दहशत में जीते त्रिवेंद्र के बाहुबली मन्त्री

* मोदी के मिशन को पलीता लगाते उत्तराखंड के नेता
* हरीश रावत से अब भी जान का खतरा !
* शांत राज्य में पुलिस के अलावा CISF भी कर रही सुरक्षा
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने VIP कल्चर को समाप्त करके एक नई कार्य संस्कृति का वातावरण तैयार किया है । VIP और लाल बत्ती कल्चर को समाप्त किया है, वहीं भाजपा शासित उत्तराखंड के नेता प्रधानमंत्री की अपील की खुलेआम खिल्ली उड़ा रहे हैं। ताजा मामला उत्तराखंड के उन नेताओं से संबंधित है जो हरीश रावत सरकार से बगावत करके रातों रात भारतीय जनता पार्टी की आंखों के तारे बन गए थे। जब इन नेताओं ने रावत सरकार से बगावत की थी तब अपनी जान माल की रक्षा का आधार बनाकर इन्होंने भारत सरकार से सुरक्षा की गुहार लगायी थी। गृह मंत्रालय भारत सरकार ने भी तात्कालिक परिस्थितियों में उन्हें केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल CISF की सुरक्षा प्रदान की थी। CISF भारत सरकार की बहुत चुस्त और सक्षम सुरक्षा संस्था है जो कि इन सभी नेताओं को प्रदान की गई है।
अब निजाम बदल गया है, जनादेश बदल गया है। जनता ने बाहुबली हरीश रावत को उनके द्वारा लड़ी गयी दोनों सीटों से पराजित कर उन्हें नेपथ्य में धकेल दिया है। स्वयं रावत कांग्रेस की राजनीति में भी अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में हरीश रावत या उनकी सरकार के समय के कथित खतरे जो इन तत्कालीन बागी नेताओं ने बताए थे, स्वाभाविक रूप से समाप्त हो चुके हैं। दो को छोड़कर ये सभी नेता स्वयं जनप्रतिनिधि हैं जिन्हें राज्य सरकार की सुरक्षा भी प्राप्त हैं, उनमें चार कैबिनेट मंत्री भी हैं जिन्हें राज्य सरकार की ओर से सुरक्षा का भारी लावलश्कर प्राप्त है ऐसे में केंद्र की सुरक्षा एजेंसियों का अकारण उपयोग अब केवल सस्ता शक्ति प्रदर्शन भर रह गया है।
वैसे तो उत्तराखंड के राजनेता अपनी सादगी के लिए जाने जाते रहे हैं। इस शांत प्रदेश में इतनी भारी भरकम सुरक्षा का कोई औचित्य भी नज़र नहीं आता है यहां तक कि जम्मू-कश्मीर के घाटी के विधायकों और नक्सल प्रभावित राज्यों के विधायकों को तक इतना बड़ा सुरक्षा घेरा प्रदान नहीं है। राज्य के यह जनप्रतिनिधि दर्जन भर से अधिक CISF जवानों की सुरक्षा की झांकी निकालकर सार्वजनिक स्थानों पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए दिख जाएंगे जबकि सिक्योरिटी नॉर्म्स के आधार पर एक समय में दो या तीन सुरक्षाकर्मी सुरक्षा में तैनात रहते हैं शेष रिलीवर के रूप में रहते हैं किंतु एक साथ सभी सुरक्षाकर्मियों का इन नेताओं के साथ विचरण करना बताता है कि स्वयं CISF को भी सिक्योरिटी नॉर्म्स का पालन करने में बाधा डाली जा रही है।
एक चर्चित विधायक जो कि अपने बाहुबल के प्रदर्शन को लेकर सदैव चर्चा में रहते हैं उन्हैं सीआईएसएफ की सुरक्षा के साथ-साथ उत्तराखंड पुलिस की सुरक्षा भी प्राप्त है वे जब अपने काफिले के साथ चलते हैं तो उनके सामने राज्य के मुख्यमंत्री का काफिला भी बौना दिखाई देता है। आखिर ऐसे जनप्रतिनिधि क्या संदेश देना चाहते हैं? केंद्र सरकार इनकी सुरक्षा की समीक्षा क्यों नहीं कर रही है? क्यों सुरक्षा एजेंसियां स्वयं इनका संज्ञान नहीं ले रही हैं?
जब हरीश सरकार नहीं रही तो इन्हें अब किससे खतरा है और क्या उत्तराखंड की पुलिस इन्हें सुरक्षा देने में अक्षम है ? यह उत्तराखंड पुलिस की पेशेवर क्षमता पर भी सवालिया निशान लगाता है। इन सारे विषयों पर गंभीर रूप से विचार होना चाहिए । सवाल पैदा होता है कि जहां देश आंतरिक सुरक्षा से जूझ रहा है, और देश व प्रदेशों में सुरक्षाबलों की कमियों का सदैव रोना रोया जाता है वहां केवल सस्ते शक्ति प्रदर्शन के लिए सुरक्षा एजेंसी का अनावश्यक उपयोग कराना प्रशासनिक तंत्र की घोर लापरवाही दर्शाता है। राज्य और केंद्र सरकार को सघन समीक्षा करनी चाहिये कि जिन जिन व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान की गई है उन सब की वर्तमान परिस्थितियों का अध्ययन करना चाहिए कि क्यों अनावश्यक रुप से समाज में प्रतिष्ठा का आधार बना कर केंद्रीय सुरक्षा कर्मियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। ये नेता मोदी की अपील को अंगूठा दिखा रहे हैं। राज्य सरकार के उन अधिकारियों से भी पूछा जाना चाहिये जो नेताओं के जीवन के खतरे की समीक्षा करते हैं।