुरी, शिवमंडलपुरी तथा सुदामापुरी आदि स्मरणीय स्थलों का निर्माण किया था। सोने की लंका के अलावा उन्होंने ऐसे कहीं भवनों का निर्माण किया,जो उस समय के स्थापत्य और सुंदरता में अद्वितीय होने के साथ-साथ वास्तु के हिसाब से भी महत्वपूर्ण थे।भगवान विश्वकर्मा के बारे में कहा जाता है कि उनको वास्तुकला के बारे में इतना अनुभव था कि वे अपनी कार्यशक्ति से पानी में चलने वाला खड़ाऊ भी बना सकते थे।
सोने की लंका के निर्माण के संबंध में विशेष रुप से मैं एक कहानी का उल्लेख कर रहा हूं। भगवान शिव की मनवांछित आराधना से रावण का त्रिलोक विजेता बनने के बाद उसके मन में अपने सुख,वैभव, ऐश्र्वर्य, प्रतिष्ठा के अनुकूल ऐसे नगर के निर्माण का विचार आया जिसके आगे देवताओं की अलकापुरी भी फीकी नजर आए। जिस कारण रावण ने भगवान शिव की आराधना कर उनसे सोने की लंका बनाने में देवशिल्पी,
सृजन एवं निर्माण का देवता विश्वकर्मा का सहयोग मांगा।
सृजन एवं निर्माण का देवता विश्वकर्मा का सहयोग मांगा।
भगवान शिव के कहने पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने सोने की लंका का ऐसा प्रारूप तैयार किया जिसे देखते ही रावण की बांछें खिल गईं। उसी आधार पर बनी सोने की लंका की सुंदरता देखते ही बनती थी। रावण लंका में आने वाले हर महत्वपूर्ण अतिथि को वहां के दर्शनीय स्थलों को बड़े गर्व के साथ दिखाता।
एक बार रावण ऋषि-मुनियों को लंका का भ्रमण करा रहा था। ऋषि-मुनी लंका के सौंदर्य को देखकर अचंभित हुए। ऋषि-मुनियों को लंका का भ्रमण में रास्ते में रावण को साथ देखकर मिलने वाले लंकावासी भय से नतमस्तक हो जाते,लेकिन ऋषि-मुनियों का कोई अभिवादन नहीं करता था। लंका में ऐसा ही व्यवहार रावण के मंत्रियों, सैनिकों और कर्मचारियों का ऋषि-मुनियों ने देखा भी।
एक बार रावण ऋषि-मुनियों को लंका का भ्रमण करा रहा था। ऋषि-मुनी लंका के सौंदर्य को देखकर अचंभित हुए। ऋषि-मुनियों को लंका का भ्रमण में रास्ते में रावण को साथ देखकर मिलने वाले लंकावासी भय से नतमस्तक हो जाते,लेकिन ऋषि-मुनियों का कोई अभिवादन नहीं करता था। लंका में ऐसा ही व्यवहार रावण के मंत्रियों, सैनिकों और कर्मचारियों का ऋषि-मुनियों ने देखा भी।