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पोलैंड की सुप्रीम कोर्ट ने हर तरह के स्वैच्छिक गर्भपात पर लगाई रोक के बाद हिंसक झड़पें
पौलेंड : गर्भपात को असंवैधानिक करार देने के खिलाफ आवाम
पोलैंड में गर्भपात के मुद्दे को लेकर हिंसक हालात
वॉरसा की सड़कों पर जबरदस्त प्रदर्शन, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर फेंके आग के गोले
पोलैंड की सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को ठहराया असंवैधानिक
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
पोलैंड में हिंसा बढ़ने के आसार
इन आरोप-प्रत्यारोपों से अलग कई विश्लेषकों का कहना है कि गर्भपात के मुद्दे ने देश में पैदा हुए सामाजिक विभाजन को सबके सामने ला दिया है। ये विभाजन इतने तीखे हैं कि इसके बीच हिंसा एक वास्तविक आशंका है। इस आशंका के इस हफ्ते और गहराने के संकेत हैं।
वॉरसा : पोलैंड की सुप्रीम कोर्ट द्वारा हर तरह के स्वैच्छिक गर्भपात को असंवैधानिक करार देने के बाद देश में हिंसा के हालात बन गए हैं। राजधानी वॉरसा में शुक्रवार को चार लाख से ज्यादा लोग सड़कों पर निकल आए। गर्भपात के अधिकार के समर्थक गत सप्ताह देशभर में जोरदार प्रदर्शन करते रहे। वॉरसा में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आग के गोले फेंके। दर्जन भर लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक प्रदर्शनकारियों और दक्षिणपंथी गुटों के बीच देश के कुछ दूसरे शहरों में भी झड़पें हुईं। अब इस हफ्ते ऐसा होने की आशंकाएं और गहरा गई हैं। दक्षिणपंथी गुट ‘फालांगना’ ने एलान किया है कि गर्भपात विरोधी हजारों लोग इस हफ्ते सड़कों पर उतरेंगे।
इस गुट ने चेतावनी दी है कि उसके समर्थक संघर्ष के तरीकों में प्रशिक्षित हैं। अगर उनका विरोध हुआ, तो वे अपने तरीके से उससे निपटेंगे। इससे वहां हिंसा की आशंका और बढ़ गई है।
गौरतलब हो कि , बीते 23 अक्तूबर को पोलैंड के सुप्रीम कोर्ट ने हर तरह के स्वैच्छिक गर्भपात पर रोक लगा दी है। उसने कहा था कि गर्भपात असंवैधानिक है। पोलैंड में दूसरे यूरोपीय देशों की तुलना में गर्भपात कराना पहले से ही काफी कठिन था। अब भ्रूण में दोष होने पर भी इसकी इजाजत नहीं होगी। सिर्फ उन मामलों में गर्भपात कराने की इजाजत होगी, जिनमें गर्भ या तो बलात्कार या पारिवारिक यौन संबंध की वजह से ठहरा हो या फिर मां की जान खतरे में हो।
माना जा रहा है कि कोर्ट का ये फैसला सत्ताधारी दक्षिणपंथी पार्टी के विचारों के मुताबिक आया। इससे महिला अधिकार और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में गुस्सा भड़क उठा। उन्होंने आंदोलन का आह्वान किया लेकिन उसे इतना बड़ा समर्थन मिलेगा, इसका अनुमान खुद उन्हें भी नहीं था।
पोलैंड में इतना बड़ा प्रदर्शन राजधानी वॉरसा में हुआ कि उसकी तुलना 1989 के सॉलिडरिटी आंदोलन के दौरान हुए प्रदर्शनों से की गई। सॉलिडरिटी नामक मजदूर यूनियन के आंदोलन की वजह से ही पोलैंड में कम्युनिस्ट शासन खत्म हुआ था। उससे ही वो शुरुआत हुई, जिसके परिणामस्वरूप आखिरकार सोवियत संघ का पूरा कम्युनिस्ट खेमा ढह गया। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि सत्ताधारी लॉ एंड जस्टिस पार्टी के राज में आम लोगों से वे स्वतंत्रताएं छीनी जा रही हैं, जो कम्युनिस्ट शासन के बाद बड़ी मुश्किल से पोलैंड के लोगों ने हासिल की हैं।
पिछले हफ्ते देश में जो नजारा देखने को मिला, उससे लगता है कि इस राय से पौने चार करोड़ आबादी वाले इस देश में बहुत से लोग इत्तेफाक रखते हैं। खुद पुलिस के मुताबिक पिछले बुधवार को देश भर में 400 से ज्यादा प्रदर्शन हुए। शुक्रवार को वॉरसा में हुए प्रदर्शन में चार लाख 30 हजार लोगों ने भाग लिया।
वहीं कोरोना वायरस के फैलाव के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में लोगों के सड़कों पर उतरने की घटनाओं ने सारी दुनिया का ध्यान खींचा है। प्रधानमंत्री मातेउस्ज मोराविकी ने फिलहाल लोगों से कोरोना महामारी पर ध्यान देने की अपील की है। हालांकि विपक्षी गुटों का आरोप है कि कोर्ट से ये फैसला जानबूझ कर इस वक्त दिलवाया गया ताकि कोरोना महामारी पर काबू पाने में सरकार की नाकामी से ध्यान हटाया जा सके।