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असल भारत की इस डरावनी तस्वीर को-रो-ना


कोरोना का संकट अभूतपूर्व है। इस संकट से पार पाने की तैयारी किसी की भी नहीं थी। न सरकार की, न सिस्टम की और न ही आम जनता की। कोहराम तो पूरी दुनिया में है, मगर दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था कहे जाने वाले भारत की हकीकत सड़कों पर नजर आ रही है। एक-एक मौत का हिसाब निकाला जाए तो कोरोना से मरने वालों से बड़ा आंकडा घर गांवों को लौट रहे उन प्रवासी कमागारों का बैठेगा जो भूख, थकान, सड़क दुर्घटना या बीमारी का इलाज न मिलने से बीच रास्ते में मर रहे हैं ।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में बड़ी आबादी कोरोना से ज्यादा अव्यवस्थाओं और सरकारी कुप्रबंधन की शिकार हो रही है। केंद्र समेत राज्यों की सरकारें चिंता तो कर रही हैं मगर समय पर सही फैसले नहीं ले पा रही हैं। व्यवस्थाएं जुमलों से बाहर नहीं आ पा रही हैं। सरकारी फैसलों में असमंजस, बौखलाहट, अपरिपक्वता और अनुभवहीनता साफ नजर आ रही है, सरकार के फैसले ही कोराना से चल रही जंग में आड़े आने लगे हैं।
उन्हें तो संकट के इस वक्त सरकार से हिम्मत, भरोसे और अपनेपन की दरकार है । सरकार यह भूल रही है कि यह वह तबका है जो जन्म के साथ ही गरीबी को अपनी नियति मानकर चलता है, और बस किसी तरह अपना और अपने परिवार की गुजर करता है। यह वह भीड़ है जिसके पास एक महीने की गुजर के लिए भी चंद रूपए नहीं होते, जिसके पास परिवार सहित घर लौटने का किराया तक नहीं होता।Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur.