उत्तराखंड में 6 माह पूरा कर रही भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार के नाम …!

उमाकांत लखेड़ा
मेरे जैसे लोग गवाह हैं कि 23 साल पहले के एक बड़े जनांदोलन ने उत्तराखंड राज्य बनाया था। जो तत्व इस राज्य के विरोधी थे वे राज्य बनने के बाद कांग्रेस व भाजपा के शासन में इस राज्य की संपदा और अवसरों को लूटकर बेहिसाब धन दौलत के मालिक बन गए। इस राज्य के लिए 46 लोगों ने जानें दी और क्या-क्या नहीं हुआ,सब भुला दिया गया है।
पहली बार लगातार चार चुनावों के बाद भी भाजपा को 57 सीटें मिली हैं। विगत छह माह में भाजपा सरकार हर मोर्चे पर नाकाम है। पूरे राज्य में अराजकता का माहौल है। मां बहिनों की अस्मिता लुटाकर जन्में इस राज्य की सरकार इवेंट मैनेजमेंट और पेड मीडिया के शिकंजे में है। इतना बड़ा बहुमत मिलने के बाद भी राज्य के मुख्यसेवक की छवि दिल्ली में बैठे आकाओं की कठपुतली से ज्यादा नहीं है।
दिल्ली व देहरादून में चाटूकारों की मौज है। ऐसे लोगों की टोलियां और उनके चमचे अपनी पहुंच दिखाकर लोगों को धमका रहे हैं। विधायकों की मर्जी के खिलाफ दिल्ली से थोपे गए राज्य मुख्यसेवक ने छह माह में अपनी नाकामियों का बड़ा अंबार खड़ा कर दिया। इस कूड़े की सड़ांध और गंदगी साफ करने में 2019 का आम चुनाव निकल जाएगा, इससे भाजपा का पूरा अमला भयभीत है।
इस प्रदेश की स्थायी राजधानी का सवाल कब तय होगा .? 17 साल बाद भी अहम सवाल पर जब प्रचंड बहुमत की सरकार फैसला नहीं कर रही तो लगता यही है फिर किसी माफिया की वैसाखी पर चलनेे वाली सरकार का इंतजार है। भयंकर बेरोजगारी से पलायन कर रहे लिखे पढ़े नौजवान, चीन सीमा व सुदूर गांवों से सटे गांवों के खाली होने, बदहाल शिक्षा औेर डाक्टर- दवा विहीन अस्पताल, घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों पर मौन और एकमात्र आमदनी के नाम पर गांव- गांव तक शराब बेचने के टोटके तलाशने के लिए माफिया के आगे नतमस्तक मुख्य सेवक। अब तो हर किसी की जुबान पर यही सच है कि क्या पहाड़ी नौजवानों के पलायन और यहां की परिसंपत्तियों को लूटने वाले बाहर के लोगों के ऐशो आराम और अय्याशी के पर्यटन स्थल विकसित करने के लिए ही यह राज्य बना। क्या कोई शक है किसी को ..?