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उत्तराखंड की बेटी ज्योति नैथानी तोमर ने सिखाया दीपिका को घूमर डांस

  • ज्योति नैथानी तोमर को 5 अवॉर्ड्स से सम्मानित किया जा चुका अब तक
  • फिल्मफेयर अवॉर्ड, ज़ी सिने अवॉर्ड, स्टार स्क्रीन अवॉर्ड्स
  • टाइम्स नाउ पावर ब्रांड- बॉलीवुड जर्नलिस्ट अवॉर्ड और इंडीवुड एकेडमी अवॉर्ड्स

कमला बडोनी
जब भी संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत और उस फिल्म में दीपिका पादुकोण पर फिल्माए गए घूमर डांस का ज़िक्र होगा, तब उस डांस की कोरियोग्राफर ज्योति नैथानी तोमर का ज़िक्र भी ज़रूर होगा। घूमर सिर्फ एक डांस नहीं, एक परंपरा है, राजस्थान की शाही संस्कृति की पहचान है। राजस्थान की इस ख़ूबसूरत नृत्य कला को डांस वर्कशॉप के माध्यम से ज्योति नैथानी तोमर जन-जन तक पहुंचा रही हैं। संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत में दीपिका पादुकोण को घूमर डांस सिखाने वाली उत्तराखंड की बेटी ज्योति नैथानी तोमर को अपनी कोरियोग्राफी के लिए अब तक इन 5 अवॉर्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है ।

जब मुझे ये पता चला कि फिल्म पद्मावत में दीपिका पादुकोण को घूमर डांस सिखाने वाली कोरियोग्राफर उत्तराखंडी है, तो मैं ख़ुद को उनसे मिलने से रोक नहीं पाई। उत्तराखंडी महिलाओं पर आधारित मेरी यूट्यूब सीरीज़ ‘कोहिनूर’ के लिए ज्योति नैथानी तोमर जी का इंटरव्यू लेने मैं उनके घर जा पहुंची। ज्योति जी से मिलने के बाद जब उनके और उनके परिवार के बारे में जाना, तो लगा ज्योति जी ही नहीं, उनकी सभी बहनें उत्तराखंड की कोहिनूर हैं और मैंने उनकी सभी बहनों को अपनी ‘कोहिनूर’ सीरीज़ में शामिल करने का मन बना लिया।

फिलहाल पेश है, ज्योति नैथानी तोमर जी से हुई बातचीत का सार: यूट्यूब पर कमला बडोनी द्वारा लिया गया ज्योति नैथानी तोमर का इंटरव्यू देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें:…..

  • ऐसे शुरू हुई ज्योति नैथानी तोमर की डांस जर्नी

ज्योति जी को महज़ 4 साल की छोटी-सी उम्र से डांस से प्यार हो गया था। डांस से उनका परिचय कराया उनकी बड़ी बहन ने। फिर ज्योति जी ने सितारा देवी जी से कथक सीखा। ट्रेन्ड कथक डांसर ज्योति नैथानी तोमर ने हिंदी लिटरेचर में मास्टर्स की डिग्री हासिल की, प्रोफेशनली वो एक फैशन डिज़ाइनर हैं, लेकिन उन्होंने अपने दिल की आवाज़ सुनी और डांस को ही अपना पैशन बना लिया। 1985 से ज्योति जी ने मुंबई दूरदर्शन के लिए कंपेयरिंग की और बाद में उन्होंने टीवी सीरियल्स में भी काम किया। 1987 में जब ज्योति जी ने ग्रैजुएशन कम्प्लीट कर लिया, तब श्रीमती वसुंधरा मेहता ने उन्हें प्रोफेशनल डांसर के तौर पर उनके साथ जुड़ने को कहा और ज्योति जी ने गुजराती फोक डांस ग्रुप ‘वर्णम’ ज्वाइन कर लिया। कुछ समय बाद उनका सिलेक्शन फिरोज़ अब्बास ख़ान के डायरेक्शन में बने एक म्यूज़िकल प्ले ‘एवा मुंबई मा चाल जइये’ में बतौर हीरोइन के रूप में हुआ, जिसमें उन्होंने सारे गानों को स्टेज पर लाइव प्रस्तुत किया। ये भारत का पहला प्ले था जिसे ब्रॉडवे स्ट्रीट, न्यूयॉर्क, यूएसए में प्रस्तुत किया गया। जब ज्योति जी इस प्ले को प्रस्तुत कर रही थीं, तब डायरेक्टर कुंदन शाह ने उन्हें देखा और अपनी फिल्म ‘कभी हां कभी ना’ में ‘शैरॉन’ के करैक्टर के लिए सिलेक्ट कर लिया।

  • घूमर डांस से ऐसे हुआ ज्योति नैथानी तोमर का परिचय

ज्योति जी की मुलाकात अपनी गुरु संतरामपुर की राजमाता साहिबा पद्मश्री स्वर्गीय एच। एच। गोवर्धन कुमारी जी से 1988 में हुई, जो शादी से पहले किशनगढ़ की राजकुमारी थीं। राजमाता साहिबा ऐसी अकेली महिला हैं, जिन्होंने महलों से बाहर निकलकर लोगों को बताया कि सही घूमर नृत्य कैसे किया जाता है। ज्योति जी को राजमाता साहिबा से घूमर नृत्य की बारीकियां सीखने को मिलीं। ज्योति जी ने राजमाता साहिबा से वास्तविक घूमर डांस फॉर्म (राजस्थानी रजवाड़ी घूमर) सीखना शुरू किया और ‘गणगौर घूमर डांस एकेडमी’ जॉइन कर ली। 1990 में अपनी गुरु राजमाता सा की देखरेख में उन्होंने अपना पहला घूमर वर्कशॉप कोलकाता में किया। एकेडमी में परफॉर्मेंस के साथ-साथ ज्योति जी ने देश-विदेश में होनेवाले वर्कशॉप में कई छात्रों को घूमर डांस सिखाया। इसी दौरान ज्योति जी ने स्क्रिप्ट और डायलॉग्स लिखना, एकेडमी के डांस बैलेके लिए लाइट और स्टेज डिज़ाइन करना, बैले के डायरेक्शन, कोरियोग्राफी, कॉस्ट्यूम्स और ज्वेलरी के लिए राजमाता सा को असिस्ट करना भी शुरू कर दिया था। कुछ डांस बैले जैसे- कोयलड़ी, मां करणी, सूरज थारो मुख देख्यां सुख पाऊं, मीरा और गंगा आदि को उन स्टूडेंट्स ने परफॉर्म किया, जिन्होंने वर्कशॉप अटेंड की थी और जो एकेडमी के मेंबर थे। ज्योति जी को राजमाता के साथ जुड़े 30 साल से भी ज़्यादा हो गए हैं और राजमाता के देहांत के बाद भी ज्योति जी घूमर नृत्य को अपनी ज़िम्मेदारी समझकर वर्कशॉप्स के माध्यम से उसे लोगों तक पहुंचा रही हैं और इसमें राजमाता की बहू भी उनका सहयोग करती हैं।

  • कैसे किया जाता है सही घूमर डांस?

घूमर सिर्फ़ डांस नहीं है, ये अपने आप में राजस्थानी राजपूत महिलाओं की एक पूरी संस्कृति है। घूमर स्वान्तः सुखाय का नृत्य है, ये किसी के मनोरंजन के लिए नहीं किया जाता इसलिए घूमर डांस में कोई एक्सप्रेशन नहीं होता। पारंपरिक घूमर डांस बहुत स्लो होता हैऔर इसकी कई वजहें हैं, जैसे- उस समय रानी-महारानी को बचपन से ही उठने-बैठने, चलने-बोलने का शाही तरीक़ा सिखाया जाता था इसलिए उनके नृत्य में भी वो शाही अंदाज़ दिखाई देता था। इसकेअलावा उस ज़माने में सेफ्टी पिन वगैरह नहीं होती थीं और रानी-महारानी की पोशाकों में रत्न जड़े होते थे इसलिए उन्हें अपनी पोशाक का भी ध्यान रखना होता था। फिर रानी-महारानी के गहने भी भारी-भरकम हुआ करते थे। भौगोलिक परिस्थिति की बात करें, तो रेत पर उछल-कूदकर डांस नहीं किया जा सकता। इन तमाम वजहों के कारण ही घूमर डांस बहुत स्लो किया जाता था। घूमर नृत्य तब महलों में हुआ करता था। रानी-महारानी सार्वजनिक स्थान पर नृत्य नहीं करती थीं। उनका नृत्य हमेशा जनाने में होता था। साल में एक बार तीज के त्योहार पर राज दरबार के दरवाज़े आम महिलाओं के लिए खुलते थे। उस वक़्त रानी-महारानी जो नृत्य करती थीं, उसे देखने का सौभाग्य आम महिलाओं को भी मिलता था। रानी-महारानी को देखकर अलग-अलग जाती-समुदाय की महिलाएं भी उसी तरह नृत्य करती थीं, लेकिन वो रानी-महारानी के साथ नृत्य नहीं करती थीं इसलिए उन्हें उस नृत्य कला की बारीकियां नहीं आती थीं, जिसके कारण इस नृत्य कला का स्वरूप बिगड़ने लगा। राजमाता साहिबा से घूमर नृत्य का ये बिगड़ता स्वरूप देखा नहीं गया और उन्होंने 1986 में ‘गणगौर घूमर डांस एकेडमी’ की शुरुआत की। उन्होंने इस डांस को सिखाने के लिए कभी किसी से कोई फीस नहीं ली। हां, वो नृत्य सिखाते समय अपने छात्रों से दो वायदे ज़रूर लेती थीं- एक ये कि आप इसका कभी व्यावसायिक लाभ नहीं लेंगे और दूसरा जहां भी राजमाता साहिबा ये नृत्य प्रस्तुत करेंगी वहां छात्रों को भी साथ चलना होगा और घूमर नृत्य को राजपूत महिलाओं की तरह पूरी गरिमा के साथ प्रस्तुत करना होगा। राजस्थान में आज भी राजघरानों में ये परंपरा है कि बहू जब शादी कर के घर आती है, तो सबसे पहले वो घर की महिलाओं के साथ जनाने में नृत्य करती है। ऐसा करने के पीछे वजह ये थी कि साथ नृत्य करते हुए बहू जल्दी से घर की महिलाओं के साथ घुल-मिल जाए।

  • फिल्म पद्मावत में घूमर डांस के पीछे की कहानी

2003 में जब मुंबई में घूमर का शो हुआ, तो उस शो में ज्योति जी ने संजय लीला भंसाली को भी बुलाया था, शो देखकर संजय इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने राजमाता से कहा कि भविष्य में जब भी मैं राजस्थान पर आधारित कोई ऐतिहासिक फिल्म बनाऊंगा, तो उसमें आप लोग इस नृत्य को ज़रूर प्रस्तुत करना। राजमाता साहिबा संजय लीला भंसाली के काम की बड़ी फैन थीं, क्योंकि वो जानती थीं कि संजय लीला भंसाली किसी भी कल्चर को बहुत बारीकियों के साथ पूरी रिसर्च करके प्रस्तुत करते हैं। राजमाता साहिबा ने संजय से कहा कि वो उनकी फिल्म में घूमर डांस को ज़रूर प्रस्तुत करेंगी। फिर 2016 में जब संजय लीला भंसाली ने ज्योति जी से उनकी फिल्म के लिए घूमर नृत्य की बात की, तो ज्योति जी ने कहा कि राजमाता साहिबा तो अब रही नहीं, लेकिन उनका वादा वो ज़रूर पूरा करेंगी। संजय ने ज्योति जी से कहा कि भले ही वो घूमर डांस का प्रयोग कमर्शियल फिल्म के लिए कर रहे हैं, फिर भी फिल्म में डांस का पारंपरिक स्वरूप ही प्रस्तुत किया जाएगा। घूमर डांस में घूंघट रखा जाता है, लेकिन संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत में दीपिका पादुकोण को यदि घूंघट में रखते, तो दर्शकों के मन में ये शंका हो सकती थी कि वाकई ये डांस दीपिका पादुकोण ने ही किया या किसी और ने, इसलिए घूंघट हटाना पड़ा। दीपिका पादुकोण ने घूमर डांस सीखने के लिए बहुत मेहनत की है। ज्योति जी ने लगभग 15 दिनों तक रोज़ दो घंटे दीपिका को घूमर डांस की प्रैक्टिस कराई और दीपिका ने भी घूमर डांस की हर बारीकी को बहुत ध्यान से समझा और सीखा। ज्योति जी के अनुसार, घूमर डांस के लिए दीपिका पादुकोण बेस्ट चॉइस हैं।

  • माता-पिता का उत्तराखंड प्रेम ज्योति जी में भी रचता-बसता है

मुंबई में जन्मी, पली-बढ़ी ज्योति नैथानी तोमर जी ने उत्तराखंड में भले ही बहुत कम समय बिताया है, लेकिन इससे उनका पहाड़ प्रेम कम नहीं हुआ, क्योंकि उनके घर में हमेशा ऐसा माहौल रहा, जहां पहाड़ को भूल पाना मुमकिन नहीं था। रोजी-रोटी की तलाश भले ही अन्य उत्तराखंडियों की तरह ज्योति जी के पिताजी डॉ। शशि शेखर नैथानी जी को भी मुंबई ले आई, लेकिन उत्तराखंड के लिए उनका प्यार कभी कम नहीं हुआ। अपने 10 बच्चों (नौ बेटियां और एक बेटा) को डॉ। शशि शेखर नैथानी जी और उनकी पत्नी ने इतने अच्छे संस्कार दिए कि आज उनके सभी बच्चे बहुत ऊंचे-ऊंचे मुक़ाम पर होते हुए भी अपनी बोली बोलना नहीं भूले हैं। डॉ। शशि शेखर नैथानी जी की एक और उपलब्धि के बारे में सभी उत्तराखंडियों को जानना ज़रूरी है कि मुंबई यूनिवर्सिटी में हिंदी को पोस्ट ग्रैजुएशन लेवल पर उन्होंने ही इंट्रोड्यूस किया। उत्तराखंड समाज के लिए भी उन्होंने बहुत काम किए हैं। ज्योति जी ने बताया कि उनके पिताजी डॉ। शशि शेखर नैथानी जी को उत्तराखंड से इतना लगाव था कि वो मुंबई में उत्तराखंडी कार्यक्रम करते थे और उन कार्यक्रमों में उत्तराखंड के कलाकारों को बुलाया जाता था। उत्तराखंडी संस्था ‘शैल सुमन’ के माध्यम से डॉ। नैथानी उत्तराखंड के कलाकारों को मुंबई बुलाते थे और मुंबई में उत्तराखंडी संस्कृति की झांकियां प्रस्तुत करते थे। उन उत्तराखंडी कार्यक्रमों में ज्योति जी की मां गाया करती थीं, सभी बच्चे भी परफॉर्म करते थे। मुंबई में बसे सभी पहाड़ी डॉ। शशि शेखर नैथानी जी के पहाड़ प्रेम से भली भांति परिचित हैं और उनका पहाड़ प्रेम उनके बच्चों में भी साफ़ नज़र आता है। ज्योति नैथानी तोमर जी से मिलने जब मैं उनके घर गई, तो घर की सजावट देखकर उनका कलाप्रेम तो समझ आया ही, सबसे ख़ास बात ये लगी कि ज्योति जी की तरह उनकी बेटियां भी मुझसे गढ़वाली में बात कर रही थीं। अपनी बोली के प्रति ये प्यार ज्योति जी को अपने माता-पिता से मिला है। ज्योति जी के पिताजी अपने सभी बच्चों से कहते थे कि अपनी बोली से हमेशा प्यार करो, हमेशा अपनी जड़ों से जुड़े रहो और पिताजी की बताई बातें अब वो अपने बच्चों को सिखाती हैं।

  • माता-पिता की प्रोग्रेसिव सोच ने आगे बढ़ाया

ज्योति जी ने बताया कि उनके पिताजी डॉ. शशि शेखर नैथानी जी को लोग बेटियों की शादी जल्दी करने की सलाह देते थे, ताकि वे अपनी ज़िम्मेदारियों से जल्दी मुक्त हो जाएं, लेकिन उनके पिताजी को ऐसा करना सही नहीं लगा। उन्होंने अपनी सभी बेटियों को ख़ूब पढ़ाया-लिखाया, इतना समर्थ बनाया कि वो कभी किसी पर बोझ न बनें। पढ़ाई के साथ-साथ उनकी मां ने अपनी सभी बेटियों को घर के सारे काम भी सिखाए, ताकि वो किसी काम में पीछे न रहें। बेटियों ने भी माता-पिता का नाम इस क़दर रौशन किया कि आज उनकी हर बेटी की अपनी अलग पहचान है।

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