–कई राजनेताओं और नौकरशाहों के चहेता है कथित पत्रकार
-कथित पत्रकार ने किया विशेष सुरक्षा के आड़ में गोरख धंधा
कथित पत्रकार के खिलाफ जो धारायें लगाई गईं उनमें
आईपीसी की धारा 384, 506—1, 469, 452, 323, 504, 506, 25—1बी, 25—4, 420, 467, 468, 471, 120—बी, 17—3, 392, 3—1 एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज किये गये हैं।
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : कुछ दिन पहले तक सीआईएसएफ की हाई सिक्योरिटी के घेरे में जमीनों और घरों को कब्जा कर पूरी हनक और ठसक के साथ रहने वाले कथित पत्रकार के गर्दिश के दिन शुरू हो गये हैं। कल तक उत्तराखंड सहित देश के कई राजनेताओं और नौकरशाहों के चहेते रहे कथित पत्रकार की विशेष सुरक्षा तो हटा ही ली थी, अब खबर आई है कि भाजपा ने अपने दिल्ली स्थित राष्ट्रीय कार्यालय में इसके घुसने पर बैन लगाने की तैयारी कर दी है। यह भी खबर आई है कि उसकी कारगुजारियों को देखते हुए उसे चैनल से बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी हो रही है।
कभी कई नेताओ के किचन तक बेरोकटोक पहुंच रखने वाले कथित पत्रकार के साथ एक दिन यह तो होना ही था। वर्ष 2002 में देहरादून आने के बाद एक पुराने से स्कूटर से दून की गलियों में खाक छानने वाला कथित पत्रकार इन 18 वर्षों में बहुत आगे निकल गया। उसने अरबों रुपये की संपत्ति उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि उत्तराखंड के बाहर भी बनाने में कामयाबी पाई। उसकी आपराधिक प्रवृत्ति का ही नतीजा है कि उत्तराखंड की हर सरकार में उसके खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए हैं ।
वर्ष 2005 में तिवारी सरकार, 2007 में खंडूड़ी सरकार, 2010 और 2011 में निशंक सरकार, 2012 व 2013 में बहुगुणा सरकार और 2015 में हरीश रावत सरकार व 2017 में त्रिवेंद्र सरकार ने उसके खिलाफ 13 मुकदमे दर्ज हुए। इस व्यक्ति का यदि मुकदमों का रिकार्ड निकालकर देखा जाए तो यह एक बहुत बड़ी हिस्ट्री शीट नज़र आती है। उसके खिलाफ जमीन की खरीद फरोख्त में धांधली, जान से मारने की धमकी, जातिसूचक शब्दों का प्रयोग और मारपीट, फर्जी दस्तावेज के संबंध में, सूचना तकनीकी दुरुपयोग के संबंध में, बंदूक लाइसेंस जमा न करने एवं फर्जी दस्तावेज के आधार पर गड़बड़ियां दर्ज करने के मुकदमे दर्ज हैं।
कथित पत्रकार के खिलाफ सबसे ज्यादा मुकदमे वर्ष 2011 में दर्ज हुए थे। कथित पत्रकार की राजनीतिक पहुंच का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके खिलाफ कई मुकदमे तो सरकारों ने ही वापस करा दिये। कथित पत्रकार ने देहरादून आने के साथ ही राजनेताओं और नौकरशाहों के साथ संबंध बनाने के साथ ही उन पर अपनी पकड़ मजबूत की। नारायण दत्त तिवारी के दरबार में उसकी सीधी पहुंच शुरू हो गई थी। वर्ष 2007 में मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी की सरकार में उसने अच्छी खासी दखलंदाजी शुरू कर दी थी।
वर्ष 2010 में डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के मुख्यमंत्री बनने के बाद इसने वहां भी घुसपैठ कर ली। मगर सभी मुख्यमंत्रियों ने जैसे ही उसकी असलियत जानी तो उन्होंने उससे दूरियां बनानी शुरू कर दी। निशंक के समय वह उल्टे पुल्टे काम कराने की जुगत में था, लेकिन निशंक उसकी फितरत को समझ गये और उसको डपटकर भगा दिया। इसके बाद निशंक के कार्यकाल में इसके खिलाफ केस दर्ज हुए और गैरजमानती वारंट और आउटलुक नोटिस तक जारी हुआ। इसके बावजूद कथित पत्रकार को तब दिल्ली में बैठे कुछ भाजपा नेताओं ने उस दौरान सुरक्षा कवच देकर बचा लिया।
वर्ष 2011 में निशंक के हटते ही इसकी फिर से लॉटरी खुल गई और कथित पत्रकार सचिवालय और मुख्यमंत्री कार्यालय के साथ ही सीएम आवास में दोबारा पूरी तरह सक्रिय हो गया। वह इतना शातिर दिमाग है कि जब वह दिल्ली से यहां आया तो उसने खुद को दिल्ली ”दैनिक जागरण” के पॉलिटिकल ब्यूरो का वरिष्ठ संवाददाता बताया। जिससे वह नेताओं के पास बेरोकटोक आने जाने लगा। तब शायद राजनेताओं को यह अंदाज नहीं रहा होगा कि जिस व्यक्ति को वे अपने इतने करीब बैठा रहे हैं, वो अंदर से इतना बड़ा शैतान निकलेगा।
यह इतना शातिर है कि इन वर्षों में उसने अकूत संपत्ति बना ली है। यह कल्पना भी नहीं की जा सकती है कि कुछ साल पहले तक एक सेकंड हैंड स्कूटर पर चलने वाले बंदे ने इतनी संपत्ति आखिर कैसे बनाई? यह सवाल पिछले कई दशकों से राजधानी दिल्ली सहित प्रदेश में पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों को सोचने पर विवश कर देता है।
देहरादून के सबसे महंगे इलाकों में कथित पत्रकार की अरबों की संपत्ति है इसमें करोड़ों के की बड़े भूखंड, फार्म हॉउस और विलाज शामिल हैं। इनमे से कुछ सम्पत्ति कथित पत्रकार ने रिश्तेदारों और अपनी पत्नी के नाम भी करा रखी है। सूत्रों के अनुसार कथित पत्रकार की करोड़ों की ज्यादातर जमीनें स्टोन क्रशर फार्म के नाम पर कई शहरों में हैं।
इनके अलावा भी वह कई काले कारोबारों में शामिल बताया जा रहा है। कई खनन माफिया और स्टोन क्रशर संचालकों के साथ कथित पत्रकार की गुप्त पार्टनरशिप बताई जा रही है। इनसे रोजाना कथित पत्रकार की लाखों की कमाई बताई जा रही है। ऐसे दर्जनों स्टोन क्रशर यूपी और उत्तराखंड के बार्डर पर संचालित हो रहे हैं।
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