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त्रिवेंद्र राज का ‘फीका’ आगाज !

योगेश भट्ट 

जनता ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा को जो प्रचंड बहुमत दिया है, वह निश्चित तौर पर बदलाव के लिए दिया है। यही नहीं, पंजाब में कांग्रेस को भी इसी बदलाव के लिए बहुमत मिला है। उत्तर प्रदेश और पंजाब की सरकार तो लगता है जनता की इस भावना को भांप भी चुकी है। दोनों प्रदेशों की सरकार शपथ के तत्काल बाद एक्शन मोड में आ गई हैं।

दरअसल जिस बदलाव की हम बात कर रहे हैं, उससे तात्पर्य सत्ता के बदलाव से नहीं, बल्कि कार्य संस्कृति और व्यवस्था में बदलाव से है। कार्य संस्कृति में होने वाले बदलाव सरकार की नेतृत्व क्षमता पर निर्भर करते हैं, और पहले दिन से ही इनके संकेत नजर आने लगते हैं। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पंजाब में सरकारों का गठन एक साथ हुआ है, मगर बदलाव का संदेश देने में उत्तराखंड की नवनिर्वाचित सरकार इन दो राज्यों से पिछड़ती नजर आ रही है।

उत्तर प्रदेश में तो मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने अपना एजेंडा साफ कर दिया है कि भ्रष्टाचार मुक्त शासन और कानून व्यवस्था में सुधार उनकी प्राथमिकता है। इसके लिए उन्होंने अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का दौर शुरू नहीं किया, बल्कि सभी अधिकारियों को ईमानदारी, स्वच्छता एवं स्पष्टता की शपथ दिलाते हुए काम करने के आदेश जारी कर दिए। सभी जिलाधिकारियों को संपर्क में लेकर उन्हें साफ निर्देश दे दिए कि जनता की समस्याओं को नजरअंदाज न किया जाए। कानून व्यवस्था बिगड़ने की सूरत में उन्होंने बड़े अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय कर दी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उन्होंने सभी मंत्रियों और अफसरों को पंद्रह दिन के भीतर अपनी संपत्ति एवं आय के स्रोत सार्वजनिक करने को कहा है।

दूसरे राज्य पंजाब की बात करें तो वहां भी मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह एक्शन में आ चुके हैं। उन्होंने प्रदेश में वीवीआईपी कल्चर खत्म करने की शुरुआत करते हुए मंत्रियों और अफसरों द्वारा लाल बत्ती लगे वाहनों का इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी है। इसके अलावा उन्होंने अपने चुनावी वायदे के मुताबिक नशे का व्यापार करने वाले अपराथियों की धरपकड़ के लिए टास्क फोर्स भी गठित की है।

अब अपने प्रदेश की बात करें तो यहां भी इसी तरह के एक्शन की दरकार थी। मगर यहां अभी ‘बदलाव’ की आहट तक महसूस नहीं की जा रही है। हो सकता है कि त्रिवेंद्र सरकार धीमी चाल चलते हुए मजबूत कार्ययोजना तैयार कर रही हो, मगर उसके भी कुछ संकेत पहले दिन से दिख जाने ही चाहिए, जो फिलवक्त दिखाई नहीं दे रहे हैं। शपथ ग्रहण के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार ने जो पहला आदेश जारी किया, वह ये कि एक वरिष्ठ नौकरशाह, ओमप्रकाश को अपर मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री के पद पर तैनात किया गया है। यह फैसला पिछली सरकारों के परंपरागत फैसलों की ही तरह है।

सत्ता में आने के बाद सभी मुख्यमंत्री किसी खास अफसर को सत्ता का ‘पावर सेंटर’ बनाते रहे हैं। यह फैसला भी इसी क्रम में लिया गया लगता है। सियासी हलकों में इस फैसले को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इसकी वजह यह है कि त्रिवेंद्र के कृषि मंत्री रहते हुए जब एक कथित घोटाला सामने आया, तब ओमप्रकाश कृषि सचिव के पद पर कार्यरत थे। यहां पर यह भी बताते चलें कि अलग-अलग सरकारों ने अपने कार्यकाल में जिन अफसरों को पावर सेंटर बनाया, वे ही उनकी सबसे ज्यादा फजीहत का कारण बने।

दूसरे फैसले में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने कुछ अफसरों की जिम्मेदारियां बदली हैं, जिनमें शासन स्तर के सचिव, जिलाधिकारी तथा एसएसपी शामिल हैं। लेकिन यह भी कार्यसंस्कृति में सुधार लाने के मकसद से लिया गया फैसला नहीं लगता, बल्कि पूर्ववर्ती सरकार के चहेते अफसरों को बड़ी जिम्मेदारियों से हटाना ज्यादा लगता है। बहरहाल उत्तर प्रदेश और पंजाब की सरकारों की सक्रियता के बाद उत्तराखंड में भी त्रिवेंद्र सरकार के एक्शन में आने की उम्मीद की जा रही है। उम्मीद है, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मौके की नजाकत को भापेंगे और जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप बड़े एक्शन लेना शुरू करेंगे।

devbhoomimedia

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